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________________ ॐ साधना के चार चरण कि मैं धार्मिक हूं, इसकी ज्यादा चिंता है। क्यों? वह मंदिर से भी | आप जीते ही हैं शब्दों से, खबर से, प्रचार से। तो आदमी, अहंकार ही भर रहा है। उससे भी मैं कुछ हूं-मैं पापी नहीं हूं, धार्मिक आदमी भी अगर प्रचार करके ही जी रहा हो, कि कितना पुण्यात्मा हूं; अधार्मिक नहीं हूं, धार्मिक हूं-यह मजा मैं इकट्ठा रस मिल रहा है उसको तपश्चर्या से-तपश्चर्या से नहीं, तपश्चर्या कर रहा है। | की खबर से; लोगों की आंखों में कितनी प्रशंसा मिल रही है तो आदमी उपवास करता है, तो चुपचाप नहीं करता। करना चाहिए | अहंकार ही भर रहा है। चुपचाप। क्योंकि किसी को बताने की क्या जरूरत कि आपने | हम सब तरह से अपने अहंकार को भरते हैं। बुरे अहंकार भी उपवास किया है ? लेकिन ढोल-मंजीरा पीटकर खबर करनी पड़ती | | हैं। अगर आप जेलखाने में जाएं, तो वहां भी जो बड़ा हत्यारा है, है कि उपवास पर हो गए हैं। फिर उपवास पूरा हो, तो जुलूस उसकी ज्यादा इज्जत होती है कैदियों में। जो दस-पांच दफा जेल में निकालना पड़ता है कि उपवास पूरा हो गया है! कि दस दिन | आ चुका है, उसकी ज्यादा प्रतिष्ठा होती है। वह नेता है। जो उपवास किया, कि अठारह दिन उपवास किया। नया-नया आया है, उसको लोग कहते हैं, अभी सिक्खड़ है। क्या, उपवास का शोरगल करने की क्या जरूरत है? यह तो आपकी | किया क्या था? वह कहता है, जेब काट ली थी। वे कहते हैं, चुप निजी बात थी। आपके और परमात्मा के बीच इसकी खबर काफी | भी रह। इसका भी कोई मतलब है! कोई मूल्य है! अभी सीख। थी। और उसको खबर मिल जाएगी। आपके बैंड-बाजे की कोई ___ मैंने सुना है कि एक जेलखाने में ऐसा हुआ। एक कोठरी में एक भी जरूरत नहीं है। आदमी पहले से था। फिर दूसरा आदमी भी जेलखाने में आया और कबीर ने कहा है, वह तुम्हारा परमात्मा क्या बहरा है जो तुम | | उसको भी उसी कोठरी में डाला गया। तो उस दूसरे आदमी ने पूछा, इतना शोरगुल मचा रहे हो? | कितने दिन की सजा हुई है? तो उसने कहा, चालीस साल की। ' लेकिन परमात्मा से किसी को प्रयोजन भी नहीं। और उसका | | उसने कहा, सिर्फ चालीस साल की! तो दरवाजे के किनारे अपना पक्का पता भी नहीं कि वह है भी या नहीं। और यह भी पक्का नहीं बिस्तर लगा। मुझे सत्तर साल की हुई है। तुझे पहले निकलना कि आपके उपवास से प्रसन्न हो रहा है कि दुखी हो रहा है, यह कुछ पड़ेगा। दरवाजे के पास ही अपना बिस्तर रख। सिर्फ चालीस साल पता नहीं है। आपके उपवास की उसको खबर भी हो रही है, यह | की ही सजा हुई है, तो दरवाजे के पास ही टिक! तुझे पहले निकलने भी पता नहीं है। लेकिन लोगों को तो कम से कम खबर हो जाए! | का मौका आएगा। उसको सत्तर साल की हुई है! सत्तर साल का वह जो अठारह दिन आदमी उपवास में तड़पता रहा है, ये लोग मजा और है। वह भीतर जमकर बैठा है। उसका जुलूस निकालें, इसमें उसका रस है। आदमी पाप में भी अहंकार को भरता है, छोटे-बड़े पापी होते आदमी जरा-सा तप करे. साधना करे. तो उत्सकता होती है कि हैं। आदमी पण्य में भी अहंकार को भरता है. छोटे-बड़े पण्यात्मा दूसरों को खबर हो जाए। हम छोटे बच्चों की तरह हैं। अनुभव से | होते हैं। अगर आप साधु-महात्माओं के पास जाएं, तो भी इस पर हमें संबंध नहीं है, खबर से संबंध है। और यह सारा हमारा जगत | निर्भर करता है कि वे आपसे कहेंगे, आइए बैठिए या कुछ भी न खबर से जी रहा है। कहेंगे, इस पर निर्भर करता है कि आपकी कितनी प्रतिष्ठा उनकी आप मानते हैं, फलां आदमी बहुत बड़ा महात्मा है। मानने का | | आंखों में है। दान किया हो, उपवास किया हो, तप किया हो, इस कारण? क्योंकि वह आदमी ठीक से आपको खबर पहुंचा सका है। | पर निर्भर करेगा। कोई छिपा हो, न हो उसका पता, तो आपको पता चलने वाला नहीं | | मैं एक महात्मा का प्रवचन सुन रहा था। मैं बहुत हैरान हुआ। है। आपके सामने अगर कृष्ण भी आकर खड़े हो जाएं और पहले वे कुछ कहते, दो वचन मुश्किल से बोलते, फिर पूछते, सेठ से ठीक से आपको खबर न की गई हो, तो आप पहचानने वाले | कालीदास, समझ में आया? बहुत लोग बैठे थे। कौन सेठ नहीं हैं। या हो सकता है आप समझें कि कोई नाटक का पात्र आ | | कालीदास है ? सेठ कालीदास एक बिलकुल बुद्ध की शक्ल के एक गया है। यह क्या कलगी, बांसुरी वगैरह लिए आदमी चला आ रहा | | आदमी सामने बैठे हुए थे। वे सिर हिलाते कि जी महाराज! फिर वे है! या हो सकता है कि पुलिस को खबर करें कि यहां एक गड़बड़ | पूछते, सेठ माणिकलाल, समझ में आया? फिर एक दूसरे सेठ वहीं आदमी दिखाई पड़ रहा है, इसको पकड़कर ले जाएं। | सामने पगड़ी बांधे बैठे थे। वे भी सिर हिलाते कि समझ में आया। 349
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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