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ॐ अज्ञेय जीवन-रहस्य -
हे अर्जुन, मेरी उत्पत्ति को अर्थात विभूतिसहित लीला से प्रकट अज्ञात ही रहेगा, अज्ञेय ही रहेगा। होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिजन, क्योंकि मैं सब | | मेरी उत्पत्ति को न देवता जानते, न महर्षि, क्योंकि मैं सब प्रकार प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी आदि कारण हूं। से देवताओं और महर्षियों का भी आदि कारण हूं। ___ मेरी उत्पत्ति को, मेरी विभूति को, मेरे सत्य को न देवता जानते । समस्त दिव्यता मेरा ही रूप है, और समस्त ज्ञान मेरा ही ज्ञान हैं और न महर्षि!
| है। मेरा ही ज्ञान लौटकर मुझे नहीं जान पाएगा, जैसे मेरी ही आंख बहुत आश्चर्यजनक वचन है। और परम श्रद्धा हो, तो ही समझ लौटकर मुझे नहीं जान पाएगी। लेकिन आंख एक काम कर सकती में आ सकता है। देवता भी नहीं जानते, और जिन्हें हम जानने वाले है। दर्पण में अपने को देख सकती है। यद्यपि दर्पण में जो दिखाई कहते हैं, वे महर्षि भी नहीं जानते मेरी उत्पत्ति को। क्यों नहीं पड़ता है, वह आंख नहीं है; केवल प्रतिबिंब है, केवल छाया है। जानते? तीन बातें।
ऋषियों ने भी जिसे जाना है, वह भी परमात्मा की छाया है, परमात्मा - एक तो, इस जगत का जो भी मल आधार है, उस मूल आधार | नहीं। और देवता भी जिसकी अर्चना करते हैं, वह परमात्मा का को कोई भी नहीं जान सकेगा, क्योंकि वह मूल आधार सभी के प्रतिबिंब है. परमात्मा नहीं। होने के पहले है। देवता नहीं थे, तब भी वह था; और महर्षि जब जिस दिन प्रतिबिंब भी छूट जाते हैं, जिस दिन जानने वाला भी नहीं थे, तब भी वह था।
अपने को भूल जाता है, जिस दिन जानने वाला भी शेष नहीं रहता, ___ मैं अपनी आंखों से सबको देख सकता हूं, अपनी आंखों भर | उस दिन! लेकिन उस दिन ऋषि ऋषि नहीं होता; देवता देवता नहीं
को नहीं देख सकता। मैं अपनी आंखों से आंखों के बाहर सब | होता; उस दिन तो लहर खो जाती है सागर में और सागर ही हो कुछ देख सकता हूं, आंखों के पीछे नहीं देख सकता। मैं अपनी जाती है। इस मुट्ठी से सब कुछ पकड़ सकता हूं, लेकिन इस मुट्ठी को ही कृष्ण महर्षि नहीं हैं, और उन्हें महर्षि न कहने का यही कारण है। नहीं पकड़ सकता।
| वे कोई ज्ञाता नहीं हैं, और न कृष्ण कोई देवता हैं। कृष्ण अपने को जो मौलिक है, जो मूल है, जिससे देवता भी पैदा होते और छोड़ दिए हैं उस परम के साथ। कृष्ण अब नहीं हैं, अब वह परम महर्षि भी; जिससे सब पैदा होते हैं और जिसमें सब लीन हो जाते | ही अपनी अभिव्यक्ति उनके द्वारा कर रहा है। हैं, उसके जन्म को, उसके होने को, उसके अस्तित्व के मूल कारण ___ इसलिए एक बहुत मजे की बात, और बहुत विचित्र, और को कोई भी नहीं देख पाएगा। कोई उपाय नहीं है। उसका स्वयं का जिसके कारण बहुत विवाद दुनिया में चला है, वह आपको इस वक्तव्य ही केवल एकमात्र वक्तव्य है। और उस वक्तव्य को श्रद्धा संदर्भ में कहूं। के अतिरिक्त स्वीकार करने का और कोई उपाय नहीं है। हिंदू मानते हैं कि वेद ईश्वरीय वचन है। इस्लाम मानता है कि महर्षि तो हम कहते ही उसे हैं. जो जानता है। लेकिन कष्ण के |
कुरान इलहाम है, रिवीलेशन है; ईश्वर से सीधा प्रकट हुआ है। इस सूत्र का अर्थ हुआ कि जो जानते हैं, वे भी नहीं जानते। तब | ईसाई भी मानते हैं कि बाइबिल ईश्वरीय, रूहानी किताब है। लेकिन महर्षि का एक और भी परम गुह्य अर्थ प्रकट होगा। तब जो सोचते ये कोई भी ठीक से सिद्ध नहीं कर पाते कि इनका मतलब क्या है। हैं कि महर्षि हैं, वे महर्षि नहीं हैं। तब तो केवल वे ही जानते हैं, जो | और जो भी सिद्ध करने जाते हैं, वे बहुत बचकानी बातें इकट्ठी कर इस अनुभव पर आ जाते हैं कि उन्हें कुछ भी पता नहीं है। कोई | लेते हैं। और उनको गलत करना बहुत कठिन नहीं है। सुकरात, कोई उपनिषद का ऋषि, जो कहता है कि मुझे कुछ भी जो कहते हैं कि वेद ईश्वर की किताब है, उनको गलत करना पता नहीं, वही, शायद उसे ही थोड़ा पता लगा है।
बहुत कठिन नहीं है। क्योंकि वेद में जो भी बातें हैं, वे बिलकुल नहीं जान सकेगा कोई भी, क्योंकि हम सब उसके हिस्से हैं। मानवीय हैं और मनुष्यों के वक्तव्य मालूम होते हैं। कुरान में भी जो सागर तो बूंद को जान सकता है, बूंद सागर को जानेगी भी तो कैसे! बातें हैं, वे भी मानवीय हैं और मनुष्यों के वक्तव्य मालूम होते हैं।
और वृक्ष की पत्तियां जड़ों से बंधी हैं, लेकिन जड़ों को जानेंगी तो | | अत्यंत बुद्धिमत्तापूर्ण, लेकिन फिर भी मनुष्यों के। और बाइबिल में कैसे! और वृक्ष की पत्तियां अगर उस बीज को जानना चाहें, जिससे | | | भी वही बात है। कोई भी, एक भी वचन ऐसा नहीं है, जो मनुष्य न वृक्ष हुआ, तो उस बीज को कैसे जानेंगी! जिससे सब हुआ है, वह दे सके। कोई भी वचन मनुष्य दे सकता है। कोई भी वचन ऐसा नहीं