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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-58 प्रामाणिक है। चाहता है कि मान ले कि कृष्ण भगवान हैं, इसलिए रूस उन्नीस सौ सत्रह के पहले ऐसा ही आस्तिक था, जैसा भारत गवाही भी जुटाता है। लेकिन फिर भी गवाहियां ऊपर ही रह जाती आज है। और करीब-करीब सब तरह से हालत ठीक वैसी है भारत हैं। और तब वह कहता है, स्वयं आप भी ऐसा ही मेरे प्रति कहते हैं। की, जैसी उन्नीस सौ सत्रह के पहले रूस की थी। परम आस्तिक था और हे केशव, जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस समस्त रूस। चर्चों में भीड़ होती थी। लोग धर्म-प्रवचन सुनते थे। बाइबिल को मैं सत्य मानता हूं। पढ़ते थे। मस्जिदों में प्रार्थना करते थे। बड़े आस्तिक लोग थे। यह मानना जानना नहीं है। यह मानना वस्तुतः मानना नहीं है, फिर क्रांति हुई और कम्युनिस्टों ने आस्तिकता के विपरीत पहली क्योंकि इतने बड़े सत्य को मानते ही तो जीवन रूपांतरित हो जाता | दफा दुनिया में एक राष्ट्र निर्मित किया। दस साल के भीतर है। यह तो मानते ही अर्जुन का दूसरा जन्म हो जाए। लेकिन अर्जुन | आस्तिक खो गए! हजारों साल पुराने आस्तिक दस साल में वही का वही रहता है यह मानने के बाद भी। | पिघलकर बह गए; उनका पता चलना बंद हो गया। समाज जिस धर्म को मानने के बाद आपका जीवन न बदले, तो आप | नास्तिक हो गया। जो कल आस्तिक होकर जीसस की पूजा करते समझना कि आपने धर्म को माना नहीं। जिस आग में हाथ डालें थे, वे ही नास्तिक होकर लेनिन के चरणों में सिर रख दिए। जो कल और हाथ भी न जले, तो समझना कि वह आग झूठी होगी, सपने | | | चर्च और जेरूसलम की तरफ नमस्कार करते थे, या मक्का और की होगी, कल्पना की होगी, कागजी होगी। होगी नहीं। चित्र पुता | मदीना की तरफ जिनके सिर झुकते थे, उनके ही सिर क्रेमलिन के होगा आग का, उसमें आप हाथ डाल रहे हैं। लाल सितारे की तरफ झुकने लगे। सारा मुल्क नास्तिक हो गया। ___ऐसा अगर अर्जुन जान ले कि कृष्ण भगवान हैं, तो अर्जुन वैसे | बड़ी हैरानी की बात है! इतनी सस्ती बात है कि पूरा का पूरा ही खो जाएगा, जैसे बूंद सागर में खो जाती है। इसी क्षण खो जाएगा। मुल्क दस साल, दस-पंद्रह साल में आस्तिक से नास्तिक हो जाए! लेकिन यह भी उसकी चेष्टा है, यह मानना भी उसका बौद्धिक नास्तिक होना आसान हो गया, आस्तिक होना कठिन हो गया। प्रयास है। यह भी प्रयत्न है, यह भी एक श्रम है, यह भी एक अभी आपकी आस्तिकता, हमारी आस्तिकता भी ऐसी ही है। कोशिश है। और इसलिए कोशिश कभी भी गहरी नहीं जाती, क्योंकि आस्तिक होना आसान है, इसलिए हम आस्तिक हैं। 3 ऊपर-ऊपर रह जाती है; और भीतर विपरीत दशा मौजूद रहती है। नास्तिक होना आसान हो जाए, तो हम नास्तिक हो जाएं। जो भी भीतर विपरीत दशा मौजूद रहती है। वह विपरीत दशा अर्जुन के कनवीनिएंट है। हमारा धर्म एक तरह की कनवीनिएंस है, एक तरह भीतर भी मौजूद है। यद्यपि उसे थोड़ा आनंद आ रहा है यह बात की सुविधा है। जिस बात में सुविधा होती है, वह हम करते रहते कहने में कि इस समस्त को मैं सत्य मानता हूं। हैं। मंदिर जाने में सुविधा होती है, तो हम करते रहते हैं। हे भगवन्, आपके लीलामय स्वरूप को न दानव जानते हैं और एक मित्र मेरे पास आए थे कुछ दिन हुए। उन्होंने कहा कि मुझे न देवता ही जानते हैं। भरोसा बिलकुल नहीं है, न मंदिर में, न भगवान में। लेकिन लड़की ___ इससे उसके अहंकार को थोड़ा आनंद भी आ रहा है, लेकिन मैं की शादी करनी है, इसलिए मंदिर जाना पड़ता है। और किसी से जानता हूं। न देवता जानते हैं, न दानव जानते हैं। आपके इस | कह भी नहीं सकता कि मेरा भगवान में कोई भरोसा नहीं है, क्योंकि लीलामय स्वरूप को कोई भी नहीं जानता, लेकिन मैं, अर्जुन, | | छोटे बच्चे हैं। इन सबको पालना और बड़ा करना है। जानता हूं। यह उसकी सारी मान्यता भी उसके गहन अहंकार को एक सामाजिक कृत्य है, एक सामाजिक सुविधा है। और फिर संपुष्ट करती है। मैं जानता हूं! इसीलिए वह माने ले रहा है। अहंकार है। अहंकार को जिसमें भी तृप्ति मिलती हो, अहंकार इसमें एक बात ध्यान देने योग्य है कि बहुत बार हम इसलिए मानने को राजी हो जाता है। मान लेते हैं कि मानने से अहंकार पुष्ट होता है। इसलिए आप अर्जुन को सुख मालूम हो रहा है। क्योंकि न देवता जानते हैं, न देखकर हैरान होंगे कि अगर आपको नास्तिकों के बीच में छोड़ दानव जानते हैं। कोई भी नहीं जानता कि कृष्ण क्या हैं, क्या है दिया जाए, तो आप नास्तिक हो जाएंगे। आपको आस्तिकों के बीच उनका रहस्य, लेकिन मैं मानता हूं। .. में छोड़ दिया जाए, आप आस्तिक हो जाएंगे। क्योंकि जिनकी भीड़ | ये दो बातें ध्यान में रखने की हैं इस सूत्र में। एक तो अर्जुन मानता होती है, उनके विपरीत जाने में अहंकार को तकलीफ होती है। नहीं, गहरे में अस्वीकार है। उस अस्वीकार को भरने की, गवाही से, 68
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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