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चरण-स्पर्श का विज्ञान
बड़ा ओछा है। पर होगा ही व्यवहार ओछा, क्योंकि दृष्टि ओछी है। क्योंकि वह विराट तो कहीं दिखता ही नहीं है।
ऐसा मैंने सुना है; एक सूफी कथा है। एक सम्राट अपने बेटे पर नाराज हो गया, क्योंकि बेटा कुछ उपद्रवी, हठधर्मी था, उच्छृंखल था। नाराज इतना हो गया कि एक दिन उसने बेटे को राज्य का निकाला दे दिया। उसे कहा कि तू राज्य को छोड़कर चला जा । एक
बेटा था। बड़ा कष्ट था, लेकिन छोड़ना पड़ा। बाप की भी जिद थी, बेटा भी जिद्दी था। बाप का ही बेटा था, एक से ही ढंग थे; दोनों अहंकारी थे। बेटे ने भी छोड़ दिया। राज्य की सीमा में मत टिकना ! तो राज्य की सीमा में न टिककर दूसरे राज्य में चला गया।
राजा का बेटा था। कभी जमीन पर पैदल भी नहीं चला था, कभी कोई काम भी नहीं किया था। तो सिवाय भीख मांगने के कोई उपाय नहीं रहा। थोड़ा-बहुत तंबूरा बजाना जानता था, थोड़ा गीत - वीत का शौक था, तो गीत, तंबूरा बजाकर भीख मांगने लगा ।
दस वर्ष बीत गए । बाप बूढ़ा हुआ, मरने के करीब आया । तो अब उसे लगा कि क्या करे, उस बेटे को खोजा जाए! तो वजीरों को भेजा कि कहीं भी मिले, शीघ्र ले आओ। मौत मेरी करीब है; वही मालिक है, जैसा भी है।
उस दिन जब उस छोटे-से गांव में, जहां एक चाय की दूकान सामने वह भावी सम्राट भीख मांग रहा था...। गर्मी के दिन थे और आग बरस थी और रास्ते तप रहे थे, उन पर पैदल नंगे चलना मुश्किल था। उसके पास जूते नहीं थे। तो वह भीख मांग रहा था एक छोटे-से बर्तन में और लोगों से कह रहा था कि जूते के लिए मुझे पैसे चाहिए। होटल में जो लोग चाय-वाय पी रहे थे, • गरीब-गुरबे, उसको पैसे, दो पैसे, थोड़ी-बहु चिल्लर उसके बर्तन में थी ।
वजीर का रथ आकर रुका। वजीर ने देखा; पहचान गया । वस्त्र अब भी वही थे, दस साल पहले पहनकर जो घर से निकला था। फट गए थे, चीथड़े हो गए थे, गंदे हो गए थे, पहचानना मुश्किल था कि ये सम्राट के वस्त्र हैं। लेकिन पहचान गया मंत्री। आंखें वही थीं। चेहरा काला पड़ गया था। शरीर सूख गया था। हाथ में भिक्षा पात्र था। पैर में फफोले थे ।
मंत्री नीचे उतरा। वह भिक्षा पात्र फैलाए हुए था। भिक्षा पात्र ! पास में रथ आकर रुका है, सोचा कि भिक्षा पात्र इस तरफ करूं । देखा मंत्री है। हाथ से भिक्षा पात्र छूट गया। एक क्षण में दस साल मिट गए।
मंत्री चरण पर गिर पड़ा और कहा कि महाराज, वापस चलें। भीड़ इकट्ठी हो गई। गांव सब आ गया पास। लोग पैरों पर गिरने लगे। वे, जिनके सामने वह भीख मांग रहा था, जो अभी भीख देने से कतरा रहे थे, वे उसके पैरों पर गिरने लगे, कहने लगे, माफ कर देना, हमें क्या पता था !
एक क्षण में सब बदल गया, सारे गांव का रुख । एक क्षण में बदल गया राजकुमार का रुख भी । अभी वह भिखारी था, एक क्षण में सम्राट हो गया। कपड़े वही रहे, शरीर वही रहा, आंखें बदल गईं। रौनक और हो गई।
जिंदगी, जैसा हम उसे देख रहे हैं, हमारी आंख से जो दिखाई पड़ रही है जिंदगी, हमारी आंख के कारण है। आंख बदल जाए, सारी जिंदगी बदल जाती है। और तब सिवाय क्षमा मांगने के कुछ भी न रह जाएगा।
वह पूरा गांव पैरों पर गिरने लगा कि क्षमा कर देना, बहुत भूलें हुई होंगी हमसे । निश्चित हुई हैं। हमने तुम्हें भिखारी समझा, यही बड़ी भूल थी!
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अर्जुन यही कह रहा है कि हमने तुम्हें मित्र समझा, यही बड़ी भूल थी। और मित्र समझकर हमने वे बातें कही होंगी, जो मित्रता में कह दी जाती हैं।
और मित्र एक-दूसरे को गाली भी दे देते हैं। सच तो यह है कि जब तक गाली देने का संबंध न हो, लोग मित्रता ही नहीं समझते! जब तक एक-दूसरे को गाली न देने लगें, तब तक समझते हैं, अभी पराए हैं, अभी कोई अपनापन नहीं है।
तो मित्र समझा है। कभी कहा होगा, ऐ कृष्ण! कभी कहा होगा, | ऐ यादव ! कभी कहा होगा, ऐ मित्र ! क्षमा कर देना । हठपूर्वक बहुत-सी बातें कही होंगी। हठपूर्वक अपनी बात मनवानी चाही होगी। तुम्हारी बात झुठलाई होगी। विवाद किया होगा। तुम गलत हो, ऐसा भी कहा होगा। तुम गलत हो, ऐसा सिद्ध भी किया होगा। अवमानना की होगी । ठुकराया होगा तुम्हारे विचार को ।
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और हे अच्युत, हंसी के लिए ही सही, तुमसे वे बातें कही होंगी, जो नहीं कहनी चाहिए थीं। विहार में, शय्या पर, आसन में, भोजन करते वक्त, मित्रों के साथ, भीड़ में, एकांत में, दूसरों के सामने, न मालूम क्या-क्या कहा होगा! न मालूम किस-किस भांति आपको अपमानित किया होगा! या दूसरे अपमानित कर रहे होंगे, तो सहमति भरी होगी, विरोध न किया होगा । ये सब अपराध, अप्रमेयस्वरूप, अचिंत्य प्रभाव वाले, आपसे मैं क्षमा कराता हूं।