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________________ ॐ ध्यान की छाया है समर्पण की, अब बहुत फ्रस्ट्रेटेड हैं, अब बहुत विषाद है मन में। विषाद यह को समझने के लिए। बुद्ध ने तीन शब्दों पर सारी की सारी अपनी है कि कुछ भी हो नहीं पाया; कोई राजी नहीं हुआ, कोई बदला नहीं! | चिंतना को केंद्रित किया है। वे तीन शब्द हैं, शील, समाधि और लेकिन यह विषाद धार्मिक आदमी के मन में होना नहीं चाहिए। प्रज्ञा। शील से अर्थ है, जो आप करते हैं। समाधि से अर्थ है, जो नहीं तो फिर तो धर्म भी दुकान हो गई, कि मैं दिनभर दुकान खोले | | आप हो जाते हैं। और प्रज्ञा से अर्थ है, जो आप में खिलता है। बैठा रहा और कोई ग्राहक आया नहीं! और जिंदगी हो गई, और | शील से अर्थ है, आपका जीवन रूपांतरित हो। समाधि से अर्थ माल की कोई बिक्री न हुई, तो मेरी जिंदगी बेकार चली गई। है. आपकी चेतना रूपांतरित हो। और प्रज्ञा से अर्थ है कि जब ये नहीं; यह सवाल ही नहीं है। जो ध्यान में गहरा उतर जाता है, दोनों रूपांतरण घटित होते हैं, तो जो संपदा आपको उपलब्ध होती उसे फिर परमात्मा की स्तुति सिर्फ उसका आनंद है, सिर्फ उसका | है, जो धन आपको मिलता है, जो परम धन आपको मिलता है। आनंद है; वह उसमें ही संतुष्ट है। इससे आगे, इससे आगे का कोई | | कृष्ण ने उस परम धन को बुद्धियोग कहा है। हिसाब मन में अगर है, तो अभी ध्यान के बिना ही आप परमात्मा __हमें थोड़ी हैरानी होगी, क्योंकि हम सब अपने को बुद्धिमान की तरफ चल पड़े हैं, इसे समझना। आप मन से ही चल पड़े हैं, | | मानते हैं। और कृष्ण के हिसाब से बुद्धि तब उपलब्ध होती है, जब इसे समझना। कोई व्यक्ति परमात्मा के साथ एक हो जाता है। तो जिसको हम ___ मन तो सब जगह दुकान खोल लेता है, धंधा बना लेता है। मन बुद्धि कहते हैं, वह क्या होगी? तो सब जगह अहंकार के लिए रास्ते खोजने लगता है। मन तो जैसे कोई आदमी झील के किनारे खड़ा हो। तो आप खयाल अहंकार का भोजन जुटाता है। | करें। झील शांत है, आदमी किनारे खड़ा है, तो उस आदमी का और वे मुझमें ही निरंतर रमण करते हैं! प्रतिबिंब झील में बनता है। लेकिन प्रतिबिंब उलटा बनता है। बनेगा वे मुझमें ही डूबते-उतराते हैं, वे मुझमें ही डुबकियां लेते रहते | ही। प्रतिबिंब सभी उलटे होते हैं। अगर आपने झील के किनारे खड़े हैं। यह मन से संभव नहीं है। यह मन से बिलकुल ही असंभव है। आदमी को न देखा हो और केवल झील में बनने वाले प्रतिबिंब पर इसलिए मैंने कहा, इस सूत्र को ध्यान का सूत्र समझें। कामपदों। ही आपकी आंख हो, तो आदमी आपको सिर के बल खड़ा हुआ उन निरंतर मेरे ध्यान में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले मालूम पड़ेगा। लेकिन अगर आपने झील के ऊपर खड़े आदमी को भक्तों को, मैं वह तत्वज्ञान रूपी योग देता हूं, जिससे वे मेरे को ही | | देखा ही न हो, तो यही आदमी की ठीक स्थिति होगी! प्राप्त होते हैं। और हे अर्जुन, उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए ही | | जिसको हम अभी बुद्धि कह रहे हैं, वह हमारे मन की झील पर मैं स्वयं उनके अंतःकरण में एकीभाव से स्थित हुआ, अज्ञान से बनी हुई हमारी बुद्धिमत्ता का केवल प्रतिबिंब है, रिफ्लेक्शन है। उत्पन्न हुए अंधकार को प्रकाशमय तत्वज्ञान रूप दीपक द्वारा नष्ट | हमारी मन की झील पर जो प्रतिबिंब बन रहा है, उसी को अभी हम करता हूँ। बुद्धि कह रहे हैं। वह बुद्धि नहीं है, बुद्धि का प्रतिबिंब है। और मजा ऐसी जिसकी चित्त-दशा निर्मित हो गई हो, कि जो परमात्मा में यह है कि प्रतिबिंब उलटा होता है। डूबता-उतराता हो, उसमें ही डुबकियां लेता हो, उसी में रमण करता। इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि जिनको हम बुद्धिमान कहते हो, उसके अलावा जिसका कोई संसार न बचा हो; कहें, परमात्मा | | हैं, वे उस परम बुद्धि की दृष्टि से बिलकुल उलटे आदमी होते हैं। ही जिसका संसार हो गया हो; परमात्मा ही हो जिसकी वासना, जिनको हम उलटी खोपड़ी के आदमी कहते हैं। वे किसी भी चीज परमात्मा ही हो जिसकी इच्छा, परमात्मा ही हो जिसकी प्रार्थना; | को सीधा नहीं समझ सकते; उसको तत्काल उलटा कर लेते हैं। वे सभी कछ. सभी कुछ जिसका परमात्ममय हो गया हो-ऐसे परमात्मा की बात में से भी ऐसी बातें निकालते हैं कि परमात्मा तक व्यक्ति को, कृष्ण ने कहा है, बुद्धि उपलब्ध होती है, बुद्धियोग | | पहुंचना असंभव हो जाए। वे धर्म में भी इस तरह का तर्क खोजते उपलब्ध होता है। ऐसे व्यक्ति में प्रतिभा का जन्म होता है। ऐसा | | हैं कि धर्म तत्काल व्यर्थ मालूम होने लगे। वे जो भी करते हैं, वह व्यक्ति पहली दफा बुद्धिमत्ता को, जिसको बुद्ध ने प्रज्ञा कहा है, | कुछ उलटा होता है। उस उलटे का कारण है। क्योंकि प्रतिबिंब को उसको पाता है। जिन्होंने बुद्धि समझा, वे उलटे चलेंगे ही। बुद्ध ने तीन शब्दों का उपयोग किया है, वे उपयोगी होंगे इस सूत्र हमारी इस सदी में, जिसको हम कह सकते हैं कि बुद्धि की
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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