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________________ ॐ परमात्मा का भयावह रूप बहुत-सी सिद्धियां पा ली हैं, ऋद्धियां-सिद्धियां पा ली हैं, | भी यह रूम रहेगा, बिना दीवाल के रहेगा। अगर आपने दीवालों चमत्कार कर सकता है। वह भी कंप रहा है। महर्षि, जो बहुत जानते | | से समझा कि अपना मकान, तो आप घबड़ाए रहेंगे, कि आज हैं, ज्ञान का अंबार जिनके ऊपर है, जिनकी जानकारी का कोई अंत | | मिटा, कल मिटा। अगर आपने इस खाली जगह, रूम को समझा नहीं है, वे भी कंप रहे हैं। वे भी कह रहे हैं, कल्याण, कल्याण। | कि मेरा मकान, फिर आपको भय की कोई भी जरूरत नहीं है। मैं दया करो, क्षमा करो। भयभीत हो रहे हैं। | दीवाल है। भीतर जो शून्य, शांत, चैतन्य है, वह आकाश है। क्यों? दूसरी तरफ से समझें। देवता भी कंपेंगे, मुनि भी कंपेंगे, सिद्ध भी कंपेंगे। वे सभी के बुद्ध ने कहा है, जब तक तुम्हें खयाल है कि तुम हो, तब तक | सभी किसी न किसी तरह के मैं से अभी जुड़े हुए हैं। तुम्हारा भय नहीं मिट सकता। तो बुद्ध ने कहा है, अगर तुम भय | और हे परमेश्वर! जो एकादश रुद्र, द्वादश आदित्य, आठ वसु, से मुक्त होना चाहते हो, तो तुम पहले ही मान लो कि तुम हो ही | | साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनी कुमार, मरुदगण और पितरों का नहीं। और तुम इस तरह जीयो जैसे नहीं हो। और तुम्हारी एक ही | समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धगणों के समुदाय हैं, वे साधना हो कि तुम हो ही नहीं। फिर तुम्हें कोई भयभीत न कर | सभी विस्मित हुए आपको देख रहे हैं। उनकी किसी की समझ में सकेगा। और एक क्षण भी जिस दिन तुम्हें यह अनुभव हो जाएगा नहीं आता कि यह क्या है! कि तुम हो ही नहीं, शून्य हो, उस दिन तुम्हें कहीं भी भय का कोई | | जहां द्वंद्व खो जाते हैं, वहां समझ भी खो जाती है और केवल कारण नहीं रह गया। क्योंकि जो मिट सकता था, उसे तुमने खुद | | विस्मय रह जाता है। समझ चलती है तब तक, जब तक द्वंद्व को ही त्याग दिया। अब तो वही बचा है, जो मिट ही नहीं सकता। अलग-अलग करके हम रखते हैं। जहां एक हो जाती हैं दोनों बातें, हमारे भीतर जो मैं का भाव है, वह मिट सकता है। और हमारे | वहां समझ खो जाती। और यह जो नासमझी है, समझ के खो जाने भीतर जो मैं-शून्यता की अवस्था है, वह नहीं मिट सकती। मैं | पर जो आती है, इस नासमझी को ज्ञान कहा है। यह जो नासमझी स्ट्रक्चर है, ढांचा है हमारे चारों तरफ, वह मिटेगा। जैसे शरीर का है, इसे ज्ञान कहा है। एक ढांचा है, वह मत्य में मिटेगा। ऐसे ही मैं का भी एक ढांचा है. इस ज्ञान के क्षण में सिर्फ भीतर का शन्य. बाहर का शन्य दिखाई वह भी मिटेगा। इस ढांचे के भीतर एक शून्य है। | पड़ता है, जो एक हो गए। और बाहर-भीतर भी दिखाई नहीं पड़ता ऐसा समझें कि आपने एक मकान बनाया। मकान तो मिटेगा, | | कि क्या बाहर है, क्या भीतर है। दोनों एक हो गए होते हैं। इस दीवालें तो गिरेंगी, खंडहर होगा, देर-अबेर। लेकिन मकान के | | बाहर-भीतर की एकता में, इस शून्य में ही भय तिरोहित होता है। भीतर जो शून्य आकाश था, वह नहीं मिटेगा। जब आपकी दीवालें| | तो अर्जुन कह रहा है कि सभी भयभीत हो रहे हैं। आपका यह नहीं थीं, तब भी था। फिर आपने दीवालें उठाईं, तो आपने उस शून्य | | रूप देखकर सभी विस्मित हो गए हैं, किसी की कुछ समझ में नहीं आकाश को दीवालों के भीतर घेर लिया। फिर आपकी दीवालें गिर पड़ रहा है। जाएंगी, वह शून्य आकाश वहीं का वहीं रहेगा। आज इतना ही। __ और ध्यान रखें, मकान है क्या? दीवालों का नाम मकान नहीं पांच मिनट रुकें। कीर्तन के बाद जाएं। है, क्योंकि दीवालों में कौन रह सकता है। रहते तो शन्य आकाश में हैं। दीवाल में रह सकते हैं आप? रहते कमरे में हैं। अंग्रेजी का शब्द रूम बहुत अच्छा है। रूम का मतलब होता है, स्पेस। आप रहते रूम में हैं, खाली जगह में हैं, दीवालों में नहीं रहते। अगर अकेली दीवालें ही हों मकान में और खाली जगह न हो, तो उसको कौन मकान कहेगा? आप रहते खाली जगह में हैं, वहीं जीवन है। दीवालें सिर्फ खाली जगह को घेरे हुए हैं। दीवालें नहीं थीं, तब भी यह खाली जगह थी। यह रूम था, बिना दीवाल के था। कल दीवालें गिर जाएंगी, तब 311
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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