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o कर्म-योग की कसौटी 0
को भर लो, पूरी तरह भर लो। स्त्री गर्भ है, शरीर में भी और मन | वाला दूसरे रास्ते को गलत कहने को तैयार हो जाता है। तब संघर्ष, में भी। वह अपने को भर सकती है। भरने की वृत्ति उसमें सहज है। विवाद, वैमनस्य स्वभावतः पैदा हो जाते हैं। पुरुष अपने को खाली करता है। शरीर के तल पर भी अपने को लेकिन अगर यह बात हमारे खयाल में आ जाए कि जितने खाली करता है। भरना उसे थोड़ा कठिन मालूम होता है। | लोग हैं इस जमीन पर, जितने हृदय हैं, उतने ही रास्ते परमात्मा
तो मीरा को समझ में आती है बात कि परमात्मा से अपने को की तरफ जाते हैं। जाएंगे ही। न मैं आपकी जगह खडा हो सकता भर ले। गर्भ बन जाए और परमात्मा उसमें समा जाए। बुद्ध को | हूं, न आपकी जगह से चल सकता हूं। न तो मैं आपकी जगह जी समझ में आनी मुश्किल है। बुद्ध को लगता है, अपने को उलीच सकता हूं, और न आपकी जगह मर सकता हूं। कोई लेन-देन दूं और सब भांति खाली कर दूं; और जब मैं शून्य हो जाऊंगा, तो | संभव नहीं है। आप ही जीएंगे अपने लिए और आपको ही मरना जो सत्य है, उससे मेरा मिलन हो जाएगा।
पड़ेगा अपने लिए। और आप ही चलेंगे। मैं अपने ही ढंग से बुद्ध शून्य होकर सत्य बनते हैं। मीरा अपने को भरकर पूर्ण से चलूंगा। अगर यह बोध साफ हो जाए-और होना चाहिए-तो सत्य बनती है। उन दोनों के रास्ते अलग हैं। न केवल अलग, बल्कि | दुनिया बेहतर हो सके। विपरीत हैं। लेकिन जहां वे पहुंच जाते हैं, वह मंजिल एक है। अगर यह बोध साफ हो जाए कि प्रत्येक व्यक्ति अपने ही रास्ते __ मंजिल पर पहुंचकर बुद्ध और मीरा में फर्क करना मुश्किल हो से चलेगा, अपने ही ढंग से चलेगा, तो हम धर्मों के बीच कलह जाएगा। सारा फर्क रास्ते का फर्क था। जैसे-जैसे मंजिल करीब | का कोई कारण न खोज पाएं। लेकिन सबको ऐसा खयाल है कि आएगी, अंतर कम होता जाएगा। और जब मंजिल बिलकुल आ जिस रास्ते से मैं चलता हूं, वही ठीक है। उपद्रव होता है। जाएगी, तो आप मीरा की शक्ल में और बुद्ध की शक्ल में फर्क न | जैसे आप हैं, वैसा ही आपका रास्ता होगा। क्योंकि आपका रास्ता कर पाएंगे। आप पहचान भी न पाएंगे, कौन मीरा है, कौन बुद्ध! आपसे ही निकलता है। वह पहुंचेगा परमात्मा तक, लेकिन निकलता
लेकिन यह तो आखिरी घटना है। इस आखिरी घटना के इंचभर | | आपसे है। पहुंचते-पहुंचते आप समाप्त होते जाएंगे और जिस दिन , पहले भी बुद्ध और मीरा को पहचाना जा सकता है। उनमें फर्क होंगे। परमात्मा पर आप पहुंच जाएंगे, पाएंगे कि आप बचे नहीं। यह मैंने मोटी बात कही। लेकिन एक-एक व्यक्ति में फर्क होंगे। इसलिए आज तक किसी व्यक्ति का परमात्मा से मिलना नहीं
इसीलिए दुनिया में इतने धर्म हैं। क्योंकि अलग-अलग लोगों ने हुआ है। जब तक व्यक्ति रहता है, तब तक परमात्मा की कोई खबर अलग-अलग रास्तों से चलकर उस सत्य की झलक पाई है। और नहीं रहती। और जब परमात्मा होता है, तो व्यक्ति समाप्त हो गया जिसने जिस रास्ते से चलकर झलक पाई है. स्वभावतः वह कहेगा. होता है. मिट गया होता है. खो गया होता है। यही रास्ता ठीक है। उसके कहने में कोई गलती भी नहीं है। दूसरे __ जैसे बूंद सागर में गिरती है, तो जब तक बूंद रहती है, तब तक रास्ते वह जानता भी नहीं है। दूसरे रास्तों पर वह चला भी नहीं है। सागर से दूर रहती है, चाहे फासला इंचभर का ही क्यों न हो। आधे और जिन रास्तों पर आप चले नहीं हैं, उनके संबंध में आप क्या इंच का क्यों न हो, जरा-सा रत्तीभर का फासला क्यों न हो, लेकिन कहेंगे? जिस रास्ते से आप गुजरे हैं, कहेंगे, यही ठीक है। और जब तक अभी सागर से दूर है, तभी तक बूंद है। जिस क्षण मिलेगी, कहेंगे कि इसी पर आ जाओ। और समझाएंगे लोगों को कि कहीं बूंद खो गई और सागर ही रह गया। भटक मत जाना किसी और रास्ते पर।
तो यह कहना कि बूंद सागर से मिलती है, बड़ा मुश्किल है। इसलिए जब दुनिया में अलग-अलग धर्मों के लोग कहते हैं कि | मिलती तब है, जब बूंद नहीं रह जाती। और जब तक बूंद रहती है, आ जाओ हमारे रास्ते पर, तो जरूरी नहीं है कि उनके इस कहने में | | तब तक मिलती नहीं, तब तक दूर रहती है। करुणा न हो और सिर्फ आपको बदलने की राजनैतिक आकांक्षा आप मिट जाएंगे रास्ते पर। रास्ता आपको समाप्त कर लेगा। हो। जरूरी नहीं है। हो सकता है करुणा हो; और हो सकता है कि | रास्ते का मतलब ही है, अपने मिटने का उपाय, अपने को खोने का जिस रास्ते पर चलकर उनको आनंद की खबर मिल रही है, वे | | उपाय, समाप्त करने का उपाय। चाहते हों कि आप भी उसी पर चलें।
धर्म एक अर्थ में मृत्यु है और एक अर्थ में जीवन। इस अर्थ में लेकिन इससे खतरा पैदा होता है। इससे हर रास्ते को जानने मृत्यु है कि आप मिट जाएंगे; और इस अर्थ में महा जीवन कि
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