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________________ 8 गीता दर्शन भाग-500 आपको भूख लगती है, तो फिर रोटी बनानी पड़ती है, भोजन आखिरी शिखर, एवरेस्ट, गौरीशंकर, वह इंद्र है। वहां एक ही पहुंच पकाना पड़ता है, या होटल जाना पड़ता है, आर्डर करना पड़ता है, सकता है। वह शिखर आखिरी है, चोटी। वहां दो नहीं हो सकते। समय लगता है। देवता को भूख लगेगी, भोजन हो जाएगा। बीच तो जब भी नीचे से कोई ऊपर चढ़ने की कोशिश शुरू करता है, में कोई इंद्रियां नहीं हैं, जिनकी वजह से समय के लिए कोई बाधा | तब वह शिखर कंपने लगता है। और इंद्र घबड़ाता है। इसके पहले पड़े, कोई माध्यम नहीं है। उसकी वासना उसकी तृप्ति होगी। कि यह आदमी चढे. इसको उतारने की कोशिश करो। और आदमी लेकिन वासना होगी, शुद्ध वासना होगी। को उतारने के लिए स्त्री से ज्यादा बेहतर और कुछ भी नहीं है। भेजो . लेकिन वासना जहां होती है, वहां अहंकार भी होता है। और | स्त्री को! वह तो स्त्रियों ने साधना नहीं की, नहीं तो आदमियों को जहां अहंकार होता है, वहां मिटने का डर भी होता है। जब तक भेजना पड़ता, वह कोई बात नहीं है! स्त्रियां इस झंझट में नहीं पड़ीं लगता है, मैं हूं, तब तक मिटने का डर भी रहेगा। तो देवता भी डर कि क्यों तकलीफ दो! इंद्र को काहे को हिलाओ! किसी को क्यों रहा है। बल्कि सच तो यह है कि देवता आपसे ज्यादा डर रहे हैं, तकलीफ दो! क्योंकि उनके पास खोने को ज्यादा है। | यह जो भय है इंद्र का, यह बहुत साइकोलाजिकल है, यह बहुत कम्युनिस्ट कहते हैं कि जब तक जमीन पर किसी मुल्क में बड़ी | मनस के गहरे में है। जो भी शिखर पर होगा किसी चीज के, वह संख्या ऐसी न हो जाए जिसके पास खोने को कुछ भी नहीं, तब | उतना ही ज्यादा भयभीत हो जाएगा। आप जिस मजे से सोते हैं, तक क्रांति नहीं हो सकती। वे ठीक कहते हैं। मध्यवर्गीय आदमी | प्रधानमंत्री नहीं सो सकता। कोई उपाय नहीं है। क्योंकि कई कभी क्रांतिकारी नहीं होता। और धनपति तो क्रांतिकारी होगा कैसे! | ऋषि-मुनि नीचे कोशिश कर रहे हैं! वे चढ़ रहे हैं! कुछ भेजो उनके क्योंकि क्रांति का मतलब है, जो है, वह खो जाएगा। मध्यवर्गीय | लिए। कोई अप्सरा भेजो। कोई पद भेजो। कहीं गवर्नर बनाओ। भी क्रांतिकारी नहीं होता। कुछ करो। नहीं तो वे ऋषि-मुनि आ रहे हैं! वे चढ़ दौड़ेंगे। आज इसलिए अमेरिका में कोई क्रांति नहीं हो रही। क्योंकि अमेरिका | नहीं कल उतारकर प्रधानमंत्री को, राष्ट्रपति को, नीचे करेंगे। खुद! में पूरा देश मध्यवर्गीय हो गया है। गरीब से गरीब आदमी भी | | आखिर वहां एक ही बैठ सकता है। तो वह जो एक बैठा हुआ है, बिलकुल गरीब नहीं है, उसके पास भी कुछ है। और वह जो कुछ दिक्कत में है। है, वह खद उसको बचाना चाहता है, तो क्रांति की बातचीत में वह | लाओत्से ने कहा है. उस जगह रहना जो आखिरी हो. ताकि कोई नहीं पड़ सकता। क्योंकि क्रांति में खोने का डर है। और अगर तुम | तुम्हें धक्का देने न आए। आखिरी जगह खड़े हो जाना, ताकि तुम्हें दूसरों से छीनने जाओगे, तुम्हारा भी छिन जाएगा। तो क्रांति रोकने कोई धक्का न दे। अगर पहले जाने की कोशिश करोगे, तो अनेक का एक ही उपाय अमेरिका में सफल हो पाया है, और वह यह कि तुम्हें पीछे खींचने की कोशिश करेंगे। जो क्रांति कर सकते हैं, उनके पास कुछ होना चाहिए। अगर पास तो इंद्र बेचैन है। कुछ भी नहीं है, तो फिर बहुत उपद्रव है, फिर क्रांति होगी। कृष्ण से अर्जुन कह रहा है कि देवताओं को भी मैं देख रहा हूँ डर क्या है? डर हमेशा यह है कि जो मेरे पास है, वह खो न जाए। | कि वे कंप रहे हैं, भयभीत होकर हाथ जोड़े हुए हैं, आपके नाम इसलिए आपने कहानियां सुनी हैं पुरानी, लेकिन कभी इस कोण और गुणों का उच्चारण कर रहे हैं। महर्षि और सिद्धों के समुदाय, से नहीं देखा होगा। इस पूरे प्राणियों के विस्तार में इंद्र से ज्यादा | कल्याण होवे, ऐसा कहकर उत्तम-उत्तम शब्दों द्वारा आपकी प्रशंसा भयभीत, पुरानी कहानियों में कोई भी नहीं मालूम पड़ता। हमेशा कर रहे हैं। उसका सिंहासन डगमगा जाता है। जरा ही किसी ने तपस्या की कि | ___ महर्षि और सिद्धों के समुदाय भी कह रहे हैं, कल्याण, कल्याण उनको तकलीफ शुरू हुई! कोई साधु-मुनि बेचारा ब्रह्मचारी हुआ, | | होवे। दया हो, कृपा हो, अनुग्रह हो! महर्षि और सिद्धों के समुदाय कि वे मुश्किल में पड़े, कि उन्होंने अपनी अप्सराएं भेजीं, कि करो | भी क्यों घबड़ा रहे हैं? भ्रष्ट इसको! आखिर इंद्र को इतना डर क्या है? इतना क्या भय है ? | | मिटने का भय आखिरी सीमा तक है। आखिरी सीमा तक! भय का कारण है। उसके पास है। वह शिखर पर बैठा है वासना | जिसने बहुत-सी सिद्धियां पा ली हैं, उसको सिद्ध कहा है। ये सिद्ध के। देवता शुद्धतम वासना हैं। और देवताओं में श्रेष्ठतम वासना, महावीर और बुद्ध के अर्थों में नहीं हैं। सिद्ध उसको कहा है, जिसने 3101
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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