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________________ 3 परमात्मा का भयावह रूप लोगों के ऐसे अनुभव हैं कि गुरजिएफ बैठा है अपने शिष्यों के बीच | | काटो, क्योंकि कोई कटता ही नहीं, बेफिक्री से काटो। हमारी समझ और वह इस तरफ मुंह करेगा और उसका मुंह इतना प्रेमपूर्ण होगा| के बाहर हो जाता है। और जो लोग उसे देखेंगे. प्रफल्लित हो जाएंगे। और वह दसरी | इसलिए कृष्ण के भक्त भी बंटे हुए हैं। पूरे कृष्ण को कोई तरफ मुंह करेगा और उसकी आंखें इतनी दुष्ट हो जाएंगी कि जो |स्वीकार नहीं करता। कोई बांसुरी बजाने वाले को स्वीकार करता लोग उसको देखेंगे, वे एकदम थर्रा जाएंगे। और ये दोनों तरफ बैठे | | है, तो बाकी हिस्से को छोड़ देता है, कि वह अपने काम का नहीं हुए आदमी, जब उसके मकान के बाहर जाकर बात करेंगे, तो | है! सिलेक्ट करना पड़ता है कृष्ण में से। कोई दूसरे हिस्से को इनकी बातों का कोई मेल ही नहीं हो सकेगा। क्योंकि एक ने चेहरा | स्वीकार करता है, तो फिर बांसुरी वाले को मानता है कि यह देखा था उसका बड़ा प्यारा; और एक ने चेहरा देखा उसका बड़ा | कवियों की कल्पना होगी, हटाओ। दुष्टता से भरा हुआ, कि वह गर्दन दबा देगा, मार डालेगा, क्या लेकिन पूरे कृष्ण को स्वीकार करना वैसे ही मुश्किल है, जैसे करेगा! और वे दोनों जाकर बाहर कहेंगे; एक कहेगा, वह रास्कल | पूरे जीवन को स्वीकार करना मुश्किल है। और जो पूरे जीवन को है; और एक कहेगा, वह सेंट है। | स्वीकार करता है, वही केवल कृष्ण को पूरा स्वीकार कर सकता अलन वाट कहता है, वह दोनों था। रास्कल-सेंट एक ही साथ | है। और पूरे जीवन को स्वीकार करने का अर्थ है, परमात्मा की दोनों था वह आदमी। वह एक आंख से क्रोध प्रकट कर सकता था, और | शक्लें एक साथ। एक से प्रेम। दो शक्लें नहीं हैं लेकिन परमात्मा की। हमने अपने मुल्क में तीन बहुत कठिन है। बहुत कठिन है। कोई चालीस साल की लंबी | शक्लों की बात की है, दो तो छोर हैं। एक उसका जन्मदाता का साधना थी उसकी इस तरह का अभिनय करने की, कि वह एक | छोर, मां का। एक विध्वंस का, मृत्यु का। ये दो छोर हैं, ये दो आंख से क्रोध प्रकट कर सके और एक से प्रेम। और एक हाथ से | शक्लें खास हैं। पर बीच में एक शक्ल और है। क्योंकि जहां भी प्रेम दे सके और दूसरे हाथ से जहर, एक साथ! लेकिन एक अर्थ | दो हों, वहां जोड़ने के लिए तीसरे की जरूरत पड़ जाती है। ये दो में वह पूरा संत था, पूरा। | इतने विपरीत हैं कि इनको जोड़ने के लिए एक तीसरे की जरूरत है, अगर हम परमात्मा के दोनों रूप लें, तो वे जो संत मछलियों को | जो दोनों के मध्य में हो। दाना चुगा रहे हैं और चींटियों को आटा डाल रहे हैं, वे एक ही इसलिए हमने ब्रह्मा, विष्णु, महेश, तीन शक्लें, त्रिमूर्ति की हिस्से वाले मालूम पड़ते हैं; अधूरे। तो दूसरे हिस्से का क्या होगा? | | धारणा की है। उन तीनों मूर्तियों के पीछे एक ही व्यक्ति है। एक ही कृष्ण में जरूर परमात्मा के दोनों रूप एक साथ प्रकट हुए हैं। | शक्ति है, कहें। एक ही विराट ऊर्जा है। लेकिन एक तरफ से वह इसलिए कई लोगों को कठिनाई होती है कि कृष्ण को समझें कैसे? | बनाती है, एक तरफ से मिटाती है, बीच में सम्हालती भी है। क्योंकि क्योंकि कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत कंट्राडिक्टरी है। एक तरफ बनने और मिटने के बीच में कोई सम्हालने वाला भी चाहिए। आश्वासन देते हैं कि मैं युद्ध में अस्त्र नहीं उठाऊंगा; मौका आता | अगर ब्रह्मा और महादेव ही हों जगत में, तो बनना-मिटना है, उठा लेते हैं। वचन का कोई भरोसा नहीं उनके। बेईमान! हम | काफी होगा, लेकिन और कुछ नहीं होगा। बीच में कुछ भी नहीं सोच भी नहीं सकते कि साधु, और वचन दे और पूरा न करे। होगा। इधर ब्रह्मा बना नहीं पाएंगे, वहां महादेव मिटा डालेंगे! लेकिन कारण है कि हम ईश्वर के एक ही पहलू को पकड़ते हैं। आपको रहने का बीच में मौका नहीं मिलेगा। संसार के लिए उपाय कृष्ण में ईश्वर के दोनों पहलू एक साथ हैं। इसलिए कृष्ण एक तरफ | नहीं रहेगा। इसलिए विष्णु! गीता जैसा अदभुत ग्रंथ दे पाते हैं, दूसरी तरफ स्त्रियों के साथ नाच ___ इसलिए हमने सारी जमीन पर जो मंदिर बनाए, वे विष्णु के मंदिर भी पाते हैं। और इसमें उन्हें कोई अड़चन नहीं है। इसमें कोई | हैं। और सारे अवतार विष्णु के अवतार हैं। उसका कारण है। अड़चन नहीं है। एक तरफ प्रेम की बात भी कर पाते हैं और दूसरी | | क्योंकि वे बीच में हैं। वही संसार है हमारा। विष्णु संसार हैं। दो तरफ अर्जुन को युद्ध में जाने के लिए सलाह भी दे पाते हैं। काटो! छोर हैं, ब्रह्मा और महादेव तो। महादेव की हम पूजा करते हैं, तो इसकी भी कोई चिंता नहीं है। दूसरी तरफ बांसुरी भी बजा पाते हैं। | भय के कारण, कि मना-बुझा लो, समझा-बुझा लो। यह बांसुरी बजाने वाला कभी कहेगा कि उठाओ तलवार और आपको पता है कि भय के कारण हम बहुत पूजा करते हैं। सभी 305
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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