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________________ गीता दर्शन भाग-503 लोग अपनी बही-खाता शुरू करते हैं, श्री गणेशायनमः, गणेश जी हो रहा है। की स्तुति से। आपको पता नहीं कि क्यों? शायद आप भी करते आप व्यथित हो रहे हैं किसलिए? बीमारी है, दुख है, मौत है, होंगे, लेकिन पता नहीं। गणेश जी की मूर्ति मकान पर बनाए रखते यह दुख है। मृत्यु गहन दुख है। और सारे दुख उसी की छायाएं हैं। हैं। हर जगह पहले कुछ करना हो, तो गणेश जी की पहले | हर आदमी कंप रहा है, दुखी हो रहा है, घबड़ा रहा है, मिट न पूजा-प्रार्थना करनी पड़ती है। | जाऊं। जब कोई इस विराट को अनुभव करता है दूसरे रूप में, तो उसका कुल कारण इतना है कि पुराने शास्त्र कहते हैं कि गणेश देखा होगा अर्जुन ने कि सारे लोग मृत्यु के मुंह में चले जा रहे हैं, जो हैं, वे पहले बहुत विध्वंसकारी थे, बहुत उपद्रवी थे। और जहां चाहे वे कुछ भी कर रहे हों, चाहे वे दुकान जा रहे हों, मंदिर जा रहे भी कुछ शुभ कार्य हो रहा हो, वहां विघ्न खड़ा करना उनका काम हों, घर लौट रहे हों। कहीं भी जा रहे हों आप, आपका जाना-आना था। विघ्नेश्वर उनका पुराना नाम है। तो चूंकि उपद्रव वे न करें, | कुछ अर्थ नहीं रखता। एक बात तय है कि आप मौत के मुंह में जा इसलिए पहले उनकी स्तुति करके हम समझा-बुझा लेते हैं कि कोई रहे हैं। चाहे दुकान जा रहे हैं, चाहे घर आ रहे हैं। हर हालत में आप गड़बड़ न करना महाराज! श्री गणेशायनमः। तो उनका हम पहले मौत के मुंह में जा रहे हैं। स्मरण करते हैं। जब अर्जुन को प्रतीत हुआ होगा यह विकराल अग्निमुख, तब यह अक्सर हो जाता है। जिससे भय होता है, उसको पहले | | उसने देखा होगा, सारा लोक, सारे प्राणी, मौत के मुंह में चले जा स्मरण करना होता है। अब तो हम भूल भी गए कि वे विघ्नेश्वर रहे हैं और हर एक कंप रहा है। हैं। अब तो हम समझते हैं कि वे मंगलमूर्ति हैं। उपद्रवी हैं! उपद्रव ___ यह एक बहुत गहन अनुभव है। अगर आप भी आंख बंद करके से बचने के लिए, कि आपको पहले मनाए लेते हैं, फिर किसी और | लोगों के बाबत सोचे–यहां इतने लोग बैठे हैं, अगर आंख बंद की करेंगे पूजा और प्रार्थना। आप पहले राजी रहें, नहीं तो सब करके क्षणभर को सोचें तो यहां जो लोग बैठे हैं, वे सब मौत के उपद्रव हो जाएगा। मुंह में जा रहे हैं। एक घंटा व्यतीत हुआ, तो आप मौत के मुंह में शंकर की भी हम पूजा-प्रार्थना करते हैं भय के कारण। ब्रह्मा की | | सरक गए और थोड़ा ज्यादा। कोई आज मरेगा, कोई कल मरेगा, हम कोई पजा नहीं करते। शायद एक मंदिर है मल्क में ब्रह्मा के कोई परसों मरेगा, समय का ही फासला है। हम सब लाशें हैं, जिन लिए और कोई मंदिर नहीं है। क्योंकि क्या करना, वह तो बात | पर तारीखें लिखी हैं कि कब घोषणा हो जाएगी। लाशें चल रही हैं, खतम हो गई। ब्रह्मा ने जन्म दे दिया, अब कुछ और काम है नहीं | | गिर रही हैं, उठ रही हैं और कंप रही हैं, क्योंकि वह तारीख...! उनका। शंकर का अभी थोड़ा डर है, क्योंकि मौत वे देंगे। विष्णु गुरजिएफ कहा करता था कि अगर इस जमीन को अब धार्मिक के सारे मंदिर हैं। और सब रूप-राम हों, कृष्ण हों-सब विष्णु | बनाना हो, तो एक ही उपाय है। और वह कहता था, वैज्ञानिकों को के रूप हैं। और हम उनके मंदिर में पूजा करते हैं, प्रार्थना करते हैं। सारी चिंता छोड़कर एक यंत्र खोज लेना चाहिए घड़ी की तरह, जो विष्णु संसार हैं। वह मध्य है। ये दो छोर द्वंद्व हैं। और इन दोनों छोरों | | हर आदमी के हाथ पर बांध दिया जाए, जो हमेशा उसको बताता को जोड़ने वाली लकीर विष्णु। | रहे कि अब मौत कितने करीब है। वह कांटा उसका घूमता रहे। दूसरा छोर अर्जुन को दिखाई पड़ना शुरू हो रहा है। यह हो सकता है, कठिन नहीं है। लेकिन वैज्ञानिक अगर अग्निरूप मुख वाला तथा अपने तेज से इस जगत को तपायमान बनाएंगे भी, तो हम उस वैज्ञानिक को ही मार डालेंगे, वह यंत्र भी करता हआ देखता है। और हे महात्मन। यह स्वर्ग और पथ्वी के तोड़ देंगे। यंत्र बन सकता है, क्योंकि शरीर के स्पंदन बताते हैं कि बीच का संपूर्ण आकाश तथा दिशाएं एक आपसे ही परिपूर्ण हैं। | अब आपमें कितना जीवन शेष है, आज नहीं कल। क्योंकि बच्चा तथा आपके इस अलौकिक और भयंकर रूप को देखकर, | जब पैदा होता है, तो उसके जो क्रोमोसोम हैं, उसकी जो बनावट अलौकिक और भयंकर रूप को देखकर, तीनों लोक अतिव्यथा | | के बुनियादी ढांचे हैं, जिस पर खड़ा है सारा जीवन, उनकी को प्राप्त हो रहे हैं। | नाप-जोख हो सकती है कि ये कितनी देर चलेंगे। जैसे आप घड़ी ___ अर्जुन को दिखाई पड़ रहा है, यह दूसरा रूप। और उसे साथ खरीदते हैं, तो दस साल की गारंटी हो सकती है। में दिखाई पड़ रहा है, इस दूसरे रूप के कारण सारा लोक व्यथित | तो बच्चा पैदा होता है, उसकी सारी की सारी, जिस दिन हम 3061
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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