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________________ ॐ कृष्ण की भगवत्ता और डांवाडोल अर्जुन चेष्टा है। हम अपने मतलब की गवाही सदा खोज लेते हैं। | हो रही है। और ऐसी शांति है कि जिसको कभी कोई बुद्ध उपलब्ध सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन एक तीर्थयात्रा पर निकला था। | हो पाता है। मैं उसका दर्शन करके सपने से लौटा हूं। अकेला था। रास्ते में एक मौलवी और साथ हो लिया। फिर एक | दोनों ने मुल्ला नसरुद्दीन से कहा कि तुम्हारा क्या है ? उसने कहा योगी भी साथ हो लिया। फिर तीनों एक गांव में रुके। लेकिन मौलवी | | कि मेरा तो सपना बड़ा साधारण है। मेरा गुरु, सूफियों का गुरु ने कहा कि मेरा तो अभी नमाज का समय है, और योगी ने कहा कि | | खिज्र, मुझे दिखाई पड़ा। उसने कहा कि मुल्ला नसरुद्दीन, उठ। तू अभी तो मैं अपने योगासन, अपनी साधना करूंगा। तो नसरुद्दीन से मेरा शिष्य है, तो मेरी आज्ञा मान, इसी वक्त उठ और हलुवा खा। कहा कि तू जाकर गांव से कुछ थोड़ी-सी भिक्षा जुटा ला! | दिस वेरी मोमेंट! गुरु की आज्ञा मानने के लिए मजबूरी हो गई। मैं तो नसरुद्दीन कुछ पैसे जुटाकर हलुवा खरीदकर ले आया। आते | आधी रात उठकर हलुवा खा चुका हूं। ही उसने कहा कि बेहतर हो कि हम जल्दी इस हलुवे का विभाजन आदमी अपने मतलब से सब कुछ खोजता है। उसके सपने भी कर लें। और स्वभावतः पहला हिस्सा मुझे मिलना चाहिए, क्योंकि | उसके मतलब से निर्मित होते हैं, उसके सत्य भी। उसकी कल्पनाएं इस हलुवे को उपस्थित करने में मैंने साधन का काम किया है। भी उसके मतलब से जन्मती हैं, उसके सिद्धांत भी। आदमी बहुत लेकिन मौलवी ने कहा कि अभी तो मुझे भूख नहीं है, और योगी | जटिल, बहुत जटिल घटना है। ने कहा कि मैं तो सूरज डूबने के पहले ही सिर्फ तीन दिन में एक । अर्जुन की जटिलता को खयाल में लें। जटिलता यह है कि वह बार भोज जन करता है. इसलिए सांझ को ही भोजन लंगा। तो अभी मानना भी नहीं चाहता कि कष्ण भगवान हैं और मानना भी चाहता रखो, अभी हम यात्रा करें, सांझ को देखेंगे। है, ईदर-ऑर। दोनों उसके सामने हैं। और ऐसे दोनों ही हम सबके सांझ भी आ गई, लेकिन तब सवाल बड़ा गहन यह हो गया कि सामने सदा होते हैं। उस हलुवे को बांटा किस तरह जाए! मौलवी ने कहा कि मैं एक | हम सब का ही प्रतीक है अर्जुन। हम सबके भीतर ही ऐसा द्वंद्व धर्म का दीक्षित पुरोहित हूं, तो पहला हक और बड़ा हक मेरा है।। | है। हम मानना भी चाहते हैं और नहीं भी मानना चाहते हैं। हम और योगी ने कहा, आप हों कितने ही दीक्षित पुरोहित, लेकिन | करना भी चाहते हैं और नहीं भी करना चाहते हैं। हम जीना भी मुझसे बड़ी योग की आपकी कोई संपदा नहीं है। मैं समाधि को | चाहते हैं और नहीं भी जीना चाहते हैं। हम शांत भी होना चाहते हैं उपलब्ध हो चुका हूं, इसलिए हक पहला मेरा है। और नसरुद्दीन ने | और नहीं भी होना चाहते हैं। दोनों विरोध हमारे भीतर एक साथ कहा कि आप भला कितने ही पहुंच गए हों, लेकिन हलुवा लाने में | | खड़े हुए हैं। और हम जीवनभर यही करते रहते हैं। कि जैसे कोई साधन रूप में ही सिद्ध हुआ हूं। एक सिक्का हो आपके पास, तो कभी उसे उलटा कर लें और कभी ___ बात इतनी झगड़ने की हो गई कि सांझ भी हो गई, सूरज भी डूब | उसे सीधा कर लें। दूसरा पहलू नीचे दब जाता है, लेकिन मौजूद गया। और तब तो योगी ने कहा कि अब सुबह ही कुछ हो सकता रहता है। फिर ऊब जाते हैं एक पहलू से, तो दूसरा ऊपर कर लेते है, क्योंकि सूरज डूब चुका है; मैं सुबह सूरज उगने पर ही भोजन हैं। हम जिंदगीभर इस द्वंद्व के बीच ही डोलते रहते हैं। ले सकता हूं। तो यह तय पाया गया कि हम तीनों सो जाएं और जो हम सबका मन एक ही साथ विपरीत को करना चाहता है। हम रात सबसे अच्छा सपना देखे, श्रेष्ठतम, सुबह हम अपने सपने | श्रद्धा भी करना चाहते हैं और अश्रद्धा भी हमारी गहरी है। यह कहें, जो श्रेष्ठतम सपना देखे, वही हलुवे का मालिक हो, और वह जटिलता है। और इस जटिलता को बिना समझे जो चलेगा, वह जिसको जितना दे दे। वे रात सो गए। इस जटिलता के बाहर कभी भी नहीं हो पाएगा। इस जटिलता को सुबह ब्रह्ममुहूर्त में ही तीनों उठ आए। मौलवी ने कहा कि मैंने | जो समझ लेगा, वह इसके बाहर हो सकता है। देखा कि मेरे धर्म का संस्थापक मेरे सिर पर हाथ रखे हुए सपने में | अर्जुन को भी पता नहीं है। यह बहुत अनकांशस, यह बहुत खड़ा है। और मुझे आशीर्वाद दे रहा है और मुझसे कह रहा है कि | अचेतन है। अगर अर्जुन से भी हम यह कहें कि नहीं, ये तू जो तुझसे श्रेष्ठ शिष्य मेरा कोई दूसरा नहीं है। गवाहियां इकट्ठी कर रहा है, ये इसलिए इकट्ठी कर रहा है कि तुझे योगी ने कहा, यह कुछ भी नहीं है। क्योंकि मैंने देखा कि मैं परम | संदेह है। तो वह भी चौंकेगा कि आप क्या कह रहे हैं! मैं भगवान मोक्ष में प्रवेश कर गया सपने में और मेरे ऊपर फूलों की अनंत वर्षा | मानता हूं। और अगर कृष्ण जिद्द करें कि नहीं, तू मानता नहीं है। 69
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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