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@ कर्म-योग की कसौटी -
कई बार समझदार लोग नासमझियां कर देते हैं। बच्चे से पत्थर दिशा से परमात्मा को खोजना शुरू करें। छीनने की जरूरत नहीं है। बच्चे को बुद्धि, समझ देने की जरूरत | | अब हम सूत्र को लें। है। जैसे-जैसे बच्चे की समझ बढ़ेगी, एक दिन आप अचानक और यदि इसको भी करने के लिए असमर्थ है, तो जीते हुए मन पाएंगे, पत्थर एक कोने में पड़े रह गए। अब वह उनकी तरफ ध्यान | वाला और मेरी प्राप्तिरूप योग के शरण हुआ सब कर्मों के फल का भी नहीं देता, क्योंकि उसने नए आनंद खोज लिए हैं। अब वह | मेरे लिए त्याग कर। पत्थरों पर ध्यान नहीं देता। आप उनको उठाकर फेंक दें, अब उसे - कृष्ण ने कहा, तू सब कर्म मैं कर रहा हूं, ऐसा समझ ले। लेकिन पता भी नहीं चलेगा। वह खुद ही एक दिन उनको फेंक देगा। अगर यह भी न हो सके! हो सकता है, यह भी तुझे कठिन हो कि
जैसे समझ बढ़ती है, वैसे आनंद के नए क्षेत्र खुलते हैं। सम्यक कैसे समझ लूं कि सब आप कर रहे हैं। कर तो मैं ही रहा हूं। धर्म आपसे आनंद नहीं छीनता, सिर्फ आपकी समझ बढ़ाता है। तो | निश्चित ही कठिन है। अगर कोई आपसे कहे कि सब परमात्मा जो व्यर्थ होते जाते हैं आनंद, वे छूटते जाते हैं।
कर रहा है, तो भी आप कहेंगे कि कैसे मान लूं कि सब परमात्मा निश्चित ही, इस संसार में जो आप आनंद ले रहे हैं, वह लेने | कर रहा है? जैसा नहीं है। उसमें कछ खास है नहीं मामला। बच्चों के हाथ में मैंने ऐसे लोग देखे हैं कि अगर उनको समझा दो कि सब रंगीन पत्थर जैसी बात है। लेकिन कोई हर्ज नहीं है। आप आनंद ले | परमात्मा कर रहा है, तो वे सब करना छोड़कर बैठ जाते हैं। वे रहे हैं, यह भी ठीक है। समझ बढ़ानी चाहिए।
| कहते हैं, जब परमात्मा ही कर रहा है, तो फिर हमको क्या करना इस फर्क को आप समझ लें।
| है। लेकिन यह बैठना वे कर रहे हैं। इतना वे बचा लेते हैं। इसको अगर आप उदास साधुओं के पास जाते हैं, तो वे आपसे वे यह नहीं कहते कि परमात्मा बिठा रहा है, तो ठीक। नहीं, वे आपका आनंद छीनते हैं। आपके कंकड़-पत्थर छीनते हैं। उनके कहते हैं, बैठ हम रहे हैं। हम क्या करें अब! जब परमात्मा ही सब साथ ही आपके भीतर का आनंद भी छिन जाता है। वे आपको कर रहा है, तो फिर हम कुछ न करेंगे। समझ नहीं दे रहे हैं, आपका आनंद छीन रहे हैं। आनंद छीनने से लेकिन हम कुछ न करेंगे, इसका मतलब इतना तो हम कर ही समझ नहीं बढ़ती।
| सकते हैं। इतना हमने अपने लिए बचा लिया। इसका मतलब यह ठीक धर्म आपकी समझ बढ़ाता है, आपकी अंडरस्टैंडिंग बढ़ाता भी हुआ कि जो भी वे कर रहे थे, वे मानते नहीं कि परमात्मा कर है। समझ बढ़ने से, जो व्यर्थ था, वह छूटता चला जाता है; और | रहा था। वे खुद कर रहे थे, इसलिए अब वे कहते हैं, हम रोक जो सार्थक है, उस पर हाथ बंधने लगते हैं। और धीरे-धीरे आप | लेंगे। अब देखें, परमात्मा कैसे करता है! पाते हैं कि संसार अपने आप ऐसे छूट गया, जैसे बच्चे के हाथ से कठिन है यह मानना कि परमात्मा कर रहा है, क्योंकि अहंकार कंकड़-पत्थर। और इसी संसार में उस सारभूत पर दृष्टि पहुंच | | मानने को राजी नहीं होता कि मैं नहीं कर रहा हूं। हां, अगर कुछ जाती है और उससे मिलन हो जाता है।
बरा हो जाए. तो मानने को राजी हो भी सकता है कि परमात्मा कर समझ बढ़नी चाहिए। और समझ बढ़ने के साथ आनंद बढ़ता रहा है। है, घटता नहीं। अगर आप आनंद छोड़ने लगे, तो आनंद भी घटता असफलता आ जाए, तो आदमी आसानी से छोड़ देता है कि है और आपकी समझ भी घटती है।
परमात्मा, भाग्य। सफलता आ जाए, तो वह कहता है, मैं। आप जो भी कर रहे हों, एक बात निरंतर कसते रहना कि उससे | सफलता को उस पर छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। क्यों? आपका आनंद बढ़ रहा है, तो आप निर्भय होकर बढ़ते जाना उसी | क्योंकि सफलता से अहंकार परिपुष्ट होता है। तो जिस चीज से दिशा में। अगर आनंद न भी होगा ठीक, तो भी कोई चिंता की बात | | अहंकार परिपुष्ट होता है, वह तो हम अपने लिए बचाना चाहते हैं। नहीं। दिशा ठीक है। आज नहीं कल, जो गलत है, वह छूट सुनी है मैंने एक कहानी। एक संन्यासी छोटा-सा आश्रम जाएगा; और जो सही है, वह आपकी आंखों में आ जाएगा। पर बनाकर रहता था। आश्रम मैंने बनाया, ऐसा लोगों से कहता था। अपने को साधक को कसते रहना चाहिए। और अगर आपको ज्ञान मैंने पाया, त्याग मैंने किया, ऐसा लोगों से कहता था। एक लगता हो, यह कुछ भी नहीं हो रहा, तो उचित है कि किसी और दिन एक गाय उसके आश्रम में घुस गई और फूल और बगिया को
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