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________________ ॐ अज्ञेय जीवन-रहस्य 3 है, कोई ब्रिज नहीं है। तू अपने प्रश्न को भी भूल और अपने को | | गांव में सबसे ज्यादा बुद्धिमान था। कनफ्यूशियस ने पूछा कि उसे भी भूल। तू मुझसे जुड़ने की कोशिश कर। और ध्यान रख, जिस बुद्धिमान मानने का कारण क्या है ? तो उस ग्रामीण ने कहा, कारण दिन तू जुड़ जाएगा, उस दिन तुझे पूछना नहीं पड़ेगा कि सत्य क्या है कि वह अगर एक कदम भी उठाए, तो तीन बार सोचता है। है? मैं तुझसे कह दूंगा। | इसलिए गांव उसे बुद्धिमान कहता है। कनफ्यूशियस ने कहा कि मैं फिर अनेक वर्ष बीत गए। वह युवक रूपांतरित हो गया। उसके | | उसे बुद्धिमान न कहूंगा। क्योंकि जो एक ही बार सोचता है, वह जीवन में और ही जगत की सुगंध आ गई। कोई और ही फूल उसकी | कम बुद्धिमान है। और जो तीन बार सोचता है, वह दूसरी अति पर आत्मा में खिल गए। एक दिन महावीर ने उससे पूछा कि तूने सत्य | | चला गया। दो बार सोचना काफी है। मध्य में रुक जाना चाहिए। के संबंध में पूछना अनेक वर्षों से छोड़ दिया? उस युवक ने कहा, | बुद्धिमान आदमी को मध्य में रुक जाना चाहिए। लेकिन प्रेम पूछने की जरूरत न रही। जब मैं जुड़ गया, तो मैंने सुन लिया। तो में कोई मध्य नहीं होता, इसलिए तथाकथित बुद्धिमान आदमी प्रेम महावीर ने अपने और शिष्यों से कहा कि एक वक्त था, यह पूछता | | से वंचित रह जाते हैं। प्रेम में होती है अति। कनफ्यूशियस खुद था. और मैं न कह पाया। और अब एक ऐसा वक्त आया कि मैंने | भी प्रेम नहीं कर सकता। प्रेम में मध्य होता ही नहीं। या तो इस इससे कहा नहीं है और इसने सुन लिया! । पार, या उस पार। महावीर की परंपरा कहती है कि महावीर ने अपने गहनतम सत्य ___ तो कृष्ण कहते हैं, तेरा अतिशय प्रेम है मेरे प्रति, इसलिए तुझसे वाणी से उदघोषित नहीं किए, उन्होंने वाणी से नहीं कहे। जो सुन | कहूंगा। अतिशय, टु दि एक्सट्रीम, आखिरी सीमा तक, जहां अति सकते थे, उन्होंने सुने; महावीर ने कहे नहीं। हो जाती है। यह बहुत मजेदार बात है। इससे उलटी बात भी सही है, कि जो जब प्रेम अतिशय होता है, तो सोच-विचार बंद हो जाता है। नहीं सुन सकते हैं, उनसे महावीर कितना ही कहें, तो भी नहीं सुन और जहां सोच-विचार बंद होता है, वहीं आंतरिक संवाद हो सकते सकते। सुनना एक बहुत बड़ी कला है। हैं। जहां तक सोच-विचार जारी रहता है, वहां तक संदेह काम इसलिए कृष्ण कहते हैं कि तुझसे कहूंगा, क्योंकि तू अतिशय करता है, वहां तक डाउट काम करता है। प्रेम से भरा है। अतिशय प्रेम! साधारण प्रेम भी कृष्ण ने नहीं कहा। | अगर कृष्ण को परम वचन कहने हैं, तो ऐसी अवस्था चाहिए कहा, अतिशय प्रेम। इतने प्रेम से भरा है, जहां आदमी प्रेम में | अर्जुन की, जहां सोच-विचार बंद हो। जहां अर्जुन सुने तो जरूर, पागल हो जाता है। सोचे नहीं। जहां अर्जुन खुला तो हो, लेकिन उसके भीतर विचारों पागल होने से कम में वह घटना नहीं घटती, जिसे हम आंतरिक | की बदलियां न हों। जहां अर्जुन आतुर तो हो, लेकिन अपनी कोई संबंध कहें। अगर प्रेम भी बुद्धिमान हो, तो होता ही नहीं। अगर धारणाएं न हों। जहां अर्जुन के पास अपने कोई सिद्धांत न हों, प्रेम भी गणित की तरह हिसाब-किताब से हो, तो होता ही नहीं। अपनी कोई समझ न रह जाए। प्रेम तो जब होता है, तब अतिशय ही होता है। | शिष्य बनता ही कोई तभी है. जब उसे पता चलता है कि अपनी एक मजे की बात है, प्रेम में कोई मध्य स्थिति नहीं होती; अतियां | कोई समझ काम नहीं पड़ेगी। तभी समर्पण है, उसी अतिशय क्षण होती हैं, एक्सट्रीम्स होती हैं। या तो प्रेम होता ही नहीं; एक अति। | में समर्पण है। और या प्रेम होता है, तो बिलकुल पागल होता है; दूसरी अति। प्रेम कृष्ण कहते हैं, तेरे अतिशय प्रेम के कारण मैं तुझसे परम वचन में मध्य नहीं होता। इसलिए प्रेम में बुद्धिमान आदमी खोजने बहुत | कहूंगा। और एक बात कहते हैं कि तेरे हित के लिए। इसे थोड़ा मुश्किल हैं। कोई मध्य बिंदु नहीं होता। समझ लें। कनफ्यूशियस ने कहा है कि बुद्धिमान आदमी मैं उसको कहता | | ऐसे सत्य भी कहे जा सकते हैं, जिनसे किसी का हित न होता हूं, जो मध्य में ठहर जाए। कनफ्यूशियस एक गांव में गया। गांव हो। ऐसे सत्य भी कहे जा सकते हैं, जिनसे किसी का अहित होता के रास्ते पर ही था कि एक गांव के निवासी से मिलना हुआ। तो हो। ऐसे सत्य भी खोजे जा सकते हैं, जिनसे अकल्याण हो। विज्ञान कनफ्यूशियस ने पूछा कि तुम्हारे गांव में सबसे ज्यादा बुद्धिमान | ऐसे बहुत-से सत्यों को खोज रहा है, जिनसे अहित होगा, अहित आदमी कौन है? तो उस आदमी ने उस आदमी का नाम लिया, जो हो रहा है। अभी पश्चिम के अनेक विचारशील वैज्ञानिक यह
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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