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________________ 3 बेशर्त स्वीकार हमारी भाषा की भूल है। में उन्हें कुछ पता नहीं है। कृष्ण तो बहुत स्पष्ट अर्जुन से इसलिए मैं निरंतर कहता हूं कि भगवान को कभी कुम्हार की II कहते हैं, सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं तरह मत सोचना कि वह घड़े को बना रहा है। क्योंकि कुम्हार मर | व्रज-सब छोड़ और मेरी शरण में आ। कृष्ण तो जाए, तो भी घड़ा रहेगा। घड़ा तो कुम्हार से अलग हो गया। कुम्हार | कहते हैं, मैं ही परात्पर ब्रह्म हूं। बुद्ध ने तो कहा है, मैंने वह पा के मरने से घड़ा नहीं मर जाएगा। लेकिन अगर भगवान न हो, तो लिया, जो अंतिम है। अब मैं मनुष्य नहीं, अब मैं बुद्ध हो गया हूं। यह जगत इसी क्षण विलीन हो जाएगा। इसलिए घड़ा और कुम्हार | | महावीर ने तो कहा है, आत्मा जब शुद्ध हो जाती है, तो उसी का की बात ठीक नहीं है। यहां बनाने वाला, जो बनाया है, उसमें | | नाम परमात्मा है। और मैं परिपूर्ण शुद्ध हो गया हूं। समाया हुआ है, अलग नहीं है। इन मित्र का खयाल ऐसा है कि महावीर, बुद्ध, कृष्ण के इसलिए मैं निरंतर कहता हूं कि भगवान है नर्तक की तरह, | अनुयायियों ने उनको भगवान कह दिया। उन्होंने नहीं कहा। अगर नटराज । एक नाच रहा है आदमी। तो नृत्य है और नृत्यकार है। वे थे, तो कहने में डर क्या है? और अगर वे नहीं थे या कहने में लेकिन अलग-अलग नहीं। अगर नृत्यकार चला जाए, तो नर्तन कुछ संकोच करते थे, तो अनुयायियों के कहने से भी नहीं हो बचेगा नहीं पीछे; वह भी उसी के साथ चला जाएगा। आप नृत्य जाएंगे। सीधी घोषणा है उनकी। और उन्होंने यही नहीं कहा कि वे को अलग नहीं कर सकते नत्यकार से। भगवान हैं, उन्होंने समझाने की कोशिश की है कि आप भी भगवान इसलिए हमने परमात्मा की नटराज की मूर्ति बनाई है। वह बहुत हैं। और जिसको इतना भी बल न हो कहने का कि मैं भगवान है, अर्थ की है। कुम्हार और घड़े वाली बात तो बचकानी है, और वह आपसे क्या कहेगा कि आप भगवान हैं! जिसको अपने पर जिनके पास बुद्धि कम है, उनके काम की है। नटराज का अर्थ यह इतना भरोसा न हो कि कह सके, वह आपसे क्या कहेगा कि आप है कि यह जो नृत्य है विराट, यह उससे अलग नहीं है। यह सारा | भगवान हैं! का सारा नृत्य नृत्यकार ही है, नर्तक ही है। तो मैं आपसे कहता हूं कि इस सृष्टि को बनाने में मेरा उतना ही हाथ है, जितना आपका, जितना एक पक्षी का, जितना एक पौधे | उन मित्र ने एक बात और पूछी है कि कृष्ण भगवान का, जितना राम का, कृष्ण का, बद्ध का। हम इस विराट के उतने थे, तो उन्होंने अर्जुन को तो विराट का दर्शन कराया। ही हिस्से हैं, जितना कोई और। आप करवा सकते हैं? __ आप स्रष्टा भी हैं, सृष्टि भी। आप नर्तक भी हैं, नृत्य भी। और जब तक आप समझते हैं कि आप सिर्फ नृत्य हैं, नर्तक नहीं, तब • तक आप भूल में हैं। क्योंकि नृत्य हो ही नहीं सकता नर्तक के | वायदा करता हूं, मैं करवा सकता हूं। लेकिन अर्जुन बिना। सृष्टि हो ही नहीं सकती स्रष्टा के बिना, अगर स्रष्टा उसके 01 होने की तैयारी चाहिए। भीतर मौजूद नहीं है। वह आपके भीतर भी मौजूद है। आपको हम कभी सोचते नहीं, हम क्या पूछ रहे हैं! उसकी खबर नहीं है, इसलिए परेशान हैं। मेरी तरफ से वायदा पक्का है। जिसको भी विराट के दर्शन करने हों, मैं करवाऊंगा। लेकिन आने के पहले छाती पर हाथ रखकर इतना भर सोच लेना कि अर्जुन जैसी तैयारी है? फिर कोई बाधा वे मित्र पूछते हैं कि राम को हम भगवान कहते हैं, नहीं है। फिर मेरे बिना भी दर्शन हो सकता है। कोई मेरी जरूरत कृष्ण को हम भगवान कहते हैं, बुद्ध को, महावीर को नहीं है। आपकी अर्जुन जैसी तैयारी हो, तो परमात्मा आपको कहीं कहते हैं। लेकिन उन्होंने खुद अपने को भगवान नहीं भी उपलब्ध हो जाएगा। वह अर्जुन की तैयारी जब होती है, तो वह कहा। और यहां ऐसा मालूम पड़ता है कि आप लोगों सब जगह उपलब्ध है। और जब अर्जुन की तैयारी नहीं होती, तब से अपने को भगवान कहला रहे हैं! वह आपके सामने भी खड़ा हो, तो आप यही पूछते रहेंगे, आप भगवान हैं? 369
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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