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________________ गीता दर्शन भाग-500 सोचने लगे हैं कि सभी सत्य हितकारी नहीं हैं। इसलिए किसी बात अपने आप में अर्थपूर्ण नहीं है—आनंद! का सत्य होना काफी नहीं है। __ कृष्ण कहते हैं, तेरे हित की कामना से, तेरे हित की इच्छा से और फ्रेड्रिक नीत्शे ने तो एक बहुत अनूठी बात कही है। उसने कहूंगा। यहां कोई सत्य को कहना ही मेरा प्रयोजन नहीं है। और न कहा है कि बहुत बार तो असत्य भी हितकारी होते हैं। अगर सभी | | ही सत्य को सिद्ध करना प्रयोजन है। तेरा हित, तेरा कल्याण, तेरा सत्य हितकारी नहीं होते, तो दूसरी बात भी सही हो सकती है कि | आनंद फलित हो सके, इस दृष्टि से कहूंगा। असत्य भी हितकारी हो सकते हैं। और नीत्शे ने यह भी कहा है कि __यहां धर्म और साधारण विचार में फासले पड़ जाते हैं। एक यह जो आज के मनुष्य के चित्त की इतनी विकृत दशा है, इसका | आदमी कहता है, ईश्वर है, क्या यह सत्य है? एक आदमी कहता एक मात्र कारण यह है कि हम बिना समझे-बुझे कि क्या हितकर | है, मुक्ति है, क्या यह सत्य है? सवाल यह नहीं है। सवाल यह है है और क्या अहितकर है. निपट सत्य की खोज में लगे हए हैं। सत्य कि जिन्होंने मुक्ति की बात कही, उनके चेहरों में देखें और उनकी अपने आप में मूल्यवान नहीं है। सत्य भी एक डिवाइस, एक उपाय | | आंखों में झांकें। और जिन्होंने ईश्वर को कहा कि है, उनके जीवन है। सत्य भी कहीं पहुंचने का साधन है। की सुगंध और उनके जीवन के प्रकाश को देखें। और जिन्होंने मनुष्य का परम मंगल, जिस सत्य से फलित हो, कृष्ण कहते | | कहा, ईश्वर नहीं है, उनके जीवन के आस-पास जो अंधेरा घिर हैं, वह मैं तुझसे कहूंगा, तेरे हित के लिए। गया है, उसे देखें। ___ अब यह बहुत सोचने जैसी बात है। हम आमतौर से सोचते हैं । ईश्वर का होना सत्य है या नहीं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। कि सत्य तो अपने आप में हितकारी है। और हममें से बहुत-से | | जो, ईश्वर है, इस आधार पर जीता है, उसके होने में एक.और तरह लोग सत्य का इस तरह उपयोग करते हैं, जिससे दूसरे को नुकसान की सुगंध है, एक और तरह के जगत का आविर्भाव हो जाता है; पहुंचे। इतना काफी नहीं है। मंगल ध्यान में रखना जरूरी है। और | पंख लग जाते हैं; वह किसी और आकाश में उड़ने लगता है। इसलिए कृष्ण उसी सत्य की बात करेंगे, जो अर्जुन के लिए यह सवाल नहीं है कि बुद्ध ने जो कहा है, वह सही है या मंगलकारी है, जो उसके जीवन को रूपांतरित करे। | गलत। बुद्ध का होना ही काफी प्रमाण है। यह भी सवाल नहीं है सत्य की भी अंतिम कसौटी आनंद ही होगी। इसे थोड़ा ठीक से | | कि नीत्शे ने जो कहा, वह सही है या गलत। नीत्शे का होना ही समझ लें। सत्य की एक कसौटी तो तर्क है, कि जो तर्क से सिद्ध काफी प्रमाण है। हो वह सत्य है। सत्य की परम कसौटी आनंद है, कि जिससे आनंद | नीत्शे ने बहुत तर्कयुक्त बातें कहीं, लेकिन जीवन का अंत फलित हो, वह सत्य है। पागलखाने में हुआ। नीत्शे ने बहुत तर्कयुक्त बातें कही हैं। संभवतः बुद्ध ने कहा है, जो पहुंचा दे परम स्थिति तक, वह सत्य है। मनुष्य-जाति के इतिहास में नीत्शे के मुकाबले दूसरा आदमी और हम दूसरी कसौटी नहीं जानते हैं। बद्ध ने कहा है, नाव हमखोजना कठिन है, जो इतना तर्कयक्त हो, और जिसने सत्य के उसे कहते हैं, जो उस पार पहुंचा दे। हम और दूसरी कसौटी नहीं | | संबंध में ऐसी तार्किक खोज की हो। लेकिन नीत्शे का अंत एक जानते। कई बार यह भी हो सकता है कि तर्क से जो सही मालूम | | पागलखाना है। और नीत्शे का पूरा जीवन दुख की एक लंबी कथा पड़ता है, वह इसी किनारे पर बांधकर रोक रखे। तर्क से जो सही | | है, जहां सिवाय उदासी के और पीड़ा के और संताप के कुछ भी मालूम पड़ता है, वह उस पार भी ले जा सकेगा या नहीं! और कई | नहीं है। नीत्शे का तर्क हम देखें या नीत्शे को देखें? बार यह भी हो सकता है कि इस पार के तर्क से जो गलत मालम | कष्ण ने जो कहा. वह तर्कयक्त है या नहीं. उसे हम देखें. या पड़ता है, वह भी उस पार ले जाने की नाव बन जाए। कृष्ण को और कृष्ण की बांसुरी को देखें ? नीत्शे को और कृष्ण को बुद्ध ने कहा है, सवाल यह नहीं है कि तुम क्या मानते हो। देखने चलें, तो ही पता चलेगा कि सत्य भी सप्रयोजन है। समस्त सवाल यह है कि तुम क्या हो जाते हो उसे मानकर। सवाल यह | | सिद्धांत सप्रयोजन हैं। उनसे मनुष्य का हित, उनसे मनुष्य का मंगल नहीं है कि तुम्हारा क्या है मार्ग। सवाल यह है कि तुम किस मंजिल सधता है या नहीं सधता है? पर पहुंचते हो उस मार्ग पर चलकर। मार्ग अपने आप में व्यर्थ | - तो कृष्ण ने कहा है कि मैं तेरे हित की दृष्टि से यह परम वचन है-मंजिल! तर्क अपने आप में व्यर्थ है-निष्पत्ति! और सत्य | कहूंगा।
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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