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गीता दर्शन भाग-6
कि कैसे। क्योंकि तुम्हें पता हो गया कि ऐसे डूबा जा सकता है; तब सीधे परमात्मा में डूब जाओ। तब अपने बिंदु, और अपने मंत्र, और अपने यंत्र, सब छोड़ दो, और सीधी छलांग लगा । जो सीधा कूद सके, इससे बेहतर कुछ भी नहीं है। प्रेमी सीधा कूद सकता है। लेकिन अगर बुद्धि बहुत काम करती हो, तो फिर पूछेगी, हाउ ? कैसे? तो फिर योग की परंपरा है, पतंजलि के सूत्र हैं, फिर साधो । फिर उनको साध-साधकर पहले सीखो एकाग्रता, फिर तन्मयता में उतरो ।
अभ्यासरूप-योग के द्वारा मुझे प्राप्त करने की इच्छा कर। और यदि तू ऊपर कहे हुए अभ्यास में भी असमर्थ हो... ।
यह भी हो सकता है कि तू कहे कि बड़ा कठिन है। कहां बैठें ! और कितना ही बैठो सम्हालकर, शरीर कंपता है। और मन को कितना ही रोको, मन रुकता नहीं। और ध्यान लगाओ, तो नींद आती है, तल्लीनता नहीं होती।
अगर तू इसमें भी समर्थ न हो, तो फिर एक काम कर। तो केवल मेरे लिए कर्म करने के ही परायण हो। इस प्रकार मेरे अर्थ कर्मों को करता हुआ मेरी प्राप्ति, मेरी सिद्धि को पा सकेगा।
अगर तुझे यह भी तकलीफ मालूम पड़ती हो, अगर भक्ति-योग तुझे कठिन मालूम पड़े, तो फिर ज्ञान योग है। ज्ञान योग का अर्थ है, योग की साधना, अभ्यास । अगर तुझे वह भी कठिन मालूम पड़ता हो, तो फिर कर्म - योग है। तो फिर तू इतना ही कर कि सारे कर्मों को मुझमें समर्पित कर दे। और ऐसा मान ले कि तेरे भीतर मैं ही कर रहा हूं। और मैं ही तुझसे करवा रहा हूं। और तू ऐसे कर जैसे कि मेरा साधन हो गया है, एक उपकरण मात्र । न पाप तेरा, न पुण्य तेरा । न अच्छा तेरा, न बुरा तेरा। सब तू छोड़ दे और कर्म को मेरे प्रति समर्पित कर दे।
ये तीन हैं। श्रेष्ठतम तो प्रेम है। क्योंकि छलांग सीधी लग जाएगी। नंबर दो पर साधना है। क्योंकि प्रयास और अभ्यास से लग सकेगी। अगर वह भी न हो सके, तो नंबर तीन पर जीवन का कर्म है। फिर पूरे जीवन के कर्म को प्रभु-अर्पित मानकर चलता जा।
इन तीन में से ही किसी को चुनाव करना पड़ता है। और ध्यान रहे, जल्दी से तीसरा मत चुन लेना। पहले तो कोशिश करना, खयाल करना पहले की, प्रेम की। अगर बिलकुल ही असमर्थ अपने को पाएं कि नहीं, यह हो ही नहीं सकता... ।
कुछ लोग प्रेम में बिलकुल असमर्थ हैं। असमर्थ हो गए हैं अपने अभ्यास से । जैसे कोई आदमी अगर धन को बहुत पकड़ता हो,
पैसे को बहुत पकड़ता हो, तो प्रेम में असमर्थ हो जाता है। क्योंकि विपरीत बातें हैं। अगर पैसे को जोर से पकड़ना है, तो आदमी को प्रेम से बचना पड़ता है। क्योंकि प्रेम में पैसे को खतरा है। प्रेमी पैसा इकट्ठा नहीं कर सकता। जिनसे प्रेम करेगा, वे ही उसका पैसा खराब करवा देंगे। प्रेम किया कि पैसा हाथ से गया।
तो जो पैसे को पकड़ता है, वह प्रेम से सावधान रहता है कि प्रेम की झंझट में नहीं पड़ना है। वह अपने बच्चों तक से. भी जरा सम्हलकर बोलता है। क्योंकि बाप भी जानते हैं, अगर जरा मुस्कुराओ, तो बच्चा खीसे में हाथ डालता है। मत मुस्कुराओ, | अकड़े रहो, घर में अकड़कर घुसो । बच्चा डरता है कि कोई गलती तो पता नहीं चल गई। गलती तो बच्चे कर ही रहे हैं। और बच्चे नहीं करेंगे, तो कौन करेगा ! तो समझता है कि कोई गड़बड़ हो गई है; जरा दूर ही रहो। लेकिन बाप अगर मुस्कुरा दे, तो बच्चा फौरन खीसे में हाथ डालता है।
तो बाप पत्नी से भी सम्हलकर बात करता है। क्योंकि जरा ही वह ढीला हुआ और उसकी जरा कमर झुकी कि पत्नी ने बताया कि उसने साड़ियां देखी हैं। फलां देखा है।
तो जिसको पैसे पर बहुत पकड़ है, वह प्रेम से तो बहुत डरा हुआ | रहता है। और हम सबकी पैसे पर भारी पकड़ है। एक-एक पैसे पर पकड़ है। और बहाने हम कई तरह के निकालते हैं कि पैसे पर हमारी पकड़ क्यों है। लेकिन बहाने सिर्फ बहाने हैं। एक बात पक्की है कि पैसे की पकड़ हो, तो प्रेम जीवन में नहीं होता।
तो जितना ज्यादा पैसे की पकड़ वाला युग होगा, उतना प्रेमशून्य होगा। और प्रेमपूर्ण युग होगा, तो बहुत आर्थिक रूप से संपन्न नहीं हो सकता। पैसे पर पकड़ छूट जाएगी।
प्रेमी आदमी बहुत समृद्ध नहीं हो सकता। उपाय नहीं है। पैसा छोड़कर भाग जाएगा उसके हाथ से। किसी को भी दे देगा। कोई भी उससे निकाल लेगा।
तो हम अगर प्रेम में समर्थ हो सकें, तब तो श्रेष्ठतम । अगर न हो सकें, तो फिर अभ्यास की फिक्र करनी चाहिए । फिर | योग-साधन हैं। अगर उनमें भी असफल हो जाएं, तो ही तीसरे का | प्रयोग करना चाहिए, कि फिर हम कर्म को...। क्योंकि वह मजबूरी है। जब कुछ भी न बने, तो आखिरी है।
जैसे पहले आप एलोपैथ डाक्टर के पास जाते हैं। अगर वह असफल हो जाए, फिर होमियोपैथ के पास जाते हैं। वह भी असफल हो जाए, तो फिर नेचरोपैथ के पास जाते हैं। वह नेचरोपैथी
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