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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-588 यह घबड़ा जाएगा कि यह मामला क्या है! तुम्हारे ही मुंह में! हम | | के निकट पहुंचते हैं और ईश्वर-अनुभूति को उपलब्ध होते हैं, तो सोचते थे, तुम बीच की डंडी हो, जिसके सहारे बचेंगे। तुम्हारे । | उनकी यही दुविधा है। मुंह में ही मौत घट रही है! तो जिन्हें अपना समझा था, जिनके सहारे | सुना है मैंने, मुसलमान फकीर जुनैद एक रात प्रार्थना किया कि सोचते थे, मौत से लड़ लेंगे, और जिनके सहारे सदा सोचा था कि हे प्रभु, मैं जानना चाहता हूं कि इस मेरे गांव में सबसे पवित्र आदमी कोई भय नहीं है, बचाने वाला है, उसके ही मुंह में मौत घट रही कौन है, सबसे ज्यादा पुण्यात्मा, ताकि मैं उसके चरणों में सिर रखू, है। रक्षक जिसे समझा था, वह भक्षक दिखाई पड़ गया हो, तो हम | | उसका आशीर्वाद पाऊं। रात उसने स्वप्न देखा। बहुत घबड़ा गया। सोच सकते हैं कि अर्जुन की घबड़ाहट कैसी रही होगी। नींद टूट गई उसकी। स्वप्न में उसे दिखाई पड़ा कि परमात्मा कहता वह घबड़ाहट स्वाभाविक है। लेकिन स्वाभाविक इसलिए है कि है, वह जो तेरे पड़ोस में रहता है आदमी, वही सबसे ज्यादा पवित्र हमने परमात्मा का जो रूप बनाया है, वह अपनी मनोनुकूल | और पुण्यात्मा है! आकांक्षा से बनाया है। वह परमात्मा का रूप नहीं, हमारी वह एक बिलकुल साधारण आदमी था। जुनैद ने कभी उस पर वासनाओं का रूप है। नजर भी नहीं डाली थी। पांव छूना तो दूर, वह इसके पांव छूता मृत्यु भी परमात्मा में ही घटित होती है और जीवन भी उसमें ही था। वह जो बगल में रहता था, वह इसके पांव छूता था। जब भी घटित होता है। वही मां भी है, वही मृत्यु भी। इसलिए काली की यह निकलता था, तो इसको नमस्कार करता था। इसको वह प्रतिमा बड़ी सार्थक है। उससे ही सब निकलता है और उसमें ही महात्मा मानता था। वह तो बहुत जुन्नैद मुश्किल में पड़ गया कि सब लीन होता है। सागर में सारी नदियां गिरती हैं और सारी नदियां | इसके मैं पांव छुऊ! और यह भी क्या मजाक रही! हमने पूछा, सागर से ही पैदा होती हैं। सारी नदियां सागर से पैदा होती हैं। फिर पवित्रतम आदमी? इससे तो हम ही ज्यादा पवित्र हैं। यह खुद चढ़ती हैं नदियां धूप की किरणों के सहारे बादलों में, फिर बादलों हमारे पैर छूता है! के सहारे पहाड़ों पर, फिर गंगोत्रियों में गिरती हैं और फिर सागर | अक्सर जिनके लोग पैर छूते हैं, वे सोचते हैं कि हम ज्यादा की तरफ दौड़ती हैं। पवित्र हैं, क्योंकि लोग हमारे पैर छूते हैं। और हो यह सकता है कि जो नदी सागर में अपने को गिरते देखती होगी, वह घबड़ा जाती | जो पैर छूता है, वह ज्यादा पवित्र भी हो सकता है। क्योंकि पैर छूना होगी। मिट रही है, मौत है सागर। लेकिन उसे पता नहीं कि यह | भी एक गहरी पवित्रता है। वह भी एक बड़े निष्कलुष हृदय का सागर मौत भी है, गर्भ भी। क्योंकि कल फिर उठेगी ताजी होकर, | लक्षण है। नई होकर, युवा होकर। बूढ़ी हो गई, बासी हो गई, जमीन ने गंदी | । पर जब आदेश हो गया परमात्मा का, तो मुसीबत हो या कुछ कर दी। सब गंदगी सागर छांट देगा। फिर ताजा, फिर शुद्ध, फिर भी हो। जुनैद उठा। अपने को सम्हाला। संयम से साधा। निकला वाष्पीभूत होगी। फिर गंगोत्री, फिर यात्रा शुरू होगी। यह वर्तुल है। घर के बाहर कि पैर तो छूने ही पड़ेंगे, अब आदेश परमात्मा का सागर नदी की मृत्यु भी है, जन्म भी। परमात्मा सृष्टि भी है, हुआ है। देखा कि कोई नहीं है, अकेला बैठा है वह आदमी। जल्दी प्रलय भी वहां होना भी है और न होना भी। जाकर उसने पैर छू लिए, कि कोई देख न ले गांव में कि इसके तू इससे अर्जुन भयभीत हो गया है। और वह कहता है, वापस | पैर छू रहा है जुन्नैद! पूरा गांव उसको महात्मा मानता था। लौटा लो; इस रूप को मत दिखाओ। यह रूप प्रीतिकर नहीं है। __उस आदमी ने कहा कि मेरे पैर छू रहे हैं! कुछ भूल-चूक हो इससे मुझे जरा भी सुख नहीं मिलता है। फिर भी वह कहे चला जा | | गई। कुछ मुझसे नाराज हैं? ऐसा मैंने क्या पाप किया, उस आदमी रहा है, भगवान, परमेश्वर, महादेव, देवों के देव! ने कहा, कि आप और मेरे पैर छुएं! नहीं-नहीं, वापस ले लें। थोड़ा हम उसका द्वंद्व, उसकी दुविधा समझें। वह अनुभव तो आपका दिमाग तो खराब नहीं हो गया, उस आदमी ने कहा, जुनैद, कर रहा है कि यह भी परमात्मा का ही रूप है, लेकिन मन मानना | | तुम जैसा साधु पुरुष मुझ जैसे असाधु के पैर छुए! जुनैद कुछ बोला नहीं चाहता कि यह भी रूप है। वह कहता है, हटा लो, प्रसन्न हो | नहीं। उसने कहा, बताना ठीक भी नहीं कि मामला क्या है। क्योंकि जाओ। यह रूप नहीं देखा जाता है। झंझट में पड़ गए परमात्मा से पूछकर। एक दफे छू लिया, बात यह अर्जुन की ही दुविधा नहीं है, जो व्यक्ति भी परम अनुभव | खत्म हो गई।
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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