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________________ 3 रूपांतरण का आधार-निष्कंप चित्त और जागरूकता एक सुझाव देता हूं। पिछले गांव में कुछ लोग मिठाइयों का थाल का कोई मौका न दे, तो जैसी बेचैनी होती है, वैसी बेचैनी क्रोध लेकर मुझे देने आए थे, लेकिन मेरा पेट था भरा और मैंने उनसे | करने से भी नहीं होती। मनसविद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आदमी कहा कि तुम इन्हें वापस ले जाओ। तो वे अपनी मिठाइयों का थाल को क्रोध करने का मौका न मिले, तो वह मौका खोज लेता है। वह वापस ले गए। मैं तुमसे पूछता हूं, उन्होंने क्या किया होगा? तो एक ऐसी बात में से मौका निकाल लेता है, जहां कि आप कल्पना भी आदमी ने भीड़ में से कहा, क्या किया होगा! गांव में जाकर मिठाई नहीं कर सकते थे कि यहां क्रोध की कोई जरूरत है। वह चारों तरफ बांट दी होगी। तो बुद्ध ने कहा, अब तुम क्या करोगे? तुम गालियों तलाश में रहता है। वह चारों तरफ अपने आस-पास अज्ञात का थाल भरकर लाए, और मैं लेता नहीं हूं। तुम जाकर गांव में इन्हें | फीलर्स छोड़ देता है; खोजते रहते हैं कि कहीं जरा मौका मिल जाए बांट लेना, ताकि तुम रात शांति से सो सको! और वह क्रोध से भर जाए। क्षमा का अर्थ है, वैसी चित्त की दशा, जहां क्रोध व्यर्थ हो जाता अगर इस आदमी को बंद कर दें तीन महीने एकांत में, तो यह है। क्षमा का अर्थ है, चित्त की वैसी भाव-दशा, जहां क्रोध जन्मता | दीवालों से लड़ेगा। यह दीवालों से सिर फोड़ेगा। यह खाली आकाश ही नहीं। में गालियां देगा। यह अपने को भी चोट पहुंचा सकता है; अपने को यह बहुत मजे की बात है कि क्रोध हमें इसलिए जन्मता है- | भी मार सकता है। क्रोध अपने पर भी प्रकट कर सकता है। । इसलिए नहीं कि लोग क्रोध जन्मा देते हैं-क्रोध हमें इसलिए __ क्रोध आपकी एक अवस्था है। ध्यान रखें, अगर क्रोध सिर्फ एक जन्मता है कि क्रोध हमारे भीतर सदा है। जब कोई आपको गाली | प्रतिक्रिया है किसी के द्वारा पैदा की गई, तब तो क्षमा असंभव है। देता है, तो आप इस भ्रांति में मत पड़ना कि उसने आपमें क्रोध पैदा | क्रोध आपकी एक अवस्था है; और अगर आप अपने को बदल करवा दिया। क्रोध तो आपके भीतर मौजूद था। उसकी गाली तो | | लें, तो क्षमा भी आपकी अवस्था हो सकती है। और तब कोई केवल उसे बाहर लाने का काम करती है। आपके भीतर बाल्टी डाले, तो क्षमा भरकर बाहर निकले। . जैसे कोई एक बाल्टी को रस्सी में बांधकर कुएं में डाल दे और ___ जीसस को सूली पर लटकाया है। और जीसस से कहा गया है खींचे औ र पानी भरकर बाहर आ जाए, तो क्या आप यह कहेंगे कि कि अगर तुम्हें कोई अंतिम प्रार्थना करनी हो, तो मृत्यु के पहले कर इस आदमी ने कएं में पानी भर दिया? यह सिर्फ बाल्टी डालता है. लो। तो वे प्रार्थना करते हैं कि हे परमात्मा। इन सबको क्षमा कर कएं में जो पानी भरा ही था, वह बाहर निकल आता है। अगर यह देना, क्योंकि इन्हें पता नहीं कि ये क्या कर रहे हैं। आदमी खाली कुएं में, सूखे कुएं में बाल्टी डाले, तो बाल्टी ___ गाली नहीं, सूली डाली गई है भीतर! और यह आदमी कहता है, भड़भड़ाएगी, परेशान होगी; खाली वापस लौट आएगी। इन्हें क्षमा कर देना, क्योंकि इन्हें पता नहीं, ये क्या कर रहे हैं! भीतर बुद्ध में जब कोई गाली डालता है, तो खाली, सूखे कुएं में बाल्टी | | क्षमा हो, तो क्षमा निकलेगी। भीतर क्रोध हो, तो क्रोध निकलेगा। डाल रहा है। बाल्टी वापस लौट आएगी। मेहनत व्यर्थ जाएगी। इस बात को एक मौलिक सूत्र की तरह अपने हृदय में लिखकर हमारे भीतर जब कोई बाल्टी डालता है, गाली डालता है, तो भरी रख छोड़ें कि जो आपके भीतर है, वही निकलेगा। इसलिए जब भी हुई लौटती है, लबालब लौटती है; ऊपर से बहती हुई लौटती है। कुछ आपके बाहर निकले, तो दूसरे को दोषी मत ठहराना। वह और हम सोचते हैं, इस आदमी ने गाली दी, इसलिए मुझमें क्रोध | | आपकी ही संपदा है, जिसको आप अपने भीतर छिपाए थे। पैदा हुआ! नहीं। क्रोध आपके भीतर था, इस आदमी ने कृपा की, इसलिए कबीर ने कहा है, निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी गाली दी और आपको आपके क्रोध के दर्शन करवाए। इसने आपके छबाय। अपनी निंदा करने वाले को आंगन और कुटी छवाकर क्रोध को आपके समक्ष प्रकट किया। अपने पास ही रख लेना चाहिए, ताकि भीतर जो भी कचरा है, वह क्रोध किसी की गाली से पैदा नहीं होता, नहीं तो बुद्ध में भी पैदा उसका दर्शन करवाता रहे। वह बार-बार ऐसी बातें कहता रहे कि होगा। क्रोध तो है ही, मौके उसे प्रकट करने में सहयोगी हो जाते भीतर जो भी है, वह दिखाई पड़ता रहे। ताकि किसी दिन उससे हैं। और अगर मौके न मिलें और क्रोध भीतर हो, तो हम मौके खोज छुटकारा भी हो जाए। लेते हैं। लेकिन हम प्रशंसकों को पास रखना पसंद करते हैं। क्योंकि जो आप सबको पता होगा, अगर दो-चार-आठ दिन क्रोध करने हमारे भीतर नहीं है, वह वे बताते रहते हैं। जो हमारे भीतर नहीं है
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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