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गीता दर्शन भाग-5
लेकिन ऐसा नहीं है कि बुद्ध और महावीर और कृष्ण ने बिना सोचे यह बात कही है। अगर आप अपनी बुद्धि को लेकर मोक्ष में चले जाएंगे, तो वही होगा, जो रसेल कह रहा है। क्योंकि बुद्धि द्वंद्व है। वह एक को नहीं सह सकती, उसको दो चाहिए। लेकिन मोक्ष की अनिवार्य शर्त है, बुद्धि को दरवाजे पर छोड़ जाना। इसलिए वहां कोई कभी नहीं ऊबता ।
ध्यान रहे, बोर्डम के लिए बुद्धि जरूरी है। बुद्धि के नीचे भी बोर्डम पैदा नहीं होती, बुद्धि के ऊपर भी बोर्डम पैदा नहीं होती । आपने किसी गाय-भैंस को बोर होते हुए देखा है? कि भैंस बैठी है, बोर हो गई ! कि बहुत ऊब गई ! वही घास रोज चर रही है। वही सब रोज चल रहा है। भैंस को कोई ऊब नहीं है। क्यों?
क्योंकि ऊब पैदा होती है बुद्धि के साथ। बुद्धि तुलना करने लगती है— जो था, जो है, जो होगा इसमें । तौलने लगती है, तो फिर भेद अनुभव होने लगता है । फिर कल भी यही भोजन मिला, आज भी यही मिला, परसों भी यही मिला, तो ऊब पैदा होने लगती है। भैंस को पता ही नहीं कि कल भी यही भोजन किया था। कल समाप्त हो गया। कल तो बुद्धि संगृहीत करती है, बुद्धि स्मृति बनाती है। भैंस जो भोजन कर रही है, वह नया ही है । कल जो किया था, वह तो खो ही गया, उसका कोई स्मरण ही नहीं है। कल जो होगा, उसकी कोई खबर नहीं है; आज काफी है।
के पार भी नहीं।
रसे ठीक कहता है। अगर बुद्धि को लिए ही कोई घुस जाएगा मोक्ष में, तो बहुत मुश्किल में पड़ जाएगा। लेकिन कोई घुस नहीं | सकता, इसलिए चिंता की कोई जरूरत नहीं है।
यह अर्जुन ऐसी ही दिक्कत में पड़ा है। इसको दिखाई पड़ रहा है विराट | अब इसको याद आता है कृष्ण का वह प्यारा मुख, जिससे मित्रता हो सकती थी, जिसके कंधे पर हाथ रखा जा सकता था, जिसे कहा जा सकता था, हे यादव, हे कृष्ण, अरे सखा ! | जिससे मजाक की जा सकती थी। उसको पकड़ने का मन होता है।
सारी दुनिया में यह बात विचारणीय बनी रही है कि आखिर भारत में हिंदुओं ने परमात्मा की इतनी साकार मूर्तियां क्यों निर्मित | कीं ? इतनी निराकार की बात करने के बाद इतनी साकार मूर्तियां क्यों निर्मित कीं ? मुसलमानों को कभी समझ में नहीं आ सका कि उपनिषद की इतनी ऊंचाई पर पहुंचकर भारत, जहां परम निराकार की बात है, फिर क्यों गांव-गांव, घर-घर में मूर्ति की पूजा कर रहा है?
इस सूत्र में उसका रहस्य है।
इस मुल्क ने निराकार को देखा है । और जिन्होंने इस मुल्क में निराकार को देखा है, उन्होंने अपने पीछे आने वालों के लिए साकार | मूर्तियां बना दीं। क्योंकि उन्हें पता है कि निराकार बहुत घबड़ा देता है, अगर बिना तैयारी के कोई वहां पहुंच जाए। उसमें मिटने की | तैयारी चाहिए। उसके पहले साकार ही ठीक है। उसके कंधे पर हाथ रखा जा सकता है। उसका शादी-विवाह रचाया जा सकता है। उसको कपड़े-गहने पहनाए जा सकते हैं। वह कुछ गड़बड़ नहीं करता। उसके साथ तुम्हें जो करना हो, तुम कर सकते हो । भोजन करवाओ तो करवाओ। लिटाओ तो लिटाओ। सुला दो । उठा दो। द्वार बंद कर दो, खोल दो। करना हो !
इसलिए बुद्धि के नीचे भी बोर्डम नहीं है। कोई जानवर ऊबा हुआ नहीं है। जानवर बड़े प्रसन्न हैं । कोई आदमी के पार गया आदमी, बुद्ध, महावीर, ऊबे हुए नहीं हैं। उनकी प्रसन्नता फिर प्रसन्नता है। क्योंकि जो बुद्धि हिसाब रखती थी, उसको वे पीछे छोड़ आए।
आदमी परेशान है, जो भैंस और भगवान के बीच में है। उसकी बड़ी तकलीफ है, वह ऊबा हुआ है। आदमी का अगर एकमात्र लक्षण, जो जानवर से उसे अलग करता है, कोई खोजा जाए, तो वह बोर्डम है, ऊब है। हर चीज से ऊब जाता है।
: एक सुंदर स्त्री के पीछे दीवाना है; मिली नहीं, मिल नहीं गई स्त्री किं ऊब शुरू हो गई ! दो-चार दिन में ऊब जाएगा। सब सौंदर्य बासा पड़ जाएगा, पुराना पड़ जाएगा। एक अच्छे मकान की तलाश है; मिला नहीं कि दो-चार - आठ दिन में सब बासा हो जाएगा। एक अच्छी कार चाहिए; वह मिल गई। दो-चार-आठ दिन में बासी हो जाएगी। दूसरी कार नजर को पकड़ने लगेगी।
कभी-कभी बहुत कंट्राडिक्टरी लगता है। शंकराचार्य जैसा
बुद्धि तौलती है, ऊबती है। बुद्धि के नीचे भी ऊब नहीं, बुद्धि व्यक्ति, जो शुद्ध निराकार की बात करता है, फिर वह भी मूर्ति के
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परमात्मा को जिन्होंने विराट में झांका है, उन्होंने आदमी के लिए मूर्तियां निर्मित करवा दी हैं। क्योंकि उन्हें पता चल गया कि आदमी जैसा है, अगर ऐसा ही सीधा विराट में खड़ा हो जाए, तो या तो विक्षिप्त हो जाएगा, घबड़ा जाएगा, और या फिर खड़ा ही नहीं हो पाएगा; देख ही नहीं पाएगा; आंख ही नहीं खुलेगी।
इसलिए निराकार का इतना चिंतन करने वाले लोगों ने भी साकार को हटाया नहीं, साकार को बने रहने दिया ।