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________________ गीता दर्शन भाग- 58 वह! और जो हमारे भीतर है, उसे छिपाते रहते हैं। हम मित्र उनको सोचते हैं, इंद्रियों को वश में करना, तो कोई संघर्ष, कोई युद्ध, कोई कहते हैं नासमझी हमारी हह की है हम मित्र उनको कहते हैं. लडाई कोई भीतरी कलह का खयाल आता है। जब भी हम सोचते जो हमारे भीतर नहीं है, उसका हमें दर्शन कराते रहते हैं। और हम | | हैं, मन का निग्रह करना, तो कोई जबरदस्ती, कोई दमन, कोई शत्रु उनको कहते हैं—नासमझी हमारी हद्द की है कि जो हमारे | रिप्रेशन करने का खयाल मन में आता है। भीतर है, उसका दर्शन कराएं, तो हम उन्हें शत्रु मान लेते हैं! वे बड़े गलत खयाल हैं। और जो व्यक्ति भी अपनी इंद्रियों को __ अगर कोई गाली दे और भीतर क्रोध आए, तो उसे धन्यवाद देना | | दुश्मन की तरह वश में करने जाएगा, वह मुसीबत में पड़ेगा। वह कि उसने एक अवसर दिया, एक मौका जुटाया, एक परिस्थिति | | मालिक तो कभी न हो पाएगा, विक्षिप्त हो सकता है। और जो समें आपका क्रोध आपको दिखाई पड़ा। और अगर कोई व्यक्ति जबरदस्ती अपने मन को ठोंक-पीटकर वश में करने की व्यक्ति गाली देने वाले को भी धन्यवाद दे पाए, तो एक दिन उसके | | चेष्टा में लगेगा, उसका मन विद्रोही हो जाएगा, मन बगावती हो भीतर क्षमा की शक्ति पैदा होगी। वह क्षमा पाजिटिव है। वह क्षमा जाएगा; और मन उसे ऐसी जगह ले जाने लगेगा, जहां-जहां वह किसी किए गए क्रोध का पछतावा नहीं है; किसी क्रोध के लिए | चाहता है कि मन न जाए। जहां-जहां चाहेगा कि न जाए मन, मांगी गई माफी नहीं है। वहां-वहां जाने लगेगा। जहां-जहां रोकेगा मन, मन वहां-वहां और ___ मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप क्रोध करना, तो माफी मत | भी बहने लगेगा। इंद्रियों पर जितनी जबरदस्ती करेगा. उतना ही मांगना। यह मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन उस माफी को कृष्ण की | | पाएगा कि ऐंद्रिक और सेंसुअल होता चला जा रहा है। क्षमा मत समझना। वह हमारे बाजार की क्षमा है। हमारी दुनिया की | । इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि अगर कोई जबरदस्ती क्षमा है। वह कारगर है, लुब्रिकेटिंग है, उसका बड़ा उपयोग है। ब्रह्मचर्य को थोपने बैठ जाए, तो उसके चित्त में कामवासना जितनी आप मुझे गाली दे गए, फिर अगर आप मुझसे क्षमा न मांगें, तो भयंकर हो जाती है, तूफान ले लेती है, उतना किसी गहरे से गहरे मेरे और आपके बीच चका बिलकुल जाम हो जाएगा, लुब्रिकेशन | कामी के मन में भी नहीं होती। मुश्किल हो जाएगा। थोड़ा तेल चाहिए; चके चलते रहते हैं। और | | आपको पता होगा, अगर किसी दिन उपवास करें, तब आपको जिंदगी बड़े चकों का जाल है। चके में चके उलझे हुए हैं। यहां | | पता चलेगा कि भोजन की याद उपवास के दिन ही आती है। ऐसे अगर बिलकुल क्षमा वगैरह मत करिए, तो आप जाम हो जाएंगे, | | भोजन की कोई याद आती है! आदमी भोजन कर लेता है और भूल अटक जाएंगे; हिलना मुश्किल हो जाएगा। मांग ली क्षमा; थोड़ा | | जाता है। आप सड़क पर निकलते हैं, आपको कभी खयाल आया तेल पड़ गया चके में; चके फिर चलने लगे। बस हमारी क्षमा का | | कि आप कपड़े पहने हुए हैं! एक दिन नग्न निकलकर सड़क पर तो इतना ही उपयोग है। लेकिन उपयोग है, और जिंदगी चलती है | | देखें, तब आपको कपड़े ही कपड़े याद आएंगे। इस लुब्रिकेशन से। जबरदस्ती किसी चीज को रोका जाए, तो वह स्मृति में गहन हो लेकिन कृष्ण की क्षमा कोई और बात है। इस क्षमा में उस अखंड | जाती है। जोर से आती है, प्रगाढ़ हो जाती है। उसका बल, उसकी का दर्शन नहीं होगा। अगर क्षमा आपका स्वभाव बन जाए, क्रोध ताकत बढ़ जाती है। संभव ही न हो, अक्रोध सहज हो जाए। कोई नींद में भी आपको इंद्रिय-निग्रह या मन-निग्रह जबरदस्तियां नहीं हैं, वैज्ञानिक डाल दे आपके भीतर कुछ, तो क्षमा ही बाहर आए। आपके | | विधियां हैं। इसे खयाल में ले लें। वैज्ञानिक विधियां हैं। लड़ाई का रोएं-रोएं से आशीष ही बहने लगें, आपका कण-कण शुभकामना सवाल नहीं है, समझ का सवाल है। और जो व्यक्ति मन से और मंगल से भर जाए, तो क्षमा है। लड़ेगा, वह कभी मन का मालिक न होगा। जो व्यक्ति मन को कृष्ण कहते हैं, क्षमा मैं हूँ, सत्य मैं हूं, इंद्रियों का वश में करना | समझेगा, वह मन का मालिक तत्काल हो जाएगा। समझ सूत्र है, मैं हूं, मन का निग्रह मैं हूं। दमन नहीं। मन का निग्रह, इंद्रियों को वश में करना इस संबंध में | लेकिन हम लड़ते रहते हैं। एक आदमी को क्रोध आता है, तो थोड़ी-सी बात खयाल में ले लें। वह क्रोध को दबाता है कि क्रोध करना अच्छा नहीं है। शास्त्र में एक, व्यापक रूप से गलत धारणा हमारे भीतर है। जब भी हम पढ़ा है, गुरुओं से सुना है, क्रोध करना बुरा है। क्रोध आता है; अब 28
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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