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अहंकार घाव है
निरहंकार का मतलब है, हम प्रतियोगिता के बाहर हट गए। अब हमसे कोई आगे-पीछे कहीं भी हो, इससे कोई प्रयोजन नहीं है। हम अपने होने से राजी हो गए। अब हमारी दूसरे से कोई स्पर्धा नहीं है।
निरहंकार का मतलब है, मैं जैसा हूं, हूं। अब मैं किसी के आगे और पीछे अपने को रखकर नहीं सोचता। अब मैं अपनी तुलना नहीं करता हूं। और मेरा मूल्य मैं तुलना से नहीं आंकता हूं।
जिस दिन कोई व्यक्ति अपना मूल्य तुलना से नहीं आंकता, उसने संसार के तराजू से अपने को हटा लिया। लेकिन ऐसा व्यक्ति परमात्मा की आंखों में मूल्यवान हो जाता है। जो व्यक्ति पड़ोसियों की आंखों का मूल्य खोने को राजी है, वह परमात्मा की आंखों में मूल्यवान हो जाता है । और जो व्यक्ति पड़ोसियों की आंखों में ही अपने मूल्य को थिर करने में लगा है, उसका कोई मूल्य परमात्मा की आंखों में नहीं हो सकता है।
यहां से जो हटता है प्रतियोगिता से, तत्क्षण परमात्मा के हाथों में उसका गौरव है। इसलिए जीसस ने कहा कि जो यहां अंतिम हैं, वे प्रभु के राज्य में प्रथम हो जाएंगे।
लेकिन आप अंतिम होने की कोशिश इसलिए मत करना कि प्रभु राज्य में प्रथम होना है ! नहीं तो आप अंतिम हो ही नहीं रहे हैं। जीसस जिस दिन पकड़े गए और जिस दिन, दूसरे दिन उनकी मौत हुई, रात जब उनके शिष्य उन्हें छोड़ने लगे, तो एक शिष्य ने उनसे पूछा कि जाते-जाते यह तो बता दो ! माना कि तुम्हारे प्रभु के राज्य में हम प्रथम होंगे, लेकिन हम भी बारह हैं। तो सबसे प्रथम कौन होगा? माना कि तुम तो प्रभु के पुत्र हो, तो बिलकुल सिंहासन बगल में बैठोगे। लेकिन तुम्हारे बगल में कौन बैठेगा?
वे बारह जो शिष्य हैं, उनको भी चिंता है कि वहां बारह की पोजीशन! कौन कहां बैठेगा? तो बात ही चूक गई। जीसस को खो गए। फिर जीसस को समझे ही नहीं ।
प्रभु के राज्य में प्रथम होंगे, यह परिणाम है, अगर आप अंतिम होने को राजी हैं। लेकिन अगर यह आपकी वासना है, तो यह कभी भी नहीं होगा। क्योंकि तब आप अंतिम होने को राजी ही नहीं हैं। तब तो आप प्रथम ही होने को राजी हैं। यह संसार हो कि वह संसार हो, कहीं भी, लेकिन होना प्रथम है। आप लगे हैं उपद्रव में प्रतियोगिता के ।
निरहंकार का अर्थ है कि परमात्मा की आंखों में जैसा भी मैं हूं, मैं आनंदित हूं। और अब मैं किसी से तुलना नहीं करता हूं। और मैं छोड़ता हूं प्रतियोगिता । यह समझ, यह बोध जिसे आ जाए, फिर
वह इसकी फिक्र नहीं करेगा कि क्या तकलीफें होंगी। कोई तकलीफ न होगी। सब तकलीफें अहंकार से होती हैं। निरहंकारी को कोई भी | तकलीफ नहीं है। चुभता ही कांटा, अहंकार के घाव में है।
एक आदमी निकला और उसने नमस्कार नहीं किया। रोज करता था। तकलीफ शुरू हो गई। कुछ भी नहीं था। यह हाथ जोड़ लेता था, तो क्या मिलता था! और आज नहीं जोड़े, तो क्या तकलीफ हो रही है ! किसी ने गाली दे दी, तो तकलीफ हो गई ! किसी ने जरा ढंग से न देखा, तो तकलीफ हो गई। रास्ते से जा रहे थे, कोई हंसने लगा, तो तकलीफ हो गई। कहां, यह घाव है कहां ?
यह आपका अहंकार है, जिसमें यह घाव है। तो आप सोचते हैं कि कोई हंस रहा है, तो बस, मुझे ही सोचकर हंस रहा है। कोई गाली दे रहा है, तो मुझे नीचे उतार रहा है। आप ऊपर चढ़े क्यों हैं? | कोई गाली भी देकर कितना नीचे उतारेगा? आप उससे पहले ही नीचे खड़े हो जाएं।
कोई सम्मान नहीं कर रहा है, तो पीड़ा हो रही है। क्योंकि सम्मान की मांग है। दुख दूसरा नहीं दे रहा है। दुख का घाव आप पहले बनाए हैं; दूसरा तो घाव को छू रहा है सिर्फ ।
अहंकार छूटते ही पीड़ा का विसर्जन हो जाता है। आपका घाव ही समाप्त हो गया।
आपने खयाल किया है, अगर पैर में चोट लग जाए किसी दिन, तो फिर दिनभर उसी जगह चोट लगती है। लेकिन आपने खयाल किया कि सारी जमीन आपके घाव की इतनी फिक्र कर रही है ! दरवाजे से निकलें, तो दरवाजा उसी में चोट मारता है। कुर्सी के पास जाएं, तो कुर्सी उसमें चोट मारती है। बच्चे से बात करने लगें, तो बच्चा उस पर पैर रख देता है। यह मामला क्या है कि सारी | दुनिया को पता हो गया है कि आपके पैर में चोट लगी है ! और सब उसी को चोट मार रहे हैं !
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किसी को पता नहीं है। लेकिन आज आपको चोट लगती है, क्योंकि घाव है । कल भी लगती थी, लेकिन पता नहीं चलता था, क्योंकि घाव नहीं था। कल भी इस बच्चे ने यहीं पैर रखा था, और यह कुर्सी कल भी यहीं छू गई थी, लेकिन तब आपको पता भी नहीं चला था, क्योंकि घाव नहीं था ।
अहंकार घाव है। फिर हर चीज उसी में लगती है। आप तैयार ही खड़े हैं कि आओ और लगो ! और जब तक कुछ न लगे, तब तक आपको बेचैनी लगती है कि आज बात क्या है, कुछ लग नहीं रहा है! और हर आदमी सम्हला हुआ चल रहा है कि कोई न कोई