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________________ 88 कृष्ण की भगवत्ता और डांवाडोल अर्जुन ऋषि तो कहते हैं कि आप परम ब्रह्म हैं; और इतना ही नहीं, | | समझने मैं नहीं आया हूं। अगर आप जानते हों, तो हां कह दें, या स्वयं आप भी ऐसा मेरे प्रति कहते हैं। वह कृष्ण को भी गवाहियों न कह दें। आप जानते हों, तो बोलें, अन्यथा चुप रह जाएं। की कतार में खड़ा कर रहा है। वह इनकी बात भी न मानता। लेकिन क्योंकि शास्त्र तो मैं भी पढ़ लूंगा। देवेंद्रनाथ की हिम्मत न जुटी बड़ी मुश्किल है। कृष्ण खुद कह रहे हैं कि मैं भगवान हूं। तो वह कहने की कि हां, मैं जानता हूं। कहता है कि और आप भी ऐसा ही मेरे प्रति कहते हैं। तो उसकी बाद में विवेकानंद कहते थे कि देवेंद्रनाथ की झिझक ने सब कुछ हिम्मत नहीं जुट पाती कि वह संदेह खड़ा करे। लेकिन संदेह उसके कह दिया। जानते थे बहुत, लेकिन वह सब किसी और के द्वारा भीतर है। जानते थे; सीधी कोई प्रतीति न थी। जिसके भीतर संदेह नहीं है, वह गवाह नहीं जुटाएगा। गवाह फिर यही युवक रामकृष्ण के पास गया। उतनी ही अकड़ से, हम जुटाते इसलिए हैं कि भीतर के संदेह को काटने का और कोई उतने ही जोर से। रामकृष्ण को भी हाथ पकड़कर पूछा है कि ईश्वर उपाय नहीं है। भीतर के संदेह जितने बड़े होंगे, उतने बड़े गवाह है? लेकिन हालत बिलकुल बदल गई। जैसे देवेंद्रनाथ कंप गए थे हम जुटाएंगे। आधी रात इसका सवाल सुनकर; रामकृष्ण ने जब देखा आंख अर्जुन को अगर सड़क चलता हुआ कोई भी आदमी कह दे कि । उठाकर विवेकानंद की तरफ, तो विवेकानंद खुद कंप गए। कृष्ण भगवान हैं, तो वह मानेगा नहीं; उसका संदेह बड़ा है। जब | रामकृष्ण ने कहा, है या नहीं, यह छोड़ो। तुम्हें जानना हो तो बोलो? महर्षि व्यास ही तराजू पर न बैठकर कहें कि हां, ये भगवान हैं, तब और अभी जानना है ? हाथ-पैर कंप गए विवेकानंद के। विवेकानंद तक वह मानेगा नहीं! ने कहा कि मैं जरा सोचकर आऊं। यह मैं सोचकर नहीं आया! जितना बड़ा हो संदेह, उतनी बड़ी गवाही चाहिए। यह थोड़ा रामकृष्ण ने कहा, है या नहीं, यह सवाल बेकार है। तुम्हें जानना उलटा मालूम पड़ेगा! हम जितनी बड़ी गवाही खोजते हैं, उतने बड़े हो, तो मैं जना सकता हूं। संदेह की खबर देते हैं। अगर संदेह बिलकुल न हो, तो गवाही की रामकृष्ण ने विवेकानंद का हाथ पकड़ लिया। इस बातचीत में बिलकुल जरूरत न पड़ेगी। अगर संदेह शून्य हो, तो सारी दुनिया | विवेकानंद ने जो हाथ पकड़ा था, वह छूट गया था। रामकृष्ण ने भी विपरीत गवाही दे, तो भी कोई अंतर नहीं पड़ेगा। हाथ पकड़ लिया और कहा कि ऐसे नहीं जाने दूंगा। जब आ ही गए विवेकानंद रामकृष्ण के पास गए पूछने कि क्या ईश्वर है? | हो, तो अच्छा होगा, जानकर ही जाओ! विवेकानंद ने कहा है कि रामकृष्ण को कहना चाहिए था कि महर्षि फलां कहते हैं कि है, फिर मेरी हिम्मत रामकृष्ण से कभी कुछ पूछने की न पड़ी। क्योंकि उपनिषद कहते हैं कि है, वेद कहते हैं कि है। ऐसा कहना चाहिए यहां पूछना आग से खेलना था-सीधा। था। ऐसा किसी भी पंडित के पास विवेकानंद जाते, तो वह यही रामकृष्ण ने नहीं कहा कि उपनिषदों ने कहा है, वेद ने कहा है, कहता। गए भी थे वे। रवींद्रनाथ के पिता के पास गए थे। बुद्ध ने कहा है, कृष्ण ने कहा है। बेकार हैं बातें। अगर रामकृष्ण __ महर्षि देवेंद्रनाथ बड़े ज्ञानी थे, बड़े पंडित थे। उनके पास भी को खुद ही पता है, तो ये सब गवाहियां हैं या नहीं, निर्मूल्य है। विवेकानंद, रामकृष्ण से मिलने के पहले, गए थे। आधी रात-गंगा और अगर रामकृष्ण को खुद पता नहीं है, तो दुनिया में सबने कहा में बजरे पर महर्षि का निवास था तो कूदकर आधी रात अंधेरे में हो, तो भी उनकी सबकी गवाहियों का जोड़ भी सत्य नहीं बन बजरे पर चढ़ गए; द्वार खोला। रात आधी; महर्षि अपने ध्यान में सकता। कितनी ही गवाहियों का जोड़ भी सत्य नहीं बन सकता; बैठे थे आंख बंद करके। जाकर कालर पकड़कर उनका गला और एक छोटे-से सत्य को भी सारी दुनिया के गवाह मिलकर हिलाया और कहा कि मैं यह पूछने आया हूं, क्या ईश्वर है? विपरीत कहें, तो भी असत्य नहीं कर सकते। महर्षि समझा सकते थे, बता नहीं सकते थे। तर्क दे सकते थे, लेकिन यह अर्जुन जो कह रहा है, इसकी बात को ठीक से समझ खुद का कोई अनुभव नहीं था। तो महर्षि ने कहा, युवक, बैठो। लेना जरूरी है। क्योंकि उस पर ही आगे की पूरी समझ निर्भर मैं तुम्हें शास्त्रानुसार समझाऊंगा। लेकिन विवेकानंद छलांग करेगी। अर्जुन को भरोसा जरा भी गहरे में नहीं है, ऊपर-ऊपर है। लगाकर वापस गंगा में कूद गए। महर्षि ने आवाज दी कि लौट लगाव है उसका। मानना चाहता है कि कृष्ण भगवान हों; मान नहीं आओ, मैं तुम्हें सब तरह से समझाऊंगा। विवेकानंद ने कहा, पाता है। अपने को मनाना भी चाहता है। यह चेष्टा वास्तविक है, 67
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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