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________________ गीता दर्शन भाग-583 है, जो कि मानने को मजबूर करे कि वह ईश्वरीय है। क्षमता नहीं है, वह हमारी सीमा के बाहर छूट जाता है। __ अत्यंत बुद्धिमान लोगों के वचन होंगे, श्रेष्ठतम प्रतिभाओं के सूफियों के ग्रंथ हैं। एक-एक ग्रंथ के सात-सात अर्थ हैं। और वचन होंगे, लेकिन ईश्वरीय होने का कोई कारण नहीं मालूम सूफी फकीर जब किसी साधक को साधना में प्रवेश करवाता है, तो पड़ता। इसलिए जो इनके विपरीत बातें करते हैं, वे सरलता से बातें किताब को पढ़वाता है। एक किताब है सूफियों की, किताबों की कर सकते हैं। लेकिन ईश्वरीय मानने का कारण दूसरा है, वह इस | किताब उसका नाम है, दि बुक आफ दि बुक। छोटी-सी है; वह सूत्र में है। साधक को पढ़ाई जाएगी। और उससे कहा जाएगा, इसका अर्थ तू इस जगत के मौलिक आधार के संबंध में जो भी वक्तव्य है, वह | लिख डाल। जो भी अर्थ तुझे सूझता हो, वह लिख। . वक्तव्य इस जगत के मूल से ही आ सकता है, किसी दूसरे के द्वारा __फिर छः महीने साधना चलेगी। और छः महीने के बाद वही नहीं दिया जा सकता। और अगर दूसरा उस वक्तव्य को देगा, तो किताब, वही छोटी-सी किताब फिर पढ़ाई जाएगी। और साधक से वह वक्तव्य मिथ्या होगा, फाल्स होगा। कहा जाएगा, इसके अर्थ अब तू जो भी चाहे लिख। उसे पहले अर्थ यह जगत ही अपने संबंध में अपना वक्तव्य है। ईश्वर ही कहे | नहीं दिखाए जाएंगे। लेकिन इन छः महीनों में उसने यात्रा की है, अगर. तो ही सार्थक है बात। सागर ही अगर कहे कि मैं ऐसा हं. वह ध्यान की किसी अवस्था को पार हुआ है, वह दूसरे अर्थ तो ठीक है। कितनी ही बड़ी लहर सागर के संबंध में कुछ भी कहे, | लिखेगा। और ऐसा सात बार किया जाएगा। ध्यान की सात वह वक्तव्य अधूरा होगा, और लहर का ही होगा। सीढ़ियां पार कराई जाएंगी, और यह किताब सात बार पढ़ाई यह वेद, बाइबिल या कुरान का जो आग्रह है कि ये वचन | जाएगी, और सात बार अर्थ लिखवाए जाएंगे। ईश्वरीय हैं, इनका क्या कारण है? इनका कारण यह है कि इन | ___ जब सातों अर्थ पूरे हो जाएंगे, तो उस साधक को वे सातों अर्थ वचनों को मानकर जो भी यात्रा करता है, एक दिन उसका लहर दिए जाएंगे, और उससे कह जाएगा, क्या तू भरोसा कर सकता है होना मिट जाता है और सागर होना हो जाता है। इन वचनों को | कि ये सातों तेरे ही अर्थ हैं? आज लौटकर वह खुद भी भरोसा नहीं मानकर जो भी यात्रा पर निकलता है, वह खुद भी एक दिन मिट कर सकता कि ये उसके ही अर्थ हैं। और उसी एक ही आदमी ने जाता है और ईश्वर ही शेष रह जाता है। एक ही किताब से ये सात अर्थ निकाल लिए! जिन लोगों ने इन्हें ईश्वरीय कहा, उनके कहने का प्रयोजन इतना हम जो भी अर्थ निकालते हैं, वह निकालते कम हैं, डालते ही है कि इन वचनों को मानकर अगर कोई चले, तो अंततः मनुष्य ज्यादा हैं। जब भी हम वेद पढ़ते हैं, तो हम वेद नहीं पढ़ते, वेद के और मनुष्यता की सीमा के पार चला जाता है। और जिस क्षण इन द्वारा अपने को पढ़ते हैं। तो जो हम होते हैं, वह अर्थ निकलता है। वचनों की अंतिम घड़ी उपलब्ध होती है, उस क्षण व्यक्ति स्वयं भी जब हम बदल जाते हैं तब वेद पढ़ते हैं, तब जो अर्थ होता है, वह मौजूद नहीं रहता, बूंद खो जाती है, सागर ही शेष रह जाता है। तो दूसरा होता है। और जब हम स्वयं उस जगह पहुंच जाते हैं, जहां जिन वक्तव्यों को मानकर अंततः बूंद मिट जाती हो और सागर ही व्यक्ति का अहंकार खो जाता है और परमात्मा ही शेष रह जाता है, बचता हो, वे वक्तव्य बूंद के नहीं हो सकते। वे वक्तव्य सागर के तब जो अर्थ निकलता है, वह दूसरा ही अर्थ होता है। ही होंगे। क्योंकि बूंद तो जान ही कैसे सकती है! जिन्होंने ये सात सीढ़ियां पूरी की हैं ध्यान की, उन्होंने जाना है लेकिन हमारी तकलीफ है। हम अगर कुरान या बाइबिल या वेद | कि यह वक्तव्य कुरान में जो है, मोहम्मद का नहीं है। उन्होंने जाना को पढ़ते हैं, तो हम जैसे हैं, वैसे ही पढ़ना शुरू करते हैं, बिना कि ये जो वेद में वक्तव्य हैं, ये ऋषियों के नहीं हैं। उन्होंने जाना कि किसी यात्रा पर गए। हम अपनी आरामकुर्सी पर बैठकर वेद पढ़ | ये जो बाइबिल में वक्तव्य हैं, ये मनुष्य से इनका कोई संबंध नहीं सकते हैं। बिना किसी रूपांतरण में गए, बिना जीवन को बदले, | है। ये मनुष्य के पार से आए हुए हैं। मनुष्य के पार से लेकिन तभी बिना किसी अल्केमी से गुजरे, बिना अपने अनगढ़ पत्थर को हीरा | कोई चीज आती है. जब मनष्य मिटने को और दरवाजा बनने को बनाए, हम जैसे हैं, वैसे ही वेद को पढ़ें, कुरान को पढ़ें, बाइबिल राजी हो जाता है। को पढ़ें-वे वक्तव्य हमें मनुष्य के ही वक्तव्य मालूम पड़ेंगे। ___ तो कृष्ण कहते हैं, न मुझे ऋषि जानते हैं, न मुझे देवता जानते क्योंकि हम वही पढ़ सकते हैं, जो हमारी क्षमता है। जो हमारी | हैं, क्योंकि मैं उनका भी आदि कारण हूं, मैं उनसे भी पहले हूं। और
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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