SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ O अहंकार घाव है । खड़े हो जाते हैं, तो फिर सबको खड़ा होना पड़ता है। पांच मिनट बैठकर कीर्तन में सम्मिलित हों। है, वह आखिरी है। जब कि ऐसा लगे कि अब कुछ होता ही नहीं | है; कि ज्यादा से ज्यादा नेचरोपैथ मारेगा और क्या करेगा, तो ठीक है अब। सब हार गए, तो अब कहीं भी जाया जा सकता है। कर्म-योग आखिरी है। क्योंकि उसके बाद फिर कुछ भी नहीं है उपाय। तो सीधा कर्म-योग से प्रयोग शुरू मत करना, नहीं तो दिक्कत में पड़ जाएंगे। क्योंकि उससे नीचे गिरने की कोई जगह नहीं है। पहले प्रेम से शुरू करना। अगर हो जाए, अदभुत। न हो पाए, तो अभी दो उपाय हैं। अभी दो इलाज बाकी हैं। फिर अभ्यास का प्रयोग करना। और जल्दी मत छोड़ देना। क्योंकि अभ्यास तो वर्षों लेता है। तो वर्षों मेहनत करना। अगर हो जाए, तो बेहतर है। अगर न हो पाए, तो फिर कर्म पर उतरना। __ और ध्यान रहे, जिसने प्रेम का प्रयोग किया और असफल हुआ, और जिसने योग का अभ्यास किया-अभ्यास किया, मेहनत की-और असफल हुआ, वह कर्म-योग में जरूर सफल हो जाता है। लेकिन जिसने न प्रेम का प्रयोग किया, न असफल हुआ; न जिसने योग साधा. न असफल हआ. वह कर्म-योग में भी सफल नहीं हो पाता। वे दो असफलताएं जरूरी हैं तीसरे की सफलता के लिए। क्योंकि फिर वह आखिरी कदम है और जीवन-मृत्यु का सवाल है। फिर आप पूरी ताकत लगा देते हैं। क्योंकि उसके बाद फिर कोई विकल्प नहीं है। इसलिए निकृष्ट से शुरू मत करना। कई लोग अपने को धोखा देते रहते हैं। वे कहते हैं, हम तो कर्म-योग में लगे हैं। मेरे पास लोग आ जाते हैं। धंधा करते हैं, नौकरी करते हैं। वे कहते हैं, हम तो कर्म-योग में लगे हैं। जैसे कोई भी काम करना कर्म-योग है! कोई भी काम करना कर्म-योग नहीं है। कर्म-योग का मतलब है, काम आप नहीं कर रहे, परमात्मा कर रहा है, यह भाव। दुकान आप नहीं चला रहे, परमात्मा चला रहा है। और फिर जो भी सफलता-असफलता हो रही है, वह आपकी नहीं हो रही है, परमात्मा की हो रही है। और जिस दिन आप दीवालिया हो जाएं, तो कह देना कि परमात्मा दीवालिया हो गया। और जिस दिन धन बरस पड़े, तो कहना कि उसका ही श्रेय है। मैं नहीं हैं। अपने को हटा लेना और सारा कर्म उस पर छोड़ देना। अब हम कीर्तन करें। बीच में उठे मत। थोड़े-से पांच मिनट के लिए नासमझी कर देते हैं। और जब कीर्तन चलता है, तब आप 83
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy