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________________ रूपांतरण का आधार-निष्कंप चित्त और जागरूकता बहत वह क्या करे? उसे दबा लेता है। दबाया हुआ और भीतर पहुंच दुरुपयोग हो सकता है, सदुपयोग हो सकता है। जब कोई उस जाता है। दबाया हुआ और रग-रग, रोएं-रोएं में फैल जाता है। | शक्ति का दुरुपयोग करता है, तो जीवन नर्क हो जाता है। क्रोधी का दबाया हुआ नए रास्तों से निकलना शुरू हो जाता है। दबाया हुआ जीवन शक्ति का दुरुपयोग है। और जब कोई उसी शक्ति का धीरे-धीरे स्वभाव में जहर की तरह फैल जाता है। सदुपयोग करता है, तो वही शक्ति क्षमा बन जाती है। और इसलिए देखें आप, जो आदमी को यह वहम हो कि मैंने क्रोध | | क्षमाशील का जीवन स्वर्ग हो जाता है। पर काबू पा लिया है, उसके आप रोएं-रोएं में क्रोध को झलकता | । कृष्ण जब कहते हैं, इंद्रियों के निग्रह में मैं हूं, मनोनिग्रह में मैं हुआ देखेंगे। जिस आदमी को खयाल हो कि मेरा अहंकार | | हूं, तो उनका अर्थ है कि जो व्यक्ति इंद्रियों को जानकर, इंद्रियों को बिलकुल समाप्त हो गया है, मैं तो बिलकुल विनम्र हो गया हूं, समझकर, ज्ञान से उनके पार हो जाता है; जो व्यक्ति मन को उसकी आंख की झलक में, उसके चेहरे के भाव में, जगह-जगह | | पहचानकर, मन के प्रति जागरूक होकर, मन के ऊपर उठ जाता आप अहंकार की छाप पाएंगे। है, उसे मेरी झलक मिलनी शुरू हो जाती है। जिस आदमी को खयाल हो कि मैंने संसार को लात मार दी है, दमन से नहीं, रूपांतरण से। लड़कर नहीं, जानकर। संसार को छोड़ दिया है, त्याग कर दिया है, उसको अगर आप यह सूत्र थोड़ा बारीक है। क्योंकि जानने का क्या अर्थ? कभी थोडा भी गौर से देखेंगे तो उसे संसार में इस बरी तरह फंसा हआ आपने सोचा है कि आपने क्रोध को जाना? आप पाएंगे, जिसका हिसाब नहीं। संसार नहीं होगा उसके चारों तरफ, | जाना। रोज जानते हैं। लेकिन फिर भी मैं आपसे कहूंगा, आपने तो भी फंसा हुआ पाएंगे। क्योंकि एक छोटी-सी लंगोटी भी पूरा कभी नहीं जाना। क्योंकि जब क्रोध होता है, तब आपका जानना साम्राज्य बन सकती है। बिलकुल ही नहीं होता है। आपका जानना खो गया होता है। तब जो दबाया जाता है, वह विषाक्त कर देता है। आप बिलकुल पागल होते हैं। नहीं; कृष्ण का अर्थ दमन से नहीं है। इसलिए जो दमित करेगा | क्रोध जो है, वह अस्थायी पागलपन है। उस वक्त होश वगैरह अपने को, वह तो और भी परमात्मा की झलक से दूर हो जाएगा। | आपके भीतर बिलकुल नहीं होता। उस वक्त आप जो करते हैं, वह कृष्ण का प्रयोजन है रूपांतरण से, ट्रांसफार्मेशन से, एक क्रांति से, | | आप करते हैं, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है। आप से होता है, ऐसा जो ज्ञान से संभव होती है। ही कहना ठीक है। क्योंकि क्रोध के बाद आप ही पछताते हैं और जिस व्यक्ति को क्रोध के बाहर जाना हो, उसे क्रोध को समझना | | कहते हैं कि मेरे बावजूद, इंस्पाइट आफ मी, मुझसे हो गया। यह चाहिए, उसे क्रोध को पहचानना चाहिए। क्रोध ताकत है। जैसे मैं सोचता तो नहीं था कि इस बच्चे को उठाकर खिड़की के बाहर आकाश में बिजली कौंधती है। एक दिन हम उससे डरते थे और | फेंक दूंगा और यह मर जाएगा। यह मैंने सोचा ही नहीं था, लेकिन घबड़ाते थे। आज वही बिजली प्रकाश देती है। एक दिन आकाश | यह हो गया। यह मैंने किया नहीं है; यह हो गया है। लेकिन फिर में कौंधती थी, तो हम घुटने टेककर जमीन पर, प्रार्थना करते थे, | किसने किया? क्रोध इतना हावी हो गया था कि आपकी चेतना कि जरूर परमात्मा नाराज है, देवता रुष्ट हैं। आज उस बिजली को | | बिलकुल खो गई थी और आप बिलकुल मूढ़ हो गए थे, सो गए हमने बांध दिया। आज कोई आकाश में चमकती बिजली को | थे, बेहोश थे। देखकर घबड़ाता नहीं है, क्योंकि अब हम जानते हैं उस बिजली के | एक मुसलमान खलीफा हारुन अल रशीद अपने घोड़े पर विज्ञान को राजधानी से निकल रहा है बगदाद में। एक आदमी अपने छप्पर पर क्रोध भी आपके भीतर कौंधती हुई बिजली है। और मजा तो यह | | खड़े होकर खलीफा को गालियां देने लगा। अभद्र गालियां थीं। है कि आकाश की बिजली को बांधने में हम समर्थ हो गए, आदमी | खलीफा ने सुना और अपने सिपाहियों को कहा कि कल सुबह इस के भीतर की बिजलियां अभी भी गैर-सम्हली पड़ी हैं। आदमी को दरबार में पकड़कर ले आओ। वह आदमी उसी समय क्रोध शक्ति है। अगर एक बच्चा ऐसा पैदा हो, जिसमें क्रोध हो | | पकड़कर बंद कर दिया गया। दूसरे दिन सुबह उस आदमी को ही नहीं, तो वह बच्चा जिंदा नहीं रह सकेगा; मर जाएगा। नपुंसक दरबार में लाया गया। होगा; उसमें बल ही नहीं होगा। क्रोध शक्ति है। लेकिन शक्ति का तो खलीफा ने उससे पूछा कि कल तुमने छप्पर के ऊपर खड़े 29
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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