SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8 मनुष्य बीज है परमात्मा का ___ परमात्मा से चुल्लू भर निकालना मुश्किल है। क्योंकि परमात्मा ऐसा समझिए कि एक आदमी आपसे कहता है कि थोड़ा-थोड़ा के बाहर कोई जगह नहीं है, सिर्फ वही है। उसके बाहर निकालिएगा आपसे प्रेम है, थोड़ा-थोड़ा! क्या मतलब होता है थोड़ा-थोड़ा प्रेम कैसे? कौन निकालेगा? कहां निकालेगा? उसके बाहर निकालने | का? या तो प्रेम होता है या नहीं होता। थोड़ा-थोड़ा प्रेम जैसी कोई का कोई उपाय नहीं है। चीज नहीं होती। हो भी नहीं सकती। इसलिए परमात्मा को खंड-खंड करने का भी उपाय नहीं है। __ आप कहते हैं कि मैं थोड़ा-थोड़ा चोर हूं। थोड़ा-थोड़ा कोई चोर आप अखंड परमात्मा हो, टुकड़े-टुकड़े नहीं हो। टुकड़ा हो नहीं | | होता है। या तो आप चोर हैं या चोर नहीं हैं। थोड़ा-थोड़ा आप क्यों सकता उसका। और अगर परमात्मा का टुकड़ा हो जाए, तो हमने | | कहते हैं? कहते हैं कि मैं लाख की चोरी नहीं करता; ऐसे, पैसे दो बड़ा भारी काम कर लिया। मार ही डाला उसको। उसके टुकड़े नहीं पैसे ही चुराता हूं। इसलिए थोड़ा-थोड़ा चोर हूं। हो सकते, कि आप एक टुकड़ा हो, मैं एक टुकड़ा हूं और तीसरा | लेकिन एक पैसे की चोरी भी उतनी ही चोरी है, जितनी लाख आदमी तीसरा टुकड़ा है। ऐसे उसके कोई टुकड़े नहीं हो सकते। रुपए की चोरी। यह लाख और एक का फासला चोरी का फासला क्योंकि टुकड़ा होगा उसका, जिसके बाहर भी कोई जगह हो। नहीं है। चोरी करने की जो चित्त-दशा है, वह एक पैसे में भी उतनी परमात्मा का कोई टुकड़ा नहीं हो सकता। ही है, जितनी करोड़ में। इसलिए करोड़ की चोरी बड़ी और एक इसलिए जो लोग कहते हैं, हम परमात्मा के अंश हैं, बिलकुल पैसे की चोरी छोटी, यह सिर्फ नासमझ कहेंगे, जिनको सिर्फ गणित गलत कहते हैं। क्योंकि अंश का मतलब है, आप टुकड़ा हो गए, आता है; जिनको गणित के पार कुछ दिखाई नहीं पड़ता। आप अलग हो गए। आप परमात्मा में हैं पूरे के पूरे और पूरा का | ___चोरी बराबर होती है। एक पैसे की चोरी में भी आप पूरे चोर होते पूरा परमात्मा आप में है। इसमें कोई बंटाव के उपाय नहीं हैं। काटने | हैं, और एक करोड़ की चोरी में भी उतने ही चोर होते हैं, पूरे चोर की कोई सुविधा नहीं है। डिवीजन नहीं हो सकते। क्योंकि वह होते हैं। क्या आप चुराते हैं, इससे चोर होने में फर्क नहीं पड़ता। या अकेला ही है। कैसे बांटिए? कौन बांटे? कहां बांटे ? कहां है जगह | तो आप चोर हैं, या चोर नहीं हैं। इन दोनों के बीच बंटाव नहीं है। जिसमें हम बांट लें? ठीक ऐसे ही, या तो आप परमात्मा हैं पूरे के पूरे, और या और दो टुकड़ों के बीच तो फासला हो जाता है। आपके और बिलकुल नहीं हैं। बीच में, थोड़े-थोड़े परमात्मा, ऐसा समझौता परमात्मा के बीच जरा भी फासला नहीं है। इसलिए आपको टुकड़ा | हमारा गणित करने वाला जो मन है, वह करता है। उससे हमें राहत नहीं कहा जा सकता। आप एक फल के दो टुकड़े कर लेते हैं, दोनों | भी मिलती है, लेकिन वह सत्य नहीं है। में फासला हो जाता है। आपके और परमात्मा के बीच इंचभर भी | असीम को खंडों में नहीं बांटा जा सकता। फासला नहीं है। आपको टुकड़ा नहीं कहा जा सकता। आपको आस्पेंस्की ने, रूस के एक बहुत बड़े गणितज्ञ ने एक किताब अंश नहीं कहा जा सकता। या तो आप पूरे के पूरे परमात्मा हैं और | लिखी है, टर्शियम आर्गानम। गणित के ऊपर लिखी गई मनुष्य के या बिलकुल परमात्मा नहीं हैं। इन दो के बीच तीसरा कोई उपाय | इतिहास में श्रेष्ठतम पुस्तकों में एक है। खुद आस्पेस्की का भी दावा नहीं है। है कि तीन ही किताबें दुनिया में हैं, जिनमें वह एक है। और उसके मगर हमारी बुद्धि समझौते के लिए तैयार रहती है। वह सोचती दावे में जरा भी दंभ नहीं है। दावा बिलकुल सही है। है कि पूरा परमात्मा कहना तो जरा जरूरत से ज्यादा हो जाएगा। ___ तर्क और गणित के सिद्धांत पर पहली किताब लिखी है अरस्तू और बिलकुल परमात्मा नहीं हैं, तो भी बड़ी मन को दीनता मालूम | ने। उस किताब का नाम है, आर्गानम। आर्गानम का मतलब है, पड़ती है। इसलिए ऐसा कहो कि थोड़े-थोड़े परमात्मा हैं, | पहला सिद्धांत। फिर दूसरी किताब लिखी है बेकन ने। उस किताब जरा-जरा! का नाम है, नोवम आर्गानम, नया सिद्धांत। और आस्पेस्की ने लेकिन जरा-जरा परमात्मा का क्या मतलब होता है ? थोड़े-थोड़े | तीसरी किताब लिखी है, टर्शियम आर्गानम, तीसरा सिद्धांत, परमात्मा का क्या मतलब होता है? थोड़ा परमात्मा पूरे परमात्मा से गणित का तीसरा सिद्धांत। और आस्पेंस्की ने अपनी किताब में जो कम होगा! तो वह परमात्मा ही नहीं होगा। थोड़े परमात्मा का क्या ऊपर ही घोषणा की है, वह बड़ी मजेदार है। वह यह है कि दोनों मतलब होगा? सिद्धांतों के पहले भी मेरा सिद्धांत मौजूद था। ये दोनों किताबें 1399]
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy