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ॐ गीता दर्शन भाग-60
परमात्मा उपलब्ध होगा। बूंद खो जाएगी और सागर हो जाएगा। मुसलमान बनते हैं, वे उनकी च्वाइस से बनते हैं। वे मुसलमान धर्म
लेकिन अभी आप प्रथम चरण पर पूर्णता का खयाल न करें। में पैदा नहीं हुए हैं, क्योंकि मुसलमान धर्म तो था नहीं। जब अभी तो आप अपना झुकाव समझ लें। और अपने झुकाव को मोहम्मद के प्रभाव में वे आते हैं, तो अपने चुनाव से आते हैं। वे समझकर चलें। अन्यथा बहुत समय, बहुत शक्ति व्यर्थ ही चली चुनते हैं इस्लाम को। फिर उनके बच्चे तो इस्लाम में पैदा होते हैं, जाती है।
| वे मुर्दा होंगे। अब मैं देखता हूं कि अगर एक व्यक्ति ऐसे घर में पैदा हो जाए, बुद्ध जब पैदा होते हैं, तो जो आदमी बौद्ध बनता है, वह चुनता जिसका जन्मगत संस्कार भावना का है और वह भावना वाला न है। वह सोचता है कि बुद्ध से मेरी बात मेल खाती है कि नहीं? यह हो...। एक व्यक्ति जैन घर में पैदा हो जाए, महावीर की परंपरा में मुझे अनुकूल पड़ती है या नहीं? तो वह तो चुनकर बनता है। पैदा हो जाए, और उसके पास हृदय हो मीरा जैसा, तो मुश्किल में लेकिन उसका बेटा, उसके बेटों के बेटे, वे तो बिना चुने बनेंगे। पड़ेगा। अगर कोई भक्ति के संप्रदाय में पैदा हो जाए, और उसके | बस, जैसे ही जन्म से धर्म जुड़ेगा, वैसे मुर्दा होता जाएगा। पास बुद्धि हो बुद्ध या महावीर जैसी, तो मुश्किल में पड़ेगा। क्योंकि इसलिए बुद्ध जब जिंदा होते हैं, तो जो ताजगी होती है; महावीर जो सिखाया जाएगा, वह उसके अनुकूल नहीं है। और जो उसके जब जिंदा होते हैं, लो उनके आस-पास जो हवा होती है; मोहम्मद अनुकूल हो सकता है, वह उसका संप्रदाय नहीं है।
या जीसस जब जिंदा होते हैं, तो उनके पास जो फूल खिलते हैं, तो अपने विपरीत चलने से बहत कष्ट होगा। और अपने फिर वे बाद में नहीं खिलते। वे धीरे-धीरे मुझाते जाते हैं। मुर्दा ही विपरीत चलकर कोई पहंच नहीं सकता।
जाएंगे। बाद में धर्म एक बोझ हो जाता है। आज दुनिया में जो इतनी अधार्मिकता दिखाई पड़ती है, उसका | हजार, दो हजार साल पहले आपके किसी बाप-दादे ने धर्म चुना एक कारण यह भी है कि आप इस बात की खोज ही नहीं करते कि था, तो उसके लिए तो चुनाव था, क्रांति थी। आपके लिए? आपके आपके अनुकूल क्या है। आप इसकी फिक्र में लगे रहते हैं, मैं किस | लिए बपौती है। आपको मुफ्त मिल गया है, बिना चुनाव किए, घर में पैदा हुआ हूं। कौन-सा शास्त्र मुझे पढ़ाया गया, कुरान, कि बिना मेहनत किए, बिना सोचे, बिना समझे। बस, आपको रटा बाइबिल, कि गीता? आप इसकी फिक्र नहीं करते कि मैं क्या हूं? | दिया गया बचपन से। तो आप उस अर्थ में बौद्ध, मुसलमान, हिंदू मैं कैसा हूं? क्या गीता मुझसे मेल खाएगी? या कुरान मुझसे मेल | नहीं हो सकते। खाएगा? या बाइबिल मुझसे मेल खाएगी? जो आपसे मेल खाता | । मेरी अपनी समझ है कि दुनिया बेहतर होगी, जिस दिन हम धर्मों हो, वही आपके लिए रास्ता है।
| की शिक्षा देंगे-सब धर्मों की और व्यक्ति को स्वतंत्र छोड़ देंगे दुनिया ज्यादा धार्मिक हो सकती है, अगर हम धर्म को जन्म के कि अपना धर्म चुन ले। उस दिन दुनिया से धर्मों के झगड़े भी साथ जोड़ना बंद कर दें। और बच्चों को सारे धर्मों की शिक्षाएं दी | समाप्त हो जाएंगे। क्योंकि एक-एक घर में पांच-पांच, सात-सात जाएं और यह बच्चे के निर्णय पर हो कि जब वह इक्कीस वर्ष का | धर्मों के लोग मिल जाएंगे। क्योंकि कोई बेटा चुनेगा सिक्ख धर्म हो जाए, एक उम्र पा ले प्रौढ़ता की, तब अपना धर्म चुन ले। उसे | | को, कोई बेटा चुनेगा इस्लाम धर्म को, कोई बेटा हिंदू रहना चाहेगा, सारे धर्मों की शिक्षा दे दी जाए और उसे अपने हृदय की पहचान के कोई बेटा ईसाई होना चाहेगा। यह उनकी मौज होगी। और एक घर मार्ग समझा दिए जाएं और इक्कीस वर्ष का होकर वह अपना धर्म | | में जब सात धर्म, आठ धर्म, दस धर्म हो सकेंगे, तो दुनिया से चुन ले। तो यह दुनिया ज्यादा धार्मिक हो सकती है। क्योंकि तब | | धार्मिक दंगे बंद हो सकते हैं, उसके पहले बंद नहीं हो सकते। कोई व्यक्ति अपने अनुकूल चुनेगा।
| उपाय नहीं है उसके पहले बंद करने का अभी आपकी अनुकूलता का सवाल नहीं है। संयोग की बात है | इसलिए धार्मिक आदमियों के लिए तो एक बडी जिम्मेवारी है और कि आप कहां पैदा हो गए हैं। उससे आपका तालमेल बैठता है कि वह यह कि वे अपने बच्चों को अगर सच में धार्मिक बनाना चाहते नहीं बैठता है, कहना मुश्किल है। इसलिए देखें, जब भी कोई धर्म हैं, तो हिंदू, मुसलमान, ईसाई न बनाएं। सिर्फ धर्मों की शिक्षा दें। प्रारंभ होता है, तो उसमें जो जान होती है, वह बाद में नहीं रह जाती। और उनसे कह दें कि तुम समझ लो ठीक से, और जब तुम्हारी मौज
अब मोहम्मद पैदा हों। तो मोहम्मद जब पैदा होते हैं, तो जो लोग आए, और जब तुम्हें भाव पैदा हो, तब तुम चुनाव कर लेना। और