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________________ अहंकार घाव है खयाल कम रहता है। आंख बंद की कि मुश्किल हो जाती है। आपसे लोग कहते हैं, एकांत में बैठ जाओ। आप कहते हैं, एकांत में तो और मुसीबत हो जाती है। इतना तो लोगों से बातचीत करते रहते हैं, तो मन सुलझा रहता है। उलझा रहता है, इसलिए लगता है, सुलझा है! अकेले में तो हम ही रह जाते हैं, और बड़ी तकलीफ होती है। मुल्ला नसरुद्दीन अपने डाक्टर के पास गया था। और डाक्टर से कहने लगा, एक बड़ी मुसीबत हो गई है। सुबह - सांझ, रात - सुबह, जागूं कि सोऊं, बस एक मुश्किल हो गई है, अपने से बातें, अपने से बातें, अपने से बातें करने में लगा हूं। कुछ इलाज ? डाक्टर ने कहा, इतने परेशान मत होओ। लाखों लोग अपने से बातें करते हैं। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, आप समझे नहीं । तुम्हें पता नहीं है, अपने से बात करने से मैं भी इतना न घबड़ाता। लेकिन मैं इतना उबाने वाला हूं कि अभी तक मैं दूसरों को बोर करता था, अब खुद ही को कर रहा हूं। अभी तक दूसरों को उबाता था। तब तक भी थोड़ी राहत थी। अब मैं अपने को ही उबाता हूं चौबीस घंटे। वही बातें जो हजार दफे कह चुका हूं, कह रहा हूं। इसलिए हम भागते हैं अकेलेपन से। जल्दी पकड़ो किसी को । कहीं भी कोई मिल जाए, तो एकदम झपट पड़ते हैं, आक्रमण कर देते हैं। हमारे प्रश्न, हमारी बातचीत कुछ नहीं है, भीतर की बेचैनी | है। अब मौसम आपको भी पता है कि कैसा है। जिससे आप पूछ रहे हैं, उसको भी पता है कि कैसा है। आप कहते हैं, कहो, कैसा मौसम है ? क्या पूछना है ! नहीं लेकिन सिलसिला शुरू कर रहे हैं आप सिर्फ । ये तो सिर्फ ट्रिक्स हैं प्राथमिक । फिर जल्दी से आप जो आपके भीतर उबल रहा है, वह उसके ऊपर उबाल देंगे। फिर जो ज्यादा ताकतवर होगा, वह दूसरे को दबाकर उसकी खोपड़ी में बातें डालकर भाग खड़ा होगा। जो कमजोर होगा, वह बेचारा सुन लेगा, कि ठीक है। अब दुबारा जरा सावधान रहना इस आदमी से। जब यह पूछे कि मौसम कैसा है, तभी निकल जाना। लेकिन अकेले में घबड़ाहट होती है, क्योंकि अकेले में आप ही अपने से पूछ रहे हैं कि मौसम कैसा है और आपको पता है कि मौसम कैसा है। कुछ... । लेकिन तिलोपा ने नारोपा को कहा, आंख बंद कर और डूब जा । और वह डूब गया। छोटे बच्चे जैसा रहा होगा। 81 जमीन बचपन में थी। अब जमीन जवान है; अडल्ट हो गई है। हजार, दो हजार, तीन हजार साल पहले, पांच हजार साल पहले जो लोग थे, बच्चों जैसे थे। उनसे कहा कि डूब जाओ, तो वे डूब गए। उन्होंने नहीं पूछा कि कैसे ? हम पूछेंगे, कैसे ? तो कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अगर तू डूब सकता हो मुझमें, | तो डूब जा । फिर तो कोई बात करने की नहीं है। लेकिन अर्जुन सुसंस्कृत क्षत्रिय है। पढ़ा-लिखा है । उस समय का बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी है। तो कृष्ण को भी शक है कि वह डूब सकेगा कि नहीं। तो वे कहते हैं, और अगर न डूब सके, तो फिर | अभ्यासरूप-योग द्वारा मुझको प्राप्त होने की इच्छा कर। फिर तुझे अभ्यास करना पड़ेगा। भक्त बिना योग के पहुंच जाता है। जो भक्त नहीं हो सकता, उसको योग से जाना पड़ता है। योग का मतलब है, टेक्नालाजी । अगर सीधे नहीं डूब सकते, तो टेक्नीक का उपयोग करो। तो फिर एक बिंदु बनाओ। उस पर चित्त को एकाग्र करो। कि एक मंत्र लो। सब शब्दों को छोड़कर, ओम, ओम, एक ही मंत्र को दोहराओ, दोहराओ। सारा ध्यान उस पर एकाग्र करो। । अगर मंत्र से काम न चलता हो, तो शरीर को बिलकुल थिर करके आसन में रोक रखो। क्योंकि जब शरीर बिलकुल थिर हो जाता है, तो मन को थिर होने में सहायता पहुंचाता है। तो शरीर को बिलकुल पत्थर की तरह, मूर्ति की तरह थिर कर लो। सिद्धासन है, पद्मासन है, उसमें बैठ जाओ। अगर आंख खोलने से बाहर की चीजें दिखाई पड़ती हैं, और आंख बंद करने से भीतर की चीजें दिखाई पड़ती हैं, तो आधी आंख खोलो। तो नाक ही दिखाई पड़े बस, इतना बाहर। और भीतर भी नहीं, बाहर भी नहीं। तो नाक पर ही अपने करो। ये सब टेक्नीक हैं। ये उनके लिए हैं, भक्त नहीं हो सकते। जो प्रेम नहीं कर सकते, उनके लिए हैं। योग उनके लिए है, जो प्रेम में असमर्थ हैं। जो प्रेम में समर्थ हैं, उनके लिए योग की कोई भी जरूरत नहीं है। लेकिन जो प्रेम में समर्थ नहीं हैं, उनको पहले अपने को तैयार करना पड़े कि कैसे डूबें । तो नाक के बिंदु पर डूबो; कि नाभि पर ध्यान को केंद्रित करो; कि बंद कर लो अपनी आंखों को और भीतर एक प्रकाश का बिंदु कल्पित करो, उस पर ध्यान को एकाग्र करो। वर्षों मेहनत करो। अभ्यासरूप-योग द्वारा ! और जब इन छोटे-छोटे, छोटे-छोटे प्रयोगों से अभ्यास | करते-करते वर्षों में तुम इस जगह आ जाओ कि अब तुम न पूछो
SR No.002409
Book TitleGita Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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