________________
ॐ गीता दर्शन भाग-500
में जो इतनी दुर्घटनाएं होती हैं, अधिकतम दुर्घटनाएं, इसका कारण | रातभर वैसे ही रखे रहते हैं! करवट भी आप बदलते नहीं। इंचभर क्या होगा?
भी पैर आपका हिलता नहीं, हटता नहीं। बात क्या है? क्या रातभर अब वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि तीन और चार के बीच में सपने भी सम्हलकर सोते हैं? इतने प्रगाढ़ हो जाते हैं। सोया आदमी हो, तब तो पता नहीं चलता। तो बुद्ध ने कहा, सम्हलने की कोई जरूरत नहीं। शरीर ही सोया जागा हुआ आदमी हो, तो आंख खुली भी रहे, तो भी ड्राइवर सपनों होता है, मैं सोता ही नहीं। मैं जागा ही रहता हूं। तो अगर करवट में खो जाता है। सपने में कुछ भी हो सकता है फिर। और इसलिए मुझे बदलनी हो, तो वह मेरे निर्णय से होगा। शरीर करवट नहीं बहुत-से ड्राइवर कहते हैं कि मैं बिलकुल जागा हुआ था। आंख मेरी बदल सकता। मैं बेहोश नहीं हूं, मैं पूरे होश में हूं। . खुली थी। और मेरी समझ के बाहर है कि यह दुर्घटना कैसे हो गई! - और जब कोई व्यक्ति नींद में भी जाग जाए, तो योग को उपलब्ध एक क्षण को भी अगर सपने ने खींच लिया हो, तो दुर्घटना होने हुआ। कृष्ण ने कहा है कि जो नींद में भी जागा हुआ है, वही योगी
और आंख खली हो, तो भ्रम पैदा हो सकता है है। इससे उलटा सत्र भी हम बना सकते हैं कि जो जागकर भी सोया कि आंख खुली थी, इसलिए मैं जागा हुआ था।
| हुआ है, वही भोगी है। इस भूल में कोई भी न रहे। आंख का खुला होना और जागे होने इस जागरण का क्या अर्थ हुआ? कभी आपने जागरण का कोई का कोई भी संबंध नहीं है। बुद्ध की आंख भी बंद हो, कृष्ण की | | क्षण अनुभव किया है? आंख भी बंद हो, तो भी वे जागे हुए होते हैं। हमारी आंख भी खुली | थोडा मश्किल है। कभी-कभी अचानक भी हो जाता है। अगर हो, तो हम सोए हए होते हैं। सोना और जागना आंतरिक घटनाएं अचानक दो आदमी एकांत रास्ते पर आपको पकड़ लें और एक हैं, आंख से इसका कोई संबंध नहीं है।
आदमी छुरा आपकी छाती पर रख दे, तो उस क्षण में आपके भीतर तो सोने का अर्थ हुआ कि हमारे भीतर विचारों की, सपनों की, | | कोई विचार होंगे? अचानक! उस क्षण आपके भीतर कोई विचार चित्रों की एक भीड़ है, वह चल रही है। उस भीड़ के कारण हमें नहीं होंगे। उस क्षण आपके भीतर सब सपने छूट जाएंगे। उस क्षण कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता, कुछ भी सूझता नहीं। हम अंधे की तरह | एक क्षण को आप पूरे जागे होंगे, जैसे कोई बुद्ध कभी जागा हो। जी रहे हैं; टटोल-टटोलकर जी रहे हैं। किसी तरह रास्ते से गुजर लेकिन यह बाहर की परिस्थिति पर होगा। छुरा हट जाए, या ' जाते हैं, घर आ जाते हैं, काम कर लेते हैं, तो सोचते हैं कि हम चेहरा पहचान में आ जाए कि मित्र ही है, मजाक कर रहा है, सपने जागे हुए हैं। लेकिन आध्यात्मिक अर्थों में यह जागरण नहीं है, इसे वापस दौड़ पड़ेंगे। या छुरा न भी हटे, तो एक क्षण को आकस्मिक मूढ़ता...।
था, इसलिए आपके भीतर की बंधी हुई धारा को तोड़ने में सफल कृष्ण कहते हैं, अमूढ़ता मैं हूं।
हुआ। अगर न हटे, तो आप तत्काल सोचने में लग जाएंगे कि अब अमूढ़ता का अर्थ है, जागरण, बुद्धत्व।
मैं क्या करूं, कैसे बचूं, कैसे भागू, क्या जवाब दूं! बुद्ध का नाम था सिद्धार्थ गौतम, लेकिन जब वे जाग गए, तब | खतरे के क्षण में हमें कभी-कभी नैसर्गिक रूप से जागरूकता उन्हें नाम मिला गौतम बुद्ध। गौतम दि अवेकंड, दि एनलाइटेंड; | | उपलब्ध होती है; खतरे के क्षण में। और हमने अब जिंदगी ऐसी जागा हुआ गौतम। बुद्ध को जब ज्ञान हुआ, तो जो घटना घटी, वह बना ली है कि उसमें खतरे का कोई ज्यादा क्षण नहीं है। सब तरफ क्या थी? वह घटना थी, उनकी नींद टूट गई। उनके भीतर कोई | से हमने व्यवस्था कर ली है कि कोई खतरा न हो। इसलिए जागरण बेहोशी न रही। वे भीतर परम जाग्रत हो गए। फिर वे सोते भी तो | का क्षण और भी कम होता जाता है। भी भीतर की नींद जैसी कोई घटना नहीं घटती थी; शरीर ही सोता, ___ एक झेन फकीर था, बोकोजू। वह अपने साधकों को वृक्षों पर भीतर जागरण बना रहता।
चढ़ना सिखाता था-ध्यान के लिए। ऊंचे वृक्षों पर चढ़ना। आनंद, उनका शिष्य, वर्षों तक उनके साथ रहा। एक दिन राजकुमार देश का, उसके पास ध्यान सीखने आया था। तो बोकोजू आनंद ने बुद्ध को पूछा कि मैं बहुत चकित हूं। आप जिस भांति ने उससे कहा कि तू वृक्ष पर चढ़। वृक्ष देखकर वह मु सोते हैं सांझ, जहां रखते हैं दायां पैर, जहां रखते हैं बायां पैर, जिस पड़ा। उसने कहा कि चढ़ना मैं बिलकल नहीं जानता। गिर पड़ा तरह रखते हैं हाथ, जिस तरह एक हाथ रखते हैं सिर के नीचे, आप | हाथ-पैर चकनाचूर हो जाएंगे।