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ॐ मनुष्य बीज है परमात्मा का
जैसे तुम हो अपने नग्न सत्य में, वैसे ही निर्वस्त्र, तुम्हें तुम्हारी पूरी ही जाए, तो फिर? नग्नता में, सत्यता में देख लेना चाहता हूं। यही अर्जुन की मांग थी, अर्जुन की भी यही हालत है। वह दरवाजे के भीतर घुस गए; यह उसकी ही प्रार्थना थी। और अब देखकर वह कह रहा है. वापस उन्होंने कंडी बजा दी। अब परमात्मा मिल गया. अब वे लौट आओ; अपने पुराने रूप में खड़े हो जाओ। अब तो वही ठीक | | कि नहीं, वापस! फिर मुझे खोजने दो। फिर तुम अपनी सीमा में खड़े है। तुम्हारा चार हाथों वाला वह रूप, उसी में तुम वापस आ जाओ। | | हो जाओ, ताकि फिर मैं असीम को खोजूं। अब तुम फिर मुस्कुराओ। प्रसन्न हो जाओ।
| अब तुम फिर गदा हाथ में ले लो। अब तुम चतुर्भुज हो जाओ। तुम जो खो जाता है, हम उसकी मांग करने लगते हैं। जो मिल जाता | वही हो जाओ! क्योंकि तुम तो मुझे मिटाए दे रहे हो। अब मेरा कोई है, वह हमें व्यर्थ दिखाई पड़ने लगता है। कुछ भी मिल जाए, तो हमें अर्थ ही नहीं रह जाता, कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। डर लगता है। पीछे लौटना चाहते हैं, आगे जाना चाहते हैं। मगर जो | आपको खयाल में नहीं है। जो लोग दूर तक सोचते हैं, उनको मिल जाए, उसके साथ राजी रहने की हमारी हिम्मत नहीं है। खयाल में है। रवींद्रनाथ ने बड़ा गहरा व्यंग्य किया है।
रवींद्रनाथ ने लिखा है एक गीत, कि खोजता था परमात्मा को | बर्दैड रसेल ने अपने एक वक्तव्य में ठीक यही बात कही है। अनंत-अनंत कालों से। और बड़ा बेचैन रहता था। और बड़ा | | रसेल ने कहा है कि मैं हिंदुओं के मोक्ष से बहुत डरता हूं। मुझे रोता-चिल्लाता था। और बड़ी तपश्चर्या करता था। और कभी सोचकर ही बात भयावनी मालूम पड़ती है। और सच में है। आपने किसी दूर तारे के किनारे उसकी शक्ल भी दिखाई पड़ती थी। जब सोचा नहीं कभी, इसलिए फिक्र नहीं है। रसेल कहता है कि मैं यह तक वहां पहुंचता था, तब तक वह दूर निकल जाता था। बड़ी | | सोचकर ही बहुत भयभीत हो जाता हूं कि मोक्ष मिल जाएगा, फिर व्याकुलता थी, मिलन का बड़ा आग्रह था। रोता, तड़पता, छाती | | क्या? देन व्हाट? और बड़ी कठिनाई यह है कि मोक्ष से संसार में पीटता, भटकता था।
| वापस नहीं आ सकते। संसार से तो मोक्ष में जा सकते हैं। एनट्रेंस फिर एक दिन ऐसा हुआ कि उसके दरवाजे पर ही पहुंच गया। तो है, एक्जिट नहीं है। मोक्ष से वापस नहीं लौट सकते। वहां से सीढ़ियां चढ़ गया। दरवाजे पर तख्ती लगी थी कि यही है उसका कोई दरवाजा नहीं, जिसमें से निकल भागे, बाहर आ गए। मकान, जिसकी तलाश थी। हाथ में सांकल ले ली दरवाजे की। | तो रसेल कहता है, मोक्ष की बात ही घबड़ाती है कि वहां न दुख जन्मों-जन्मों की प्यास पूरी होने के करीब थी। ठोंकने ही वाला था | | होगा, न सुख होगा, परम शांति होगी, लेकिन कितनी देर? अनंत सांकल कि तभी मन ने कहा कि जरा सोच ले, अगर परमात्मा मिल | काल तक? अनंत काल तक शांति, शांति, शांति! बहुत बोर्डम, ही गया, तो फिर तू क्या करेगा? फिर तू क्या करेगा? अब तक तू | | बहुत ऊब पैदा हो जाएगी। स्वाद में थोड़ी बदलाहट तो चाहिए ही उसको खोजता था। और वह आखिरी खोज है। और अगर मिल आदमी को। थोडा दख आता है. तो सख में फिर मजा आ जाता ही गया, फिर तू क्या करेगा? फिर तेरे होने का क्या अर्थ? | है। थोड़ी अशांति होती है, तो शांति की फिर चाह पैदा हो जाती है।
रवींद्रनाथ ने बड़ी मीठी कविता लिखी है। लिखा है कि धीरे से | | लेकिन वहां कोई विघ्न-बाधा ही न होगी। वहां एक-सुरा संगीत सांकल मैंने छोड़ दी कि कहीं आवाज न हो जाए। कहीं वह बाहर | होगा, जिसमें कभी ऊंची-नीची ताल न होगी। वहां सा रे ग म प ही न आ जाए! कहीं वह आकर आलिंगन में ही न ले ले कि आ। ध नि नहीं होगा। वहां बस सा तो सा। सा सा सा सा सा चलता बहुत दिन से खोजता था, अब मिलन हो जाए। जूते हाथ में निकाल | रहेगा अनंत काल तक! लिए, कि कहीं सीढ़ियों से लौटते वक्त आवाज न हो जाए! और | ___ उसमें, रसेल कहता है, घबड़ा जाएगी तबीयत। और निकलने फिर मैं जो भागा हूं, तो मैंने लौटकर नहीं देखा।
का रास्ता नहीं है। और यहां तो प्रभु से प्रार्थना करते थे कि मोक्ष __ अब मैं फिर खोज रहा हूं। अब मैं पूछता हूं लोगों से कि कहां | | पहुंचा दो। फिर क्या करेंगे? मोक्ष के बाद कोई उपाय नहीं है। तो है उसका मकान? और मुझे उसका मकान पता है। और अब मैं | | रसेल कहता है, इससे तो नरक भी बेहतर है, उसमें से कम से कम जगह-जगह
| बाहर तो आ सकते हैं! और कम से कम कुछ मजा तो रहेगा। कुछ बताओ। और मुझे उसका रास्ता पता है। और कभी भूल-चूक से | | चीजें तो बदलेंगी। फिर संसार ही क्या बुरा है। भी उसके घर के पास से मैं नहीं गुजरता हूं। क्योंकि अगर वह मिल | यह रसेल ठीक कहता है। अगर सोचेंगे, तो घबड़ाहट होगी।
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