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गीता दर्शन भाग-
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तैयार है, अगर प्रकाश हो तो मैं उसे हाथ से छूकर देख लूं; कान | बदलने को राजी हों, तो उनके हमें प्रमाण मिल सकते हैं। परम से सनकर देख लं: या जीभ से चखकर देख लं। अंधा राजी है।। वचन का अर्थ हुआ, हम जैसे हैं, वैसे ही रहकर अगर हम उनका उसके पास जो भी इंद्रियां हैं, उन इंद्रियों के माध्यम से प्रमाण मिल | प्रमाण चाहें, तो प्रमाण नहीं मिलेंगे। अगर हम अपने को बदलने सकता हो, तो अंधा प्रमाण खोजने के लिए राजी है।
को राजी हों, तो प्रमाण मिल जाएंगे। लेकिन हाथ प्रकाश को छू नहीं सकते, फिर भी प्रकाश है। और | यहां दो बातें खयाल में ले लेनी चाहिए। कान प्रकाश को सुन नहीं सकते, फिर भी प्रकाश है। और जीभ | विज्ञान आदमी को बदलने की कोई जरूरत नहीं मानता। विज्ञान प्रकाश का स्वाद नहीं ले पाएगी, फिर भी प्रकाश है। और नासारंध्र | मानता है कि आदमी जैसा है, सत्य वैसे ही पाया जा सकता है। प्रकाश की गंध नहीं पा सकेंगे, फिर भी प्रकाश है। और अंधे की | | विज्ञान चीजों को बदलता है, चीजों को तोड़ता है, चीजों का चार इंद्रियां, जिसको कहें कि कोई प्रमाण नहीं है, अंधा कैसे मानने विश्लेषण करता है। अगर अणु की खोज करनी पड़ी है, तो दो को राजी हो कि जो वक्तव्य है, वह व्यर्थ नहीं है! अंधे की सीमा | हजार वर्ष लग गए हैं। हेराक्लतु से लेकर आइंस्टीन तक दो हजार के भीतर प्रमाण नहीं जुटाए जा सकते, इससे कोई चीज गलत नहीं वर्षों तक अणु का चिंतन चला है, अणु की शोध चली है, अणु का हो जाती। इससे यह भी हो सकता है कि अंधे की सीमा बहुत खंडन चला है, और तब जाकर हमें अणु के सत्य का पता चला है। सीमित है। अंधे की सीमा भी बड़ी की जा सकती है। अंधे की आंखें | दो हजार साल हमें अणु के साथ मेहनत करनी पड़ी है। ठीक की जा सकती हैं। आंखों के ठीक होते ही प्रकाश का प्रमाण विज्ञान वस्तु के साथ मेहनत करता है, धर्म व्यक्ति के साथ मिल जाएगा।
| मेहनत करता है। विज्ञान कहता है, वस्तु को हम ऐसी स्थिति में लेकिन हमारी कठिनाई यह है कि स्वभावतः हम सभी अंधे हैं। ले आएं, जहां सत्य का उदघाटन हो जाए। धर्म कहता है, व्यक्ति जिस आंख से जीवन के परम सत्य का अनुभव हो सके, वह आंख को हम ऐसी स्थिति में ले आएं, जहां वह सत्य को देखने में समर्थ सबके पास है, लेकिन बंद है। इसलिए कभी अगर एक व्यक्ति की | | हो जाए। आंख भी खुल जाए, तो वह प्रमाण उसके लिए ही प्रमाण होता है, विज्ञान की सारी चेष्टा वस्तु के साथ है, धर्म की सारी चेष्टा शेष के लिए प्रमाण नहीं होता है।
व्यक्ति के साथ है। व्यक्ति बदले, तो सत्य का पता चलेगा। विज्ञान हमने मीरा को नाचते देखा है, लेकिन मीरा हमें पागल मालूम | कहता है, वस्तु को हम समझ लें, तो सत्य का पता चल जाएगा। पड़ती है। क्योंकि हमें मीरा का नाच ही दिखाई पड़ता है; वह नहीं | स्वभावतः, विज्ञान की खोज पदार्थ की खोज है, धर्म की खोज दिखाई पड़ता है, जिसको देखकर मीरा नाच रही है। हमने कबीर | चेतना की खोज है। को गीत गाते देखा है। लेकिन हमें कबीर के गीत ही सुनाई पड़ते कृष्ण कहते हैं, ये परम वचन हैं। परम वचन का अर्थ है, अर्जुन, हैं, कबीर के भीतर गीत का जन्म हुआ है जिसके स्पर्श से, उसका | अगर तू बदले, तो इनके प्रमाण को जान सकेगा। पहली बात। हमें कोई पता नहीं चलता। हमने बुद्ध को मौन होते देखा है, हमने | अर्जुन की बदलाहट पर ही तय होगा कि ये वचन सत्य हैं या बुद्ध को शांत होते देखा है, ऐसी शांति जैसी कि पृथ्वी पर | असत्य। अर्जुन जैसा है, वैसा रहते हुए इन वचनों के संबंध में कुछ कभी-कभार उभरती है. कभी-कभार उतरती है। लेकिन क्या भी नहीं बोल सकता है। देखकर बुद्ध शांत हो गए हैं, क्या देखकर उनका मन ठगा रहकर । इसलिए धर्म ने श्रद्धा को आधारभूत बनाया है। क्योंकि इन परम चुप हो गया है, उसका हमें कोई भी पता नहीं।
वचनों को मानकर चले बिना कोई उपाय नहीं है। तो हमारे भीतर जिसकी आंख भी खुलती है, वह हम अंधों के __एक सूफी बोध-कथा मुझे स्मरण आती है। एक छोटी-सी नदी बीच अंधा मालूम पड़ने लगता है, क्योंकि हमने अपने अंधेपन को | | सागर से मिलने को चली है। नदी छोटी हो या बड़ी, सागर से आंख समझा हुआ है। हमसे जो भिन्न होता है, वह हमें अंधा मालूम | | मिलने की प्यास तो बराबर ही होती है, छोटी नदी में भी और बड़ी पड़ता है।
नदी में भी। छोटा-सा झरना भी सागर से मिलने को उतना ही आतुर परम वचन कृष्ण की दृष्टि में वे वचन हैं, जो हमारी मौजूद | होता है, जितनी कोई बड़ी गंगा हो। नदी के अस्तित्व का अर्थ ही हालत में तो प्रमाण नहीं बन सकते, लेकिन अगर हम अपनी हालत | सागर से मिलन है।