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________________ 0 कर्म-योग की कसौटी को बेच दिए। आप कौड़ियों पर रुक गए। अभी और आगे यात्रा | सभी कुछ उसका है। इसलिए सभी तरफ से उसकी तरफ जाया जा हो सकती थी। आप दरवाजे पर ही ठहर गए। अभी तो यात्रा शुरू सकता है। और हर चीज उसका मंदिर है। ही हुई थी और आपने समझ लिया कि मंजिल आ गई! आपने | जिन्होंने ये बातें समझाई हैं, दुश्मनी की, घृणा की, कंडेमनेशन पड़ाव को मंजिल समझ लिया। ठहरें; लेकिन आगे बढ़ते रहें। की, शरीर को दबाने, नष्ट करने की, वे पैथालाजिकल रहे होंगे; मैंने सुना है, यहूदी फकीर हिलेल से किसी ने पूछा कि अध्यात्म | वे थोड़े रुग्ण रहे होंगे। उनका चित्त थोड़ा मनोविकार से ग्रसित रहा का क्या अर्थ है? तो उसने कहा, और आगे, और आगे। वह होगा। वे स्वस्थ नहीं थे। क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति तो अनुभव करेगा आदमी कुछ समझा नहीं। उसने कहा, मैं कुछ समझा नहीं! तो | कि शरीर तक भी उसी की खबर है। शरीर भी है इस दुनिया में हिलेल ने कहा कि जहां भी तेरा रुकने का मन होने लगे, इस वचन इसीलिए, क्योंकि परमात्मा है। नहीं तो शरीर भी नहीं हो सकेगा। को याद रखना, और आगे, और आगे। जब तक तू ऐसी जगह न और शरीर भी जीवित है, क्योंकि परमात्मा की किरण उस तक पहुंच जाए, जहां और आगे कुछ बचे ही नहीं, तब तक तू बढ़ते | आती है और उसे छूती है। जाना। यही अध्यात्म का अर्थ है। इस भांति जब कोई देखने को चलता है, तो सारा जगत स्वीकार शरीर पर रुकना मत। और आगे। शरीर भी परमात्मा का है। योग्य हो जाता है। कामवासना भी स्वीकार योग्य है। वह आपकी इसलिए बुरा कुछ भी नहीं है। निंदा मेरे मन में जरा भी नहीं है। शक्ति है। और परमात्मा ने उसका उपयोग किया है, बहुलता से लेकिन शरीर शरीर ही है, चाहे परमात्मा का ही हो। वह बाहरी उपयोग किया है। परकोटा है। और आगे। मन भी एक परकोटा है, शरीर से गहरा, फूल खिलते हैं; आप जानते हैं क्यों? पक्षी सुबह गीत गाते हैं; शरीर से सूक्ष्म, लेकिन फिर भी परकोटा है। और आगे। और जब जानते हैं क्यों? मोर नाचता है; जानते हैं क्यों? कोयल बहुत हम शरीर और मन दोनों को छोड़कर भीतर प्रवेश करते हैं, तो सब प्रीतिकर मालूम पड़ती है, क्यों? परकोटे खो जाते हैं और सिर्फ आकाश रह जाता है। वह सब कामवासना है। मोर नाच रहा है, वह प्रेमी के लिए इसलिए किसी भी व्यक्ति के प्रेम से परमात्मा को पाया जा | निमंत्रण है। कोयल गा रही है, वह साथी की तलाश है। फूल खिल सकता है। एक पत्थर की मर्ति के प्रेम में गिरकर भी परमात्मा को | रहे हैं, वह तितलियों की खोज है, ताकि फूलों के वीर्यकणों को पाया जा सकता है। परमात्मा को कहीं से भी पहुंचा जा सकता है। | तितलियां अपने साथ ले जाएं और दूसरे फूलों पर मिला दें। सिर्फ ध्यान रहे कि रुकना नहीं है। उस समय तक नहीं रुकना है, | सेमर का वृक्ष देखा आपने! जब सेमर का फूल पकता है और जब तक कि शून्य न आ जाए और आगे कुछ भी यात्रा ही बाकी न | गिरता है, तो उस फूल के साथ जो बीज होते हैं, उनमें रुई लगी बचे। रास्ता खो जाए, तब तक चलते ही जाना है। | होती है। वनस्पतिशास्त्री बहुत खोजते थे कि इन फूलों के बीज में . लेकिन कामवासना के संबंध में मनुष्य का मन बहुत रुग्ण है। रुई की क्या जरूरत है? सेमर में रुई की क्या जरूरत है? बहुत और हजारों-हजारों साल से आदमी को कामवासना के विपरीत | | खोज से पता चला कि वे बीज अगर सेमर के नीचे ही गिर जाएं, और विरोध में समझाया गया है। शरीर की निंदा की गई है। और | तो सेमर इतना बड़ा वृक्ष है कि वे बीज उसके नीचे सड़ जाएंगे, पनप कहा गया है कि शरीर जो है वह शत्रु है। उसे नष्ट करना है, उससे नहीं सकेंगे। उन बीजों को दूर तक ले जाने के लिए वृक्ष रुई पैदा दोस्ती तोड़नी है। उससे सब संबंध छोड़ देने हैं। शरीर ही बाधा है, | | करता है। ताकि वे बीज रुई में उलझे रहें और हवा के झोंके में रुई ऐसा समझाया गया है। वृक्ष से दूर चली जाए। कहीं दूर जाकर बीज गिरें, ताकि नए वृक्ष इस समझ के दुष्परिणाम हुए हैं। क्योंकि यह नासमझी है, समझ पैदा हो सकें। नहीं है। और जो व्यक्ति अपने शरीर से लड़ने में लग जाएगा, वह वे बीज क्या हैं? बीज वृक्ष के वीर्यकण हैं, वे कामवासना हैं। इसी लड़ाई में नष्ट हो जाएगा। उसकी सारी खोज भटक जाएगी, अगर सारे जगत को गौर से देखें, तो सारा जगत काम का खेल इसी लड़ने में नष्ट हो जाएगा। | है। और इस सारे जगत में केवल मनुष्य है, जो काम से प्रेम तक शरीर भी परमात्मा का है। ठीक आस्तिक इस जगत में ऐसी कोई उठ सकता है। वह केवल मनष्य की क्षमता है। चीज नहीं मानता, जो परमात्मा की नहीं है। आस्तिक मानता है, कामवासना तो पूरे जगत में है। पौधे में, पशु में, पक्षी में, सब 91
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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