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________________ ॐ कर्म-योग की कसौटी एक सज्जन को मेरे पास लाया गया। उनका दिमाग खराब होने इसलिए रात अगर आप बिना तकिए के सोएं, तो नींद नहीं की हालत में आ गया, तब उनके परिचित लोग उन्हें ले आए। | आती। क्यों? क्योंकि वे जो महीन तंतु हैं, खून की धारा उनको किसी ने उनको बता दिया है कि दोनों कान को बंद करके दोनों छेड़ने लगती है, और आप रात सो नहीं सकते। तकिए पर सिर रख अंगूठों से, और भीतर बादलों की गड़गड़ाहट सुननी चाहिए। तो लेते हैं, खून की धारा कम हो जाती है सिर की तरफ, तो महीन तंतु उन्होंने सुनना शुरू कर दिया। तीन साल से वे सुन रहे हैं। शांति से सो पाते हैं। अब गड़गड़ाहट इतनी ज्यादा सुनाई पड़ने लगी कि अब और | अब आप शीर्षासन कर रहे हैं। अब आपको पहले पक्का कर कुछ सुनाई ही नहीं पड़ता। अब अंगूठे न भी लगाएं, तो भी लेना चाहिए कि कितना खन आपके तंत सह सकेंगे. नहीं तो टट गड़गड़ाहट सुनाई पड़ती है। दूसरा बात भी करे, तो उन्हें सुनाई नहीं | जाएंगे। पड़ता, क्योंकि उनकी गड़गड़ाहट भीतर चल रही है! तो मैंने तो अभी तक शीर्षासन करने वालों को बहुत बुद्धिमान मैंने उनसे पूछा कि तुमने गड़गड़ाहट सुनने की कोशिश काहे के नहीं देखा। आप बता दें, एकाध शीर्षासन करने वाले ने कोई विज्ञान लिए की थी? उन्होंने कहा, मैं तो गया था कि कैसे शांति मिले! का आविष्कार किया हो! कि एकाध शीर्षासन करने वाले को उन्होंने कहा कि ऐसे शांति मिलेगी, तुम गड़गड़ाहट सुनो। नोबल प्राइज मिली हो! तुम सोचते भी तो कि गड़गड़ाहट सुनने से शांति मिलेगी? कि इसका यह मतलब नहीं कि शीर्षासन का फायदा नहीं हो सकता। थोड़ी बहुत शांति होगी, वह और नष्ट हो जाएगी! है एक प्रयोग, वह | | लेकिन मर्म को समझे बिना! और फिर पढ़ लिया कि बड़ा लाभ होता भी ध्यान का एक प्रयोग है। लेकिन तुम समझ तो लेते मर्म उसका! है, तो घंटों खड़े हैं शीर्षासन में। सिर्फ खोपड़ी खराब हो जाएगी। कि तुम करने ही लगे! और अब सफल हो गए, तो परेशान हो रहे | फायदा हो सकता है, लेकिन बहुत बारीक मामले हैं। और ठीक हो? अब वे सफल हो गए हैं। अब गड़गड़ाहट से छुटकारा चाहिए! प्रशिक्षित व्यवस्था के भीतर ही हो सकता है। जब आपके पूरे बहुत-से लोग हैं, न मालूम क्या-क्या करते रहते हैं। कोई | | मस्तिष्क की जांच हो गई हो और आपके रग-रग का पता हो कि शीर्षासन कर रहा है, बिना फिक्र किए कि वह क्या कर रहा है। | कितना खून कम है। वैसे ही तो कहीं ज्यादा नहीं जा रहा है! क्योंकि किसी ने कह दिया; कि पंडित नेहरू की आत्मकथा में पढ़ जो लोग रात को नहीं सो पाते, उनका कारण ही यह है कि खून लिया; कि फलां आदमी सिर के बल खड़ा था, तो बड़ा बुद्धिमान ज्यादा जा रहा है। और मस्तिष्क में खून ज्यादा जा रहा हो, तो नींद हो गया था। . नहीं आ सकती; इन्सोमेनिया, अनिद्रा पैदा हो जाएगी। खून की ___ इतना आसान होता बुद्धिमान होना सिर के बल खड़े होने से, तो मात्रा मस्तिष्क में कम होनी ही चाहिए, तो ही नींद आ पाएगी, तो दनिया में बद्ध पाने मश्किल थे। क्योंकि बद्ध कम से कम सिर के ही विश्राम हो पाएगा। बल तो खड़े हो ही सकते हैं। इसमें कोई ऐसी अड़चन की बात कहां | जब आप सोचते रहते हैं, तब नींद नहीं आती। क्योंकि सोचने है? निश्चित ही, लाभ हो सकता है। लेकिन मर्म को जाने बिना! | की वजह से ज्यादा खून की जरूरत पड़ती है मस्तिष्क में; तंतुओं मस्तिष्क में अगर ज्यादा खून चला जाए, तो नुकसान हो | को चलना पड़ता है। इसलिए नींद नहीं आती। तो नींद के लिए जाएगा। कितना खून जाना जरूरी है आपके मस्तिष्क में, न आपको | | जरूरी है; विश्राम के लिए जरूरी है। पता है, न जिनसे आप सीख के आ रहे हैं, उनको पता है। लेकिन अगर आपके मस्तिष्क में कम खून जा रहा हो, तो आपको पता है कि आदमी में बुद्धि ही इसलिए पैदा हुई, क्योंकि | थोड़ी-सी खून की झलक तेजी से पहुंचा देना फायदा भी कर सकती वह सीधा खड़ा हो गया। और मस्तिष्क में खून कम जा रहा है, | है। तो जो तंतु मुरदा हो गए हैं, वे सजीव भी हो सकते हैं। उनको इसलिए बुद्धि पैदा हो सकी। जानवरों को बुद्धि पैदा नहीं हो सकी, | खून मिल जाए। लेकिन कितना? उस मर्म को बिना समझे जो किए क्योंकि खून मस्तिष्क में ज्यादा जा रहा है। खून जब ज्यादा जाता है, | चला जाता है, वह अक्सर लाभ की जगह हानि कर लेता है। तो पतले महीन तंतु पैदा नहीं हो पाते। आदमी सीधा खड़ा हो गया; | लोग बैठ जाते हैं, कुछ भी कर लेते हैं। अध्यात्म के जगत में मस्तिष्क में खून कम जा रहा है, तो महीन, बारीक तंतु, डेलिकेट तंतु | तो बहुत अंधापन है, क्योंकि मामला अंधेरे का है। और सब पैदा हो सके। उन्हीं तंतुओं की वजह से आप बुद्धिमान हैं। | टटोल-टटोलकर चलना पड़ता है। और कोई भी मिल जाता है!
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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