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रूपांतरण का आधार-निष्कंप चित्त और जागरूकता 28
यह शब्द साधकों के लिए बहुत उपयोगी है। मूढ़ता का अर्थ है, | उलझे होने की वजह से भीतर के सपने दिखाई नहीं पड़ते। इसलिए ऐसा व्यक्ति, जो जागा हुआ मालूम पड़ता है, लेकिन जागा हुआ | आरामकुर्सी पर जरा लेट जाएं, बाहर की दुनिया से आंख बंद कर नहीं है। सोया-सोया व्यक्ति, जैसे नींद में चल रहा हो। लें, और दिवास्वप्न, डे-ड्रीमिंग शुरू हो जाती है। वह चल ही रही
कभी रास्ते के किनारे खड़े हो जाएं, और रास्ते से गुजरते हुए | | थी, आपने आंख बंद की, तो दिखाई पड़ने लगती है। आप आंख लोगों को देखें। गौर से देखें, आंख गड़ाकर देखें कि लोग कैसे खोलकर बाहर लग जाते हैं, तो भूल जाते हैं। लेकिन भीतर चौबीस चल रहे हैं। तो थोड़ी ही देर में आपको लगेगा कि लोग सोए-सोए | | घंटे, भीतर के छबिगृह में सपने चल रहे हैं। वे सपने इस बात की चल रहे हैं। कोई आदमी चलते-चलते बात करता जा रहा है। कोई खबर हैं कि हम सोए हुए हैं। उसके साथ नहीं है, अकेला है। अपने हाथ से इशारा कर रहा है। बुद्ध के पास कोई आता था, तो बुद्ध उससे पूछते थे कि तेरे उसके होंठ चल रहे हैं। वह किसी से बात कर रहा है। उसके चेहरे | सपने अभी बंद हो गए या नहीं? अगर सपने बंद हो गए हैं, तो के भाव बदल रहे हैं।
करने को बहत कम काम बाकी है। और अगर सपने बंद नहीं हुए, यह आदमी होश में है या नींद में है? यह कोई सपना देख रहा तो बहुत बड़ा काम बाकी है। क्योंकि सपनों से लड़ना, इस जगत है। यह इस सड़क पर बिलकुल नहीं है। यह किसी और सड़क पर | में सबसे बड़ी लड़ाई है। सपने दिखाई तो पड़ते हैं कि सपने हैं, होगा, यह किसी और के साथ होगा। यह किससे बातें कर रहा है? | लेकिन जब कोई उन्हें तोड़ने जाता है, तब पता चलता है कि कितना यह किसकी तरफ हाथ के इशारे कर रहा है? यह किसी के साथ | | कठिन है। इतनी कमजोर चीज, सपना भी हम तोड़ नहीं पाते! है, सपने में।
| उसका कारण है कि हम उससे भी कमजोर हैं। __ हम सब सपने में चल रहे हैं। हम सबके भीतर सपने चल रहे मूढ़ता का अर्थ है, एक तरह की निद्रा। मूढ़ता का अर्थ मूर्खता हैं। हम कछ भी कर रहे हों. हमारे भीतर एक सपनों का जाल चल नहीं है। इसलिए पंडित भी मढ हो सकता है। तथाकथित ज्ञानी भी रहा है। और ध्यान रहे. सपना तभी चल सकता है, जब भीतर निद्रा मढ हो सकता है। अज्ञानी भी मढ हो सकता है। मढ होना अलग हो। बिना नींद के सपना नहीं चल सकता। और सपने हम सबके | ही बात है। भीतर चौबीस घंटे चलते हैं। जरा आंख बंद करो, सपना दिखाई | ___ मूढ़ का अर्थ है, निद्रित चलना, सोए-सोए जीना। भीतर सपने पड़ना शुरू हो जाएगा। आंख जब आप बंद नहीं करते, तब आप | चलते रहते हैं और हम बाहर चलते रहते हैं। हम जागे हुए नहीं हैं। यह मत सोचना कि भीतर सपना नहीं चलता है। भीतर तो सपना | हम ठीक से जागे हुए नहीं हैं। इसकी आप कोशिश करें, तो आपको चलता है, लेकिन बाहर की जरूरत के कारण आपको उस सपने | पता चलेगा कि कितनी गहरी नींद है। अपनी हाथ की घड़ी पर आंख का पता नहीं चलता। आंख बंद करो, सपने का पता चलना शुरू | गड़ाकर बैठ जाएं और तय कर लें कि पूरा एक मिनट, जो सेकेंड हो जाएगा।
| का कांटा है, उसको आप देखते रहेंगे स्मृतिपूर्वक, और बीच में दिन में आप देखते हैं आकाश की तरफ, तारे दिखाई नहीं पड़ते। कोई दूसरा विचार और सपना नहीं आने देंगे—एक मिनट सिर्फ। लेकिन आप यह मत सोचना कि तारे खो जाते हैं। तारे तो अपनी आप पाएंगे कि दस दफा बीच में सपने आ गए, दस दफे झोंक जगह होते हैं। दिन में दिखाई नहीं पडते. क्योंकि सरज की रोशनी आ गई, दस दफे निद्रा लग गई, दस दफे आप चक गए। कांटे को इतनी तेजी से बीच में आ जाती है कि आपकी आंखें तारों को नहीं | भूल गए; मन कहीं और चला गया। कोई और खयाल बीच में आ देख पातीं। लेकिन दिन की भरी रोशनी में ही आप किसी गहरे कुएं | गया और आपको ले गया। एक मिनट में दस बार आपके मन में में चले जाएं, तो गहरे कुएं में से देखें, तो आपको तारे दिखाई सपना आपको झकझोर डालेगा। तब आपको पता चलेगा कि मैं पड़ेंगे। क्योंकि तब बीच का अंधेरा तारों को उघाड़ने में सहयोगी कैसा सोया हुआ आदमी हूं! होता है।
रास्तों पर कोई रात तीन बजे और चार बजे के बीच अधिक ठीक ऐसे ही हमारे भीतर रात सपने चलते हैं. ऐसा मत एक्सिडेंट होते हैं। तो डाइवर्स के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक सोचना; दिनभर सपने चलते हैं, चौबीस घंटे सपने चलते हैं। दिन वक्त रात के तीन और चार के बीच में है। मनोवैज्ञानिक बहुत दिन की जरूरत में, दिन की रोशनी में, उलझन में, दूसरे काम में, बाहर से इस खोज में थे कि बात क्या होगी? यह तीन और चार के बीच