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* गीता दर्शन भाग-60
चर गई। बगिया को चरते देखकर उसे बहुत क्रोध आया। लकड़ी | बिंदुओं पर होता है। उठाकर उसने गाय को मार दी। गाय मर गई।
तो फिर चीन में आठ सौ शरीर में बिंदु खोज लिए गए। तो फिर एक ब्राह्मण द्वार पर खड़ा था। उसने पूछा कि यह तुमने क्या गोली मारने की जरूरत नहीं है, उन पर जरा-सी भी चोट की किया! गाय को मार डाला! तो उस संन्यासी ने कहा कि सब जाए... । इसलिए अक्युपंक्चर में सुई चुभा देते हैं। आपके सिर में परमात्मा कर रहा है, मैं क्या! तो उसकी मर्जी! उसके बिना मारे | दर्द है, तो वे जानते हैं कि आपके शरीर में कुछ बिंदु हैं, जहां सुई गाय मर सकती है? उसके बिना हाथ उठाए, मेरा हाथ उठ सकता चुभा दो। सुई चुभाते ही से सिरदर्द नदारद हो जाएगा। है? उसकी बिना आज्ञा के पत्ता नहीं हिलता।
अक्युपंक्चर हजारों तरह की बीमारियां ठीक करता है बिना लेकिन आश्रम उसने बनाया है। ज्ञान उसने पैदा किया है। त्याग इलाज के, सिर्फ सुई चुभाकर। जरा-सी जगह पर, ठीक जगह पर उसने किया है। गाय भगवान ने मारी है!
सुई चुभाकर। वह आपके भीतर जो ऊर्जा है शरीर की...। ये हमारे मन की तरकीबें हैं। हम सब यही करते रहते हैं। जब __ अब जिस आदमी ने गोली मारी थी, उसने सोचा नहीं था कि आप हार जाते हैं जिंदगी में, तो कहते हैं, भाग्य। और जब जीत इसका सिर ठीक करना है। और उसने यह नहीं सोचा था कि उसके जाते हैं, तो कहते हैं, मैं। पर सभी कुछ परमात्मा पर छोड़ना गोली मारने से अक्युपंक्चर पैदा होगा! और सारी दुनिया मुश्किल है। असफलता तो छोड़ना बिलकुल आसान है, सफलता | में इसका ही सिर ठीक नहीं होगा-करोड़ों लोगों का सिर ठीक छोड़नी मुश्किल है। सब में दोनों आ जाते हैं।
होगा। और सिर ही ठीक नहीं होगा, लाखों बीमारियां ठीक होंगी। तो कष्ण कहते हैं. मश्किल होगा शायद तझे यह भी करना कि आप क्या करते हैं. वह तो सोच सकते हैं कि आप कर रहे हैं। कर्म तू मुझ पर छोड़ दे। क्योंकि खुद को छोड़ना पड़ेगा। और अति | लेकिन क्या होगा, वह आप तय नहीं कर सकते कि क्या होगा। होना कठिन है बात खुद को छोड़ने की। तो फिर तू एक काम कर। कर्म | आपके हाथ में नहीं है। आप किसी को जहर दें और हो सकता है कि न छोड़ सके, तो कम से कम कर्म का फल छोड़ दे।
। वह अमृत सिद्ध हो जाए। और कई बार आप जहर देकर देख भी यह थोडा आसान है पहले वाले से। क्योंकि फल हमारे हाथ में | | लिए हैं। और कई बार आप अमृत देते हैं और जहर हो जाता है। है भी नहीं। कर्म हम कर सकते हैं, लेकिन फल क्या आएगा, जरूरी नहीं है। क्योंकि फल आप पर निर्भर नहीं है। फल बहुत बड़ी इसको हम सुनिश्चित रूप से तय नहीं कर सकते हैं। | विराट व्यवस्था पर निर्भर है। फल क्या होगा, कहना मुश्किल है।
मैं एक पत्थर उठाकर मार सकता हूं। लेकिन आप उस पत्थर से | तो कृष्ण कहते हैं कि कर्म न छोड़ सके, क्योंकि कर्म तो तुझे मर ही जाएंगे, यह कहना मुश्किल है। यह भी हो सकता है कि लगता है कि तू करता है, लेकिन फल तो छोड़ ही सकता है। पत्थर आपको लगे और आपकी कोई बीमारी ठीक हो जाए। ऐसा क्योंकि फल तो पक्का नहीं है कि तू करता है। कर्म तू करता है; हुआ है। ऐसा अनेक बार हो जाता है कि आप किसी का नुकसान फल होता है। और फल निश्चित नहीं किया जा सकता। और त करने गए थे और उसको फायदा हो गया।
नियंता नहीं है फल का। इसलिए कम से कम फल ही छोड़ दे। ___चीन में ऐसा हुआ, उससे अक्युपंक्चर नाम की चिकित्सा पद्धति इतना भी कर ले। तो कर्म तू कर और फल मुझ पर छोड़ दे। जो भी पैदा हई। आज से कोई तीन हजार साल पहले एक यद्ध में एक | होगा, वह भगवान कर रहा है तू कर रहा है, ठीक। लेकिन परिणाम सैनिक को पैर में गोली लगी। उसको जिंदगीभर से सिर में दर्द था। भगवान ला रहा है। पैर में गोली लगी; गोली आर-पार हो गई। गोली के लगते ही दर्द __ सब कर्मों का फल त्याग कर दे, मेरे ऊपर छोड़ दे। क्योंकि मर्म एकदम गायब हो गया। वह जिंदगीभर का दर्द था। और चिकित्सक | को न जानकर किए हुए अभ्यास से परोक्ष ज्ञान श्रेष्ठ है। हार गए थे, और वह दर्द अलग होता नहीं था।
बहुत-से लोग अभ्यास करते रहते हैं, मर्म को न जानते हुए। तो बड़ी हैरानी हुई कि पैर में गोली लगने से दर्द सिर का कैसे | | उन्हें पता नहीं है, क्यों कर रहे हैं। अभ्यास करते रहते हैं। बहुत चला गया! तो फिर खोजबीन की गई, तो पाया गया कि शरीर में | लोग हैं। रोज मुझे ऐसे लोग मिलने आ जाते हैं। वर्षों से कुछ कर जो नाड़ियों का संस्थान है और जो ऊर्जा का प्रवाह है, उसमें कुछ रहे हैं। उनको पता नहीं, क्यों कर रहे हैं। किसी ने बता दिया, बिंदु हैं। अगर उन पर चोट की जाए, तो उनका परिणाम दूसरे | इसलिए कर रहे हैं।
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