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ॐ अचुनाव अतिक्रमण है -
और हे विश्वमूर्ते! जैसे नदियों के बहुत-से जल के प्रवाह समुद्र पड़ता कि मृत्यु कहीं और घटित हो रही है, परमात्मा के मुंह में नहीं, के ही सम्मुख दौड़ते हैं और समुद्र में प्रवेश करते हैं, वैसे ही वे तो इतना भयभीत न होता। कम से कम परमात्मा से सहारा मिल शूरवीर मनुष्यों के समुदाय भी आपके प्रज्वलित हुए मुखों में प्रवेश सकता था, मृत्यु के विपरीत भी। अगर मृत्यु कहीं और घट रही थी, कर रहे हैं।
अगर कोई शैतान, कोई यमदूत मृत्यु को ला रहा था, तो परमात्मा वह कहता है कि आपके दांतों में दबे हैं। और न केवल दबे हैं, | बचाने वाला हो सकता था। अब तो बचने का भी कोई उपाय नहीं उनके सिर चूर्ण हो गए हैं। जैसे आपने उनका भोजन कर लिया हो | | है। क्योंकि यह परमात्मा का ही मुंह है, जहां मृत्यु घटित हो रही है।
और वे आपकी दाढ़ों में चिपककर रह गए हैं। और वे | इससे भयभीत हुआ है। महाबलशाली लोग, जिनके लिए कल्पना भी नहीं कर सकता | | अगर आपको भी यह पता चल जाए कि आपके दुख का कारण अर्जुन! भीष्म पितामह, इतना बलशाली व्यक्ति, वह भी जाकर परमात्मा ही है, आपकी मृत्यु का कारण परमात्मा ही है, तो भय चूर्ण हो जाएगा मृत्यु के मुख में पड़कर! द्रोणाचार्य, उसका गुरु, । और भी ज्यादा संतप्त कर देगा। हम कई तरकीबें निकालते हैं। हम वह भी इस तरह असहाय होकर दांतों में चिपट जाएगा! कर्ण, उस कहते हैं कि दुख का कारण दुष्ट आत्माएं हैं। दुख का कारण विपरीत शत्रुओं के वर्ग का सबसे शूरवीर पुरुष, वह भी ऐसा शैतान, इबलीस, बीलझेबब-हमने शैतान के हजार नाम खोज दयनीय हो जाएगा! और न केवल धृतराष्ट्र के पुत्र, मेरे पक्ष के लोग रखे हैं—वह है दुख का कारण। दुख का कारण पिछले जन्मों के भी आपके दांतों में दबे मर रहे हैं, चूर्ण हुए जा रहे हैं। न केवल | कर्म हैं। यह मृत्यु कोई परमात्मा के कारण नहीं हो रही, यह तो शरीर इतना ही, बल्कि जो बाहर हैं, वे तेजी से दौड़ रहे हैं आपके मुंह की क्षणभंगुर है, इसके कारण हो रही है। हम हजार तरकीबें खोजते हैं। तरफ, जैसे नदियां सागर की तरफ दौड़ती हैं।
परमात्मा को बचाते हैं। उससे हमारे मन में एक तो राहत रहती है बहुत भय लगता है, अर्जुन कहता है, बहुत व्यथा होती है। हंसें। कि सब कुछ हो...। बंद कर लें यह मुंह।
सुना है मैंने, कबीर ने एक पद लिखा कि चलती चक्की देखकर हम सभी दौड़ रहे हैं मृत्यु की तरफ, जैसे नदियां दौड़ती हैं। और मैं बहुत घबड़ा गया। क्योंकि उस चलती चक्की के बीच जो भी अगर यह सारा जगत, यह सारा जगत अगर शरीर है, तो निश्चित | दाने दब गए, वे चूर्ण हो गए। और कबीर ने कहा है कि मुझे ऐसा ही इस जगत के मुंह में कहीं दांतों के नीचे दबकर हम सब चूर्ण हो | लगा, यह सारा जगत एक चलती चक्की है, जिसके भीतर सब जाएंगे। और फिर कोई भी हो-भीष्म हों, कि द्रोणाचार्य, कि कर्ण, | पिसे जा रहे हैं। या कि अर्जुन-कोई भी हो, वे सभी चूर्ण हो जाएंगे। और जो नहीं कबीर का लड़का था कमाल। कमाल अक्सर कबीर के विपरीत चूर्ण हो रहे हैं, वे भी दौड़ रहे हैं। बड़ा श्रम उठा रहे हैं, भागे जा रहे बातें कहा करता था। अक्सर बेटे बाप के विपरीत कहा करते हैं। हैं, कुछ उपलब्धि के लिए!
और बेटा भी क्या, जो बाप के विपरीत थोड़ा-बहुत न हो! उसमें हम सबको यह खयाल है कि जिंदगी में कुछ पा लेंगे। और नमक ही नहीं है, उसमें जान ही नहीं है। और कबीर का बेटा था, आखिर में सिवाय मौत के हम कुछ भी नहीं पाएंगे। लगता है, न इसलिए जानदार तो था ही। कबीर ने ही उसको नाम दिया था मालूम क्या पा लेंगे। और पाते सिर्फ मौत हैं, और कुछ भी नहीं कमाल। वह कबीर के खिलाफ पद लिखा करता था। पाते। लाख करे उपाय आदमी, कब्र के सिवाय कहीं और पहुंचता तो कबीर ने जब यह लिखा कि दो चक्की के बीच मैंने किसी नहीं। कोई और दूसरी मंजिल नहीं। और कितना ही इकट्ठा करे, | | को बचता हुआ न देखा, तो कमाल ने एक पद लिखा कि ठीक है कितनी ही उपलब्धियां, कितना ही सोचे, विचारे, योजना बनाए, | यह तो, लेकिन जिसने बीच की डंडी का सहारा पकड़ लिया चक्की
आखिर में पहुंच जाता है मृत्यु के मुंह में बिना योजना बनाए। | में, वह बच गया। वह डंडी हमारे लिए परमात्मा है। उसमें भी वही बचता है, तो भी नहीं बच पाता। शायद बचने की कोशिश में भी मतलब था उसका कि जिसने राम का सहारा ले लिया, वह बच वहीं पहुंच जाता है।
गया। बाकी सब पिस गए। अर्जुन को इस जीवन की पूरी की पूरी मृत्यु में दौड़ती हुई धारा । अब इस बेचारे ने, अगर अर्जुन ने कमाल की पंक्ति पढ़ी दिखाई पड़ रही है। वह भयभीत न होता, अगर उसे ऐसा दिखाई होती-नहीं पढ़ी होगी, क्योंकि कमाल बहुत बाद में हुआ तो
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