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________________ गीता दर्शन भाग-50 लेकिन परमात्मा वहीं है, जहां आप हैं। इसलिए दौड़कर वह नहीं थे, वह यहीं मौजूद है। लेकिन बिना दौड़े यह भी पता नहीं चलता। मिलेगा। दूसरे को पाना हो, तो दौड़कर पा सकते हैं। खुद को पाना | | दौड़कर भी पता चल जाए, तो बहुत है। हम काफी दौड़ लिए, हो, तो दौड़कर कैसे पाइएगा! खुद को पाने के लिए दौड़ बिलकुल | फिर भी कुछ पता नहीं चलता। एक चीज चूकती ही चली जाती बेमानी है, पागलपन की बात है। | हैजो हम हैं, जो भीतर है, जो यहां और अभी है, वह हमें पता इसलिए झेन फकीर हुवांग पो ने कहा है कि जो ईश्वर को खोजने | नहीं चलता। निकलेगा, वह खो देगा। निकलना ही मत खोजने। निश्चल ध्यान योग का अर्थ है, दौड़ को छोड़ दें और कुछ घड़ी बुद्ध घर लौटे। रवींद्रनाथ ने एक बहुत व्यंग्य-कथा लिखी है, बिना दौड़ के हो जाएं; कुछ घड़ी, घड़ीभर, आधा घड़ी, बिना दौड़ एक व्यंग्य-गीत लिखा है। बुद्ध घर लौटे। यशोधरा नाराज थी। के हो जाएं। ध्यान का इतना ही अर्थ है। छोड़कर, भागकर चले गए थे। गुस्सा स्वाभाविक था। और बुद्ध | ध्यान का यह मतलब नहीं है कि आप लेकर माला, और माला इसीलिए घर लौटे कि उसको एक मौका मिल जाए। बारह वर्ष का | | | के साथ दौड़ने लगें। वह दौड़ है। एक गुरिया हटाया, दूसरा हटाया, लंबा क्रोध इकट्ठा है, वह निकाल ले। तो एक ऋण ऊपर है, वह | जल्दी हटाए, चक्कर लगाए माला का। लंबा दौड़ नहीं लगा रहे हैं भी छूट जाए। आप; माला में चक्कर मार रहे हैं। छोटे बच्चे होते हैं न, उनको बुद्ध वापस लौटे। तो रवींद्रनाथ ने अपने गीत में यशोधरा द्वारा एक कोने में खड़ा कर दो, तो वहीं कूदते रहेंगे। यह माला वाला बुद्ध से पुछवाया है; और बुद्ध को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। वही काम कर रहा है। छोटे बच्चे हैं, उनसे कहो, मत दौड़ो। ठीक यशोधरा से पुछवाया है रवींद्रनाथ ने। यशोधरा ने बुद्ध को है। आन दि स्पाट! वे वहीं उछल-कूद करते रहेंगे। उछल-कूद जो बहुत-बहुत उलाहने दिए और फिर कहा कि मैं तुमसे यह पूछती हूं उनके भीतर चल रही थी, वह जारी रहेगी। इससे कोई फर्क नहीं कि तुमने जो घर से भागकर पाया, वह क्या घर में मौजूद नहीं था? | | पड़ता कि जगह कितनी घेरी। एक छोटे-से गोल घेरे में आदमी दौड़ बुद्ध बड़ी मुश्किल में पड़ गए। यह तो वे भी नहीं कह सकते | | सकता है। माला फेर रहा है कोई। कोई बैठकर राम-राम, कि घर में मौजूद नहीं था। और अब पाकर तो बिलकुल ही नहीं कह | | राम-राम, राम-राम किए चला जा रहा है। लेकिन दौड़ जारी है। सकते। अब पाकर तो बिलकुल ही नहीं कह सकते। आज से बारह | ___ मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप माला मत फेरना। बुरा नहीं है। साल पहले यशोधरा ने अगर कहा होता कि तुम जिसे पाने जा रहे आधा घंटा माला फेरी, न मालूम कितने उपद्रव नहीं किए, वह भी हो, क्या वह घर में मौजूद नहीं है? तो बुद्ध निश्चित कह सकते थे | | काफी है। अपनी जगह पर ही कूद रहे हैं, दूसरे के घर में नहीं कूदे, कि अगर मौजूद घर में होता, तो अब तक मिल गया होता। नहीं | | यह भी काफी है। है, इसलिए मैं खोजने जा रहा हूं। लेकिन अब तो पाने के बाद बुद्ध | मैं यह नहीं कह रहा कि आप माला मत फेरना। फेरना जरूर, को भी पता है कि जो पाया है, वह घर में भी पाया जा सकता था। | लेकिन मत यह समझ लेना कि वह ध्यान है। वह ध्यान नहीं है। तो बुद्ध बड़ी मुश्किल में पड़ गए। ___ मैं यह भी नहीं कह रहा कि आप राम-राम मत करना। मजे से रवींद्रनाथ तो बुद्ध को मुश्किल में देखना चाहते थे, इसलिए | कर लेना। क्योंकि कुछ तो आप करेंगे ही। कुछ तो करेंगे ही, बिना उन्होंने बात आगे नहीं चलाई। लेकिन मैं नहीं मानता हूं कि बुद्ध | | किए तो रह नहीं सकते। तो एक फिल्म स्टार का नाम लेने से उत्तर नहीं दे सकते थे। वह रवींद्रनाथ बुद्ध को दिक्कत में डालना | | राम-राम का नाम लेना बहुत बेहतर है। कुछ न कुछ तो भीतर चलेगा चाहते थे, इसलिए बात यहीं छोड़ दी उन्होंने। यशोधरा ने पूछा, | | ही, खोपड़ी आपकी चुप नहीं रह सकती। तो ठीक है, राम प्यारा और बुद्ध मुश्किल में पड़ गए। लेकिन निश्चित मैं जानता हूं कि | | शब्द है, उसको दोहरा लेना। लेकिन उसे ध्यान मत समझ लेना। अगर बुद्ध से ऐसा यशोधरा पूछती, तो बुद्ध क्या कहते! | ध्यान का तो मतलब ही निश्चल ध्यान होता है। ध्यान का तो बुद्ध ने निश्चित कहा होता कि मैं भलीभांति जानता हूं कि जिसे | मतलब ही निश्चल हो जाना होता है, मन का बिलकुल न मैंने पाया, वह यहां भी पाया जा सकता है। लेकिन बिना दौड़े यह दौड़ना—न माला में, न राम में, न स्वर्ग में, न मोक्ष में कहीं भी पता चलना मुश्किल था कि दौड़ व्यर्थ है। यह दौड़कर पता चला। न दौड़ना। मन का ठहर जाना, रुक जाना। एक क्षण को भी ऐसी दौड़-दौड़कर पता चला कि बेकार दौड़ रहे हैं। जिसे खोजने निकले घड़ी बन जाए, एक क्षण को भी ऐसा परम मुहूर्त आ जाए, जब .
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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