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________________ 0 कर्म-योग की कसौटी व तुम जो भी चुनाव करो तुम्हारे लिए, वह तुम्हारा चुनाव है। हर्जा नहीं है। वर्ष, दो वर्ष, चार वर्ष, दस वर्ष इसमें ही खोना पड़े तो हम दुनिया से बहुत-सा उपद्रव अलग कर सकते हैं। | कि मैं क्या हूं, कैसा हूं, मेरा रुझान क्या है, मेरा व्यक्तित्व क्या है, सभी रास्ते सही हैं। लेकिन सभी रास्ते सभी के लिए सही नहीं | तो हर्जा नहीं है। हैं। हर रास्ता पहुंचाता है, लेकिन हर रास्ता आपको नहीं एक बार ठीक से आप अपनी नस को पकड़ लें और अपनी नाड़ी पहुंचाएगा। आपको तो एक ही रास्ता पहुंचा सकता है। इसलिए को पहचान लें, तो रास्ता बहुत सुगम हो जाएगा। अन्यथा आप खोजना जरूरी है कि कौन-सा रास्ता आपको पहुंचा सकता है। अनेक दरवाजों पर भटकेंगे. जो दरवाजे आपके लिए नहीं थे। एक संगीतज्ञ है। एक कवि है। एक चित्रकार है। निश्चित ही, | आप बहत-से रास्तों पर जाएंगे और सिर्फ धल-धवांस खाकर इनके धर्म अलग-अलग होंगे। क्योंकि इनके व्यक्तित्व वापस लौट आएंगे, क्योंकि वे रास्ते आपके लिए नहीं थे। अलग-अलग हैं। लेकिन तब अगर ऐसा भी हो, तो भी यह भूल मत करना कि अगर एक कवि को एक ऐसा धर्म पकड़ाया जाए, जो गणित की | | जिस रास्ते से आपको न मिला हो, तब भी किसी से मत कहना कि तरह रूखा-सूखा, नियमों का धर्म है, तो उसे समझ में नहीं वह रास्ता गलत है। क्योंकि वह रास्ता भी किसी के लिए सही हो आएगा। उससे कोई मेल नहीं बैठेगा। और अगर वह मजबूरी में सकता है। वह आपके लिए गलत सिद्ध हुआ है, इससे सबके लिए उसको ओढ़ भी ले, तो वह ऊपर से ओढ़ा हुआ होगा। उसकी | गलत सिद्ध नहीं हो गया है। आत्मा से कभी भी उसका संबंध नहीं जुड़ेगा। वह धर्म उसके भीतर | ___ इतनी विनम्रता मन में रखनी ही चाहिए खोजी को कि जिस रास्ते बीज नहीं बनेगा, अंकुरित नहीं होगा। उसमें फल-फूल नहीं लगेंगे। | से मैं नहीं पहुंच पाया, जरूरी नहीं है कि वह रास्ता गलत हो। इतना उसे तो कोई काव्य-धर्म चाहिए। ऐसा धर्म जो नाचता हो, गाता हो। | ही सिद्ध होता है कि मुझमें और उस रास्ते में मेल नहीं बना, उसे तो उसी धर्म से मेल बैठ पाएगा। | तालमेल नहीं बना। मैं उस रास्ते के योग्य नहीं था। वह रास्ता मेरे अब एक चित्रकार हो, एक मूर्तिकार हो, उसे तो कोई धर्म | | योग्य नहीं था। लेकिन किसी के योग्य हो सकता है। चाहिए, जो परमात्मा को सौंदर्य की भांति देखता हो। उसे तो कोई | और उस व्यक्ति का खयाल रखकर हमेशा एक स्मरण बनाए धर्म चाहिए, जो सौंदर्य की पूजा करता हो, तो ही उसके अनुकूल | रखना चाहिए कि जब भी कोई चीज गलत हो, तब कहना चाहिए, बैठेगा। ऐसा कोई धर्म जो सौंदर्य का दुश्मन हो, विरोध करता हो | | मेरे लिए गलत हो गई। और जब भी कोई चीज सही हो, तो कहना रस का, राग का, उसके अनुकूल नहीं बैठेगा। और अगर वह चाहिए, मेरे लिए सही हो गई। लेकिन उसे सार्वजनिक, युनिवर्सल किसी तरह उस धर्म में अपने को समाविष्ट भी कर ले, तो कभी भी ट्थ, सार्वभौम सत्य की तरह घोषणा नहीं करनी चाहिए। उससे उसका हृदय उसे छुएगा नहीं। फासला बना ही रहेगा। | अनेक लोगों को कष्ट, पीड़ा और उलझाव पैदा होता है। . एक गणितज्ञ हो और गणित की तरह साफ-सुथरा काम चाहता हो और दो और दो चार ही होते हों, तो उसे कोई कविता वाला धर्म प्रभावित नहीं कर सकता। उसे उपनिषद प्रभावित नहीं करेंगे, एक मित्र ने पूछा है, भक्ति-योग में आपने प्रेम को क्योंकि उपनिषद काव्य हैं। उसे पतंजलि का योग-सूत्र प्रभावित | आधारभूत स्थान दिया है। पता नहीं हम सामान्य करेगा, क्योंकि वह विज्ञान है। लोग प्रेम से परिचित हैं या केवल कामवासना से! ___ अपनी खोज पहले करनी चाहिए, इसके पहले कि आप दोनों में क्या फर्क है? और क्या कामवासना प्रेम परमात्मा की खोज पर निकलें। वह नंबर दो है। आप नंबर एक हैं। | बन सकती है? और अगर आप गलत, अपने को ही नहीं समझ पा रहे हैं ठीक से कि मैं कैसा हूं, क्या हूं, तो आप परमात्मा को न खोज पाएंगे। क्योंकि रास्ता आपसे निकलेगा। | 7 छने जैसा है और समझने जैसा है। क्योंकि हम इसलिए आत्म-विश्लेषण पहला कदम है। और ठीक 4 कामवासना को ही प्रेम समझ लेते हैं। और आत्म-विश्लेषण न हो पाए, तो रुकना; जल्दी मत करना। कोई । कामवासना प्रेम नहीं है, प्रेम बन सकती है।
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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