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गीता दर्शन भाग-
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तो वह और भी जिद्द करेगा कि मैं मानता हूं।
| जाएं कि आप कृष्ण को भगवान मानते हैं—मानकर ही बैठे हैं, तब लेकिन उसकी जिद्द भी यही बताएगी। हम जिद्द ही उन बातों की तो बहुत मुश्किल है तो आपको भी दलील में कुछ रस मालूम करते हैं, जिनके विपरीत हमारे भीतर कोई स्वर होता है। जितने | | पड़ेगा कि बात में कुछ सचाई है। यही आदमी तो जिम्मेवार है सारी जिद्दी लोग होते हैं, वे द्वंद्वग्रस्त लोग होते हैं। जिसके भीतर का द्वंद्व | | हिंसा का, हत्या का, उपद्रव का। तो नर्क में डालना ठीक मालूम विसर्जित हो जाता है, उसकी जिद्द भी चली जाती है। | पड़ता है। और अगर इसको भी नर्क में नहीं डालते, तो जो
मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन अपने बुढ़ापे में गांव में मजिस्ट्रेट | छोटी-मोटी हत्या कर रहे हैं, इनको काहे के लिए डालना! बना दिया गया था, आनरेरी मजिस्ट्रेट। पहला ही मुकदमा आया, लेकिन अगर कृष्ण के भगवान होने की तरफ विचार करें, तो तो एक पक्ष ने अपनी कहानी प्रस्तुत की। मुल्ला इतना अभिभूत | | वह बात भी उतनी ही बलशाली मालूम पड़ती है। वहां भी मन हां
और प्रभावित हो गया, तो उसने कहा कि बिलकुल ठीक, बिलकुल | कहने की कोशिश करेगा कि बिलकुल ठीक है। और फिर अगर सत्य! कोर्ट के क्लर्क ने झुककर मुल्ला से कहा, आप यह क्या कर कोई आपसे कहे कि दोनों ठीक? दोनों कैसे ठीक हो सकते हैं! तो रहे हैं! अभी दूसरा, दूसरा पहलू तो आपने सुना ही नहीं! अभी एक | निश्चित आपको कहना पड़ेगा कि बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप; ही आदमी बोला है; अभी इसका दुश्मन मौजूद है। और मजिस्ट्रेट दोनों ठीक कैसे हो सकते हैं! को इस तरह का वक्तव्य देना उचित नहीं है। मुल्ला ने कहा, दूसरे | यह हमारा मन ऐसा काम करता है। लेकिन हम संगत होने की का भी सुन लेते हैं।
दृष्टि से एक को ऊपर रखते हैं, दूसरे को नीचे दबा देते हैं। जिसको __ दूसरे ने उसके खिलाफ सारी बातें कहीं और मुल्ला इतना | हम नीचे दबा देते हैं, आज नहीं कल वह बदला लेगा। वह ऊपर प्रभावित हो गया कि उसने कहा कि बिलकुल ठीक, बिलकुल उभरेगा, वह निकलकर बाहर आएगा। और जिसे हमने आज ऊपर सत्य! क्लर्क ने झुककर कहा कि महानुभाव, आप कर क्या रहे हैं! | रखा है, उससे हम ऊब जाएंगे। सब चीजों से आदमी ऊब जाता थोड़ा सोचिए-विचारिए। और दोनों ही एक साथ सत्य कैसे हो | | है। और जिन चीजों के साथ रहता है सचेतन रूप से, उनसे जल्दी सकते हैं? पहला भी सत्य, दूसरा भी सत्य! मुल्ला क्लर्क से इतना ऊब जाता है। तो जिसको आपने ऊपर रखा है, थोड़ी देर में दिल प्रभावित हो गया, उसने क्लर्क से कहा कि तुम जो कह रहे हो, वह बदल जाएगा और मन ऊब जाएगा; फिर नीचे की बात ज्यादा बिलकुल सत्य है। दोनों सत्य कैसे हो सकते हैं? बिलकुल ठीक | सार्थक मालूम होने लगेगी। इस तरह मन घड़ी के पैडुलम की तरह कह रहे हो।
डोलता रहता है। हमें कठिनाई मालूम पड़ेगी कि यह आदमी नासमझ है। लेकिन __ अर्जुन इस सूत्र में दोनों बातें कह रहा है। अगर आपको दोनों हम सब ऐसे ही आदमी हैं। हां, इतने स्पष्ट हम नहीं हैं। बातें दिखाई पड़ जाएं, तो आगे गीता को समझना बहुत सुगम हो
मुल्ला ने तीनों बातों में कह दिया कि तीनों सत्य हैं। अगर हम जाए। कृष्ण को दोनों बातें दिखाई पड़ रही हैं। इसलिए गीता समाप्त होते, तो हम थोड़ी होशियारी करते। हम एक में कहते, सत्य। नहीं की गई। गीता को जारी रखना पड़ा है। कृष्ण को पता है कि दूसरा भी हमें ठीक लगता, तो उसे फिर हम छिपाते, क्योंकि यह | अर्जुन जो कह रहा है, यह अभी भी उसका अपना सत्य नहीं है। इनकंसिस्टेंट हो जाएगा। जब पहले को सत्य कह दिया, तो अब और उधार सत्य, दूसरे के सत्य, असत्य से भी बदतर होते हैं। दूसरे को सत्य कैसे कहें! तो दूसरे को हम दबाते। और तीसरे को असत्य भी अपना हो, तो उसमें एक प्रामाणिकता होती है, एक तो हम कहते ही कैसे! क्योंकि यह बात बिलकुल पागलपन की| | सिंसिअरिटी होती है। और सत्य भी दूसरे का हो, तो इनसिंसिअर हो जाएगी। लेकिन हमारा मन भी ऐसा ही चलता है। ऐसा ही | | होता है, अप्रामाणिक होता है। दूसरे के सत्य का क्या अर्थ? मेरा चलता है।
असत्य भी मेरा अनुभव बनेगा। दूसरे का सत्य भी मेरा अनुभव नहीं कृष्ण को कोई अगर नर्क में डालने की बात कहे, वह भी हमें | बन सकता है। सत्य मालूम पड़ सकती है। नहीं तो कुछ लोगों ने डाला ही क्यों । महर्षि व्यास क्या कहते हैं, इससे अर्जुन का क्या लेना-देना? होता! उनको सत्य मालूम पड़ी है। और आप भी अगर जिद्द न करें - और महर्षि व्यास को मानने का अर्जुन को कारण क्या है? कृष्ण और समझने की कोशिश करें और दूसरे पहलू को बिलकुल भूल को मानने में जिसे कठिनाई हो रही हो, वह महर्षि व्यास को इतनी