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3 गीता दर्शन भाग-588
आ रही है। तो उनकी पत्नी शारदा रोती थी, चिल्लाती थी। रामकृष्ण म ह सवाल महत्वपूर्ण है। और जो लोग गणित को उसको कहते थे कि पागल, तू रोती-चिल्लाती क्यों है, क्योंकि मैं
समझते हैं, उन्हें बिलकुल ठीक साफ समझ में आ नहीं मरूंगा। लेकिन शारदा कहती थी, सब डाक्टर कहते हैं, सब जाएगा कि ऐसा ही होना चाहिए। अंश कभी अंशी प्रियजन कहते हैं कि अब आपकी मृत्यु करीब है! और वे कहते थे, | नहीं हो सकता। टुकड़ा पूर्ण कैसे हो सकता है ? टुकड़ा टुकड़ा है। तू उनकी मानती है या मेरी! मेरी मानती है या उनकी! मैं नहीं हम एक सागर से एक चुल्लू भर पानी ले लें, तो वह सागर मरूंगा। मैं रहूंगा यहीं।
नहीं है, सागर का अंश हो सकता है। यह सीधा गणित है। लेकिन शारदा को कैसे भरोसा आए! रामकृष्ण का यह कहना, स्वभावतः, एक रुपए का नोट एक रुपए का नोट है, वह सौ का उनके अपने भीतर के अनुभव की बात है। वे कह रहे हैं कि मैं नहीं हो सकता. सौ का एक हिस्सा हो सकता है. सौवां हिस्सा हो नहीं मरूंगा।
सकता है। यह सीधा गणित है। और जहां तक गणित जाता है, वहां रामकृष्ण को कैंसर हुआ था। कठिन कैंसर था, गले में था और तक बिलकुल ठीक है। भोजन-पानी सब बंद हो गया था। बोलना भी मुश्किल हो गया था। लेकिन धर्म गणित से आगे जाता है। और धर्म बड़ा उलटा पर रामकृष्ण ने कहा है कि देख, तुझसे मैं कहता हूं, जिसको कैंसर | गणित है। उसे थोड़ा समझने के लिए चेष्टा करनी पड़े। क्योंकि हुआ था, वही मरेगा। मुझे कैंसर भी नहीं हुआ था। यह गला रुंध सामान्य गणित तो हम रोज उपयोग करते हैं, हमें पता है। धर्म का गया है, यह गला बंद हो गया है, यह गला सड़ गया है, यह कैंसर गणित हमें बिलकुल पता नहीं है। धर्म के गणित का पहला सूत्र यह से भर गया है, लेकिन मैं देख रहा हूं कि मैं यह गला नहीं हूं। तो है कि वहां अंशी और अंश एक हैं। गला मर जाएगा, यह शरीर गल जाएगा, मिट जाएगा, लेकिन मैं | आपने ईशावास्य का पहला सूत्र सुना है! उस पूर्ण से पूर्ण नहीं मरूंगा।
निकल आता है और पीछे भी पूर्ण शेष रह जाता है। आप किसी सौ पर हमें कैसे भरोसा आए? क्योंकि हमें अनुभव न हो। हम तो रुपए में से एक रुपए का नोट बाहर निकालें, पीछे निन्यानबे शेष मानते हैं कि हम शरीर हैं। तो जब शरीर मरता है, तो हम मानते हैं | रहेंगे, सौ शेष नहीं रहेंगे। लेकिन यह सूत्र तो बड़ी गजब की बात कि हम भी मर गए। हमारे जीवन की भ्रांति हमारी मृत्यु की भी भ्रांति कहता है। यह कहता है कि सौ में से सौ भी बाहर निकाल लो, तो बन जाती है।
भी सौ ही पीछे शेष रह जाता है! पूर्ण से पूर्ण भी निकाल लो, तो - अर्जुन को दिखाई नहीं पड़ा, आपको भी दिखाई नहीं पड़ेगा। भी पीछे पूर्ण ही शेष रह जाता है। जिस दिन मत्य के द्वार पर आप खडे हो जाएंगे और देखेंगे कि मर । इसका क्या मतलब हआ? यह तो हमारे सारे गणित की रहा है सब कछ. तब भी एक आप बाहर खडे रहेंगे। आप नहीं मर व्यवस्था गडबड हो जाती है। अगर यह उपनिषद का सत्र सही है, रहे हैं, आपके मरने का कोई उपाय नहीं है। इसलिए अर्जुन बात तो हमारा सारा गणित गलत है। अध्यात्म के जगत में गणित गलत नहीं कर रहा है अपनी मृत्यु की।
है। उसके कारण हैं। उसे हम दो-तीन तरह से समझें, तो खयाल में आ जाए।
पहली तो बात यह कि जो निराकार है, उसमें से हम अंश को एक और मित्र ने भी बहुत गहरा सवाल पूछा है। बाहर नहीं निकाल सकते। कोई उपाय नहीं है। आप सागर में से उन्होंने पूछा है कि हम सब भगवान हैं। सब भगवान चुल्लू भरकर पानी बाहर निकाल लेते हैं, क्योंकि सागर के बाहर के अंश हैं, यह तो समझ में आ जाता है। लेकिन भी जगह है। इसलिए आप पानी भर लेते हैं चुल्लू में। अंश पूर्ण नहीं हो सकता, अंश तो अंश ही होगा। तो ऐसा समझें कि सागर ही सागर है और सागर के बाहर कोई हम भगवान के अंश हैं, यह तो समझ में आ जाता | जगह नहीं है। फिर आप चुल्लू भी भर लें, तो आपकी चुल्लू में है, लेकिन भगवान हैं, यह समझ में नहीं आता। तो | अंश नहीं होगा, पूरा सागर ही होगा। बाहर तो हम इसलिए निकाल इतना ही कहना उचित है कि हम भगवान के अंश हैं, | लेते हैं कि बाहर सुविधा है। सागर में से चुल्लू भर पानी बाहर लेकिन भगवान हैं, यह कहना उचित नहीं है। निकाल लेते हैं।
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