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________________ पूरब और पश्चिम ः नियति और पुरुषार्थ : कर रहा हूं। मुसीबत में पड़ा । मुसीबत में पड़ा । ऐसा मैंने सुना कि अभी निक्सन के इलेक्शन में हुआ अमेरिका में। निक्सन के चुनाव में एक अभिनेता हालीवुड का, निक्सन का प्रचार करने गया। एक मंच पर खड़े होकर व्याख्यान दे रहा है। अभिनेता का व्याख्यान | वह तैयार करके लाया था। जैसा फिल्म में देता है, वैसा सब तैयार था। सब - हाथ कब हिलाना, सिर कब हिलाना — सब तैयार था। जोश से भाषण दे रहा था । तभी एक आदमी, जो निक्सन के खिलाफ है, बीच में खड़े होकर गड़बड़ करने लगा। इस अभिनेता को भी जोश आ गया। इसने कहा, क्या गड़बड़ करते हो ! अगर हो ताकत, तो आ जाओ। दोनों कूद पड़े। कुश्तमकुश्ती हो गई । उस आदमी ने दो-चार हाथ जोर से जड़ दिए। अभिनेता ने कहा, अरे! यह क्या? तुमको अभिनय नहीं करना आता! इस तरह कहीं मारा जाता है ! वह असली हाथ मारने लगा। यह बेचारा अभिनेता था। यह भूल ही गया कि यह सभा असली है और यहां मार-पीट असली हो जाएगी। वह समझा कि कोई फिल्म का दृश्य है, और यह सब हो रहा है। ठीक है । आदमी के भूलने की संभावना है। हम भी, जो असली नहीं हैं, उसे असली मान लेते हैं। जो असली है, उसे नकली मान लेते हैं। तब जीवन में बड़ी असुविधा हो जाती है। तब जीवन में बड़ी उलझन हो जाती है। कृष्ण का सूत्र ही यही है अर्जुन को कि तू बीच में मत आ। जो हो रहा है, उसे हो जाने दे; तू बाधा मत डाल। और तू निर्णय मत ले कि मैं क्या करूं। तुझसे कोई पूछ ही नहीं रहा है कि तू क्या करे। तू निमित्त मात्र है। अगर तू पूरा नहीं करेगा, तो कोई और पूरा करेगा। एक बहुत अदभुत घटना मुझे याद आती है। बंगाल में एक बहुत अनूठे संन्यासी हुए, युक्तेश्वर गिरि । वे योगानंद के गुरु थे। योगानंद ने पश्चिम में फिर बहुत ख्याति पाई। गिरि अदभुत आदमी थे। ऐसा हुआ एक दिन कि गिरि का एक शिष्य गांव में गया। किसी शैतान आदमी ने उसको परेशान किया, पत्थर मारा, मार-पीट भी कर दी। वह यह सोचकर कि मैं संन्यासी हूं, क्या उत्तर देना, चुपचाप वापस लौट आया। और फिर उसने सोचा कि जो होने वाला है, वह हुआ होगा, मैं क्यों अकारण बीच में आऊं। तो वह अपने को सम्हाल लिया। सिर पर चोट आ गई थी। खून भी थोड़ा निकल आया था। खरोंच भी लग गई थी। लेकिन यह मानकर कि जो होना है, होगा । जो होना था, वह हो गया है। वह भूल ही गया। ही जब वह वापस लौटा आश्रम कहीं से भिक्षा मांगकर, तो वह भूल चुका था कि रास्ते में क्या हुआ । गिरि ने देखा कि उसके चेहरे पर | चोट है, तो उन्होंने पूछा, यह चोट कहां लगी? तो वह एकदम से खयाल ही नहीं आया उसे कि क्या हुआ। फिर उसे खयाल आया। उसने कहा कि आपने अच्छी याद दिलाई। रास्ते में एक आदमी ने मुझे मारा । तो गिरि ने पूछा, लेकिन तू भूल गया इतनी जल्दी! तो उसने कहा कि मैंने सोचा कि जो होना था, वह हो गया। और जो होना ही था, वह हो गया, अब उसको याद भी क्या रखना ! अतीत भी निश्चितता से भर जाता है, भविष्य भी । लेकिन एक और बड़ी बात इस घटना में है आगे । .. गिरि ने उसको कहा, लेकिन तूने अपने को रोका तो नहीं था ? जब वह तुझे मार रहा था, तूने क्या किया? तो उसने कहा कि एक क्षण तो मुझे खयाल आया था कि एक मैं भी लगा दूं। फिर मैंने अपने को रोका कि जो हो रहा है, होने दो। तो गिरि ने कहा कि फिर तूने ठीक नहीं किया। फिर तूने थोड़ा रोका। जो हो रहा था, वह पूरा | नहीं होने दिया । तूने थोड़ी बाधा डाली। उस आदमी के कर्म में तूने | बाधा डाली, गिरि ने कहा । उसने कहा, मैंने बाधा डाली! मैंने उसको मारा नहीं, और तो मैंने कुछ किया नहीं। क्या आप कहते हैं, मुझे मारना था। गिरि ने कहा, मैं यह कुछ नहीं कहता। मैं यह कहता हूं, जो होना था, वह होने | देना था। और तू वापस जा, क्योंकि तू तो निमित्त था। कोई और उसको मार रहा होगा। 337 और बड़े मजे की बात है कि वह संन्यासी वापस गया। वह आदमी बाजार में पिट रहा था। लौटकर वह गिरि के पैरों में पड़ गया। और उसने कहा कि यह क्या मामला है? गिरि ने कहा कि जो तू नहीं कर पाया, वह कोई और कर रहा है। तू क्या सोचता है, तेरे बिना नाटक बंद हो जाएगा ! तू निमित्त था। बड़ी अजीब बात है यह। और सामान्य नीति के नियमों के बड़े पार चली जाती है। कृष्ण अर्जुन को यही समझा रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि जो होता है, तू होने दे। तू मत कह कि ऐसा करूं, वैसा करूं, संन्यासी हो जाऊं, छोड़ जाऊं । कृष्ण उसको रोक नहीं रहे हैं संन्यास लेने से। क्योंकि अगर संन्यास होना ही होगा, तो कोई नहीं रोक सकता, वह हो जाएगा। इस बात को ठीक से समझ लें। अगर संन्यास ही घटित होने को हो अर्जुन के लिए, तो कृष्ण
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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