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________________ ॐ गीता दर्शन भाग- 50 क्या कोई ऐसा सत्य भी है, जो समय की शर्त से बंधा हुआ नहीं। दो व्यक्तियों के बीच जितना गहरा हो संबंध, उतने ही गहरे सत्य है? कितना ही समय बदले और जीवन का कितना ही रूपांतरण हो । | संवादित किए जा सकते हैं। तो सत्य कह देना, सिर्फ कह देने वाले जाए, उस सत्य में कोई अंतर नहीं पड़ेगा। पर निर्भर नहीं है। सत्य कहना, सुनने वाले पर भी उतना ही निर्भर आपने रास्ते पर बैलगाड़ी को चलते हुए देखा है। चाक चलता है, जितना कहने वाले पर। है, चलता चला जाता है। प्रतिपल चलना ही उसका काम है। कृष्ण अर्जुन से ये सत्य कह सके, क्योंकि एक बहुत गहरी मैत्री लेकिन उस चाक के बीच में एक कील है, जो खड़ी रहती है, जो | और गहरे प्रेम का संबंध था। ठीक यही सत्य हर किसी से नहीं कहे चलती नहीं। मीलों चल जाए चाक, कील अपनी जगह ही बनी जा सकते। जब सत्य कहा जाता है, तो कहने वाला और सुनने रहती है। कील ठहरी हुई है। और मजा यह है कि ठहरी हुई कील वाला, दोनों एक ऐसी समरसता में होने चाहिए, जहां सत्य कहा जा के आधार पर ही चाक का घूमना होता है। अगर कील भी घूम जाए, सके, और सुना भी जा सके। प्रेम वैसा द्वार है, जहां से गहरी बातें तो चाक इसी वक्त गिर जाए और रुक जाए। चाक चलता है | की जा सकती हैं। इसलिए, क्योंकि कील ठहरी है। इस कील और चाक के बीच गहरा । सिर्फ पूरब ही इस राज को समझ पाया। पश्चिम में शिक्षक होते समझौता है। कील के ठहरे होने पर चाक की गति है। | | हैं, लेकिन गुरु केवल पूरब की उत्पत्ति है। गुरु मात्र शिक्षक नहीं जीवन तो पूरा ही बदलता रहता है चाक की तरह, इसलिए हमने | है। गुरु और शिक्षक में यही फर्क है। शिक्षक को प्रयोजन नहीं है उसे संसार कहा है। संसार का अर्थ होता है, दि व्हील; उसका अर्थ कि विद्यार्थी का कोई संबंध भी है उससे या नहीं। उसे जो कहना है, होता है, चाक, घूमता हुआ। चाक की तरह है संसार तो। लेकिन | वह कह देगा; वह एकतरफा है, वन वे ट्रैफिक है। . क्या कुछ कील भी है इस संसार में? शिक्षक स्कूल में पढ़ा रहा है, यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहा है। क्योंकि भारतीय मनीषा का ऐसा अनुभव है कि जहां भी परिवर्तन | विद्यार्थी सहानुभूति से सुन रहा है, श्रद्धा से सुन रहा है, सुन भी रहा हो, उसके आधार में कुछ जरूर होगा, जो अपरिवर्तित है। जहां है, नहीं सुन रहा है, ये बातें प्रयोजनीय नहीं हैं। शिक्षक जैसे दीवाल गति हो, वहां केंद्र में कुछ होगा, जो ठहरा हुआ है। जहां तूफान हो, | से बोल रहा हो। यह प्रोफेशनल, व्यावसायिक वक्तव्य है। दूसरे वहां बिंदु होगा बीच में कोई एक, जहां परम शांति है। क्योंकि | से कोई प्रयोजन नहीं है; शिक्षक को बोलने से प्रयोज़न है। उसे जो जीवन विपरीत के बिना असंभव है। जन्म होगा, तो मृत्यु होगी। कहना है, वह कह देगा। गति होगी, तो कोई ठहरा हुआ होगा। चाक होगा, तो कील होगी। गुरु और शिक्षक में यही अंतर है। गुरु जो कहना है, वह तभी विपरीत अनिवार्य है। दिखाई पड़े, न दिखाई पड़े; समझ में कह सकेगा, जब सुनने वाला तैयार हो। जब सुनने वाला खुला हो, आए, न समझ में आए; विपरीत अनिवार्य है। विपरीत के बिना | उन्मुक्त हो, उसके हृदय के द्वार बंद न हों। और जब सुनने वाला जीवन के खेल का कोई उपाय नहीं है। सिर्फ सुनने वाला ही न हो, बल्कि अपने को रूपांतरित करने की परम वचन का अर्थ है, जब सारे सत्य बदल जाते हैं, सारे दर्शन आकांक्षा से भी, अभीप्सा से भी भरा हो। और जब कि सुनने वाला और धर्म बदल जाते हैं, सिद्धांत बदल जाते हैं, चिंतन की धाराएं | केवल सत्य की खोज में ही न आया हो, बल्कि उस व्यक्ति के प्रेम बदल जाती हैं, तब भी जो ठहरा ही रहता है, जिसमें कोई अंतर नहीं | का आकर्षण भी उसे खींचा हो। पड़ता। ऐसे कुछ वचन कृष्ण अर्जुन से कहना चाहते हैं। ध्यान रहे कि जहां प्रेम नहीं है, जहां एक आंतरिक संबंध, एक एक और कीमती बात इस सूत्र में उन्होंने कही है। और वह | | इंटिमेसी नहीं है, वहां सत्य नहीं कहे जा सकते। कहा है कि तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए, तेरे हित की| | महावीर के पास एक युवक आया है। और वह जानना चाहता इच्छा से कहूंगा। है कि सत्य क्या है। तो महावीर कहते हैं कि कुछ दिन मेरे पास रह। एक तो परम सत्य केवल उनसे ही कहे जा सकते हैं, जो और इसके पहले कि मैं तुझे कहूं, तेरा मुझसे जुड़ जाना जरूरी है। अतिशय प्रेम से भरे हों। एक सिम्पैथी, एक गहरी सहानुभूति | एक वर्ष बीत गया है और उस युवक ने फिर पुनः पूछा है कि चाहिए। क्षुद्रं बातें कहने के लिए सहानुभूति की कोई भी जरूरत | | वह सत्य आप कब कहेंगे? महावीर ने कहा कि मैं उसे कहने की नहीं है। जितनी गहरी कहनी हो बात, उतना गहरा संबंध चाहिए। निरंतर चेष्टा कर रहा हूं, लेकिन मेरे और तेरे बीच कोई सेतु नहीं
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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