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________________ 88 गीता दर्शन भाग-500 हम अ है, मल्टीसाइकिक, बहुत मन हैं आदमी के पास; एक मन नहीं है। | कि मैं नहीं है, इसका भी पता नहीं चलता। क्योंकि इसका भी पता यह पहली अवस्था है, भीड़। इस आदमी का कोई भरोसा नहीं | चलना थोड़े-से मैं का पता चलना है। मैं नहीं हूं, तो भी लगता तो है है। इसका भरोसा करने का कोई सवाल नहीं है। इससे वचन भी | कि मैं हूं। कौन कह रहा है कि मैं नहीं हूं? किसको पता चल रहा है लेने का कोई मतलब नहीं है। इसके वचन की कोई पूर्ति नहीं होने | कि मैं नहीं हूं? यह कौन है, जो बोलता है कि मैं नहीं हूं? यह है। वाली है। | तो गुरजिएफ कहता है, चौथी अवस्था इसका भी विसर्जन है। दूसरी अवस्था गुरजिएफ ने कही है, एक मैं। यह सारी भीड़ को ___ पहले एक भीड़ है मैं की, एक क्राउड; फिर एक मैं का जन्म है; नष्ट करके जो व्यक्ति अपने भीतर एक स्वर पैदा कर लेता है; | | फिर एक मैं का त्याग है, न-मैं का जन्म है; फिर न-मैं का भी जिसके वचन का अर्थ है; जो कुछ कहेगा, तो पूरा करेगा; जो विसर्जन है। इस शून्य अवस्था में जो आदमी खड़ा होगा, वह टिकेगा, अपनी बात पर, अपने व्रत पर। उसके भीतर एक मैं है। | परमात्मा को पूरा का पूरा स्वीकार करता है। इसके पहले परमात्मा सुबह हो कि सांझ, फर्क नहीं पड़ेगा। उसने प्रेम किया है तो प्रेम ही | | को पूरा स्वीकार नहीं किया जा सकता। हम उसमें भी चुनाव करेंगे। करेगा, फिर घृणा नहीं कर सकेगा। अभी डर है मिटने का। अभी मैं हूं, तो मुझे भय है। यही आपके प्रेम का कोई भरोसा नहीं है। अभी प्रेम है, क्षणभर में | तकलीफ अर्जुन की है, यही तकलीफ सभी साधकों की है। घृणा हो जाए। फिर घृणा प्रेम हो जाए। अभी क्रोध है, फिर शांति हो जाए। फिर क्रोध हो जाए। अभी पछता रहे थे, और अभी फिर हत्या करने को राजी हो जाएं। आपकी बात का कोई भी भरोसा नहीं एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि आपने समझाया कि है। आपको दोष देने का भी कोई कारण नहीं है। आपके भीतर एक परमात्मा के विराट स्वरूप के साक्षात्कार के लिए आदमी नहीं, कई आदमी हैं। जैसे एक मकान के कई मालिक हों मनुष्य की इंद्रियां सक्षम नहीं हैं। अपरिपक्व साधक और किसी की बात का कोई भरोसा न हो। कैसे हो सकता है? यदि किसी प्रकार विराट स्वरूप की झलक पा ले, तो गुरजिएफ कहता है, दूसरी स्थिति है एक मैं की, यूनिटरी आई। पागल भी हो सकता है। तो समझाएं कि एक स्वर रह जाए। साधना आपकी भीड़ को काटती है और एक परमात्म-ऊर्जा की झलक या साक्षात तक पहुंचने के का निर्माण करती है। लेकिन वह दूसरी अवस्था है। तीसरी अवस्था | लिए साधक क्या तैयारी करे? गुरजिएफ कहता है, न-मैं की, नो-आई। जब कि मैं न रह जाए। अनुभव होने लगे कि मैं नहीं हूं। यह तीसरी अवस्था है। दूसरी अवस्था वाले आदमी को ही तीसरी मिल सकती है। 1 रने की तैयारी करे, मिटने की तैयारी करे, न होने की जिसके पास पक्का है कि मैं हूं, वही हिम्मत कर सकता है मैं को 1 तैयारी करे। नहीं हूं, ऐसा जीने लगे। कर सकते हैं। खोने की। जो आपके पास नहीं है, उसको खोइएगा कैसे? जो गहन से गहन साधना वही है। आपके पास है. उसे आप छोड़ सकते हैं। जो आपके पास है ही | मगर हम तो सभी तरफ से मैं को मजबूत करने की साधना करते नहीं, उसे छोड़िएगा कैसे? आपके पास अभी मैं भी नहीं है, हैं। अगर आप मंदिर भी जा रहे हैं, तो आप देखते हैं कि लोग देख अहंकार भी नहीं है पूरा, मजबूत, एक, जिसको आप त्याग कर दें। | रहे हैं कि नहीं, कि मैं मंदिर जा रहा हूं। मंदिर में भी हाथ जोड़कर और त्याग कौन करेगा? एक त्याग करेगा, दूसरा पकड़े रहेगा, फिर | प्रार्थना करते हैं, तो भगवान की तरफ ध्यान कम रहता है। खयाल आप क्या करिएगा! आप एक भीड़ हैं। | रहता है कि आस-पास के लोग ठीक से देख रहे हैं? कोई गुरजिएफ कहता है, जिसको दूसरी अवस्था प्राप्त हो जाए, एक फोटोग्राफर आया कि नहीं? कोई अखबार खबर छापेगा कि नहीं मैं की, वह फिर तीसरी अवस्था में भी छलांग लगा सकता है। वह कि आज मैं प्रार्थना कर रहा था, लीन हो गया था? कहता है, छोड़ता हूं इसे! तब वह न-मैं, मैं नहीं हूं, इस भाव को मन में लगा है, कोई देख ले कि मैं प्रार्थना कर रहा हूं। कोई जान उपलब्ध होता है। | ले कि मैं प्रार्थना करने वाला हूं। कि मैं रोज मंदिर जाता हूं, कि मैं और गुरजिएफ कहता है, इस तीसरे के पार चौथी अवस्था है, जब धार्मिक हूं। धार्मिक होने की उतनी चिंता नहीं है। लोगों को पता हो 348
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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