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________________ गीता दर्शन भाग-5 द्वंद्व जीवन का स्वरूप है। हर चीज दो में है। जिससे हम प्रेम करते हैं, सोचते हैं, कभी इस पर क्रोध न करें। करना ही पड़ेगा। जिससे हम प्रेम करते हैं, उससे क्रोध भी होगा, घृणा भी होगी, संघर्ष भी होगा, द्वंद्व भी होगा, झगड़ा भी होगा। प्रेम के साथ ही घृणा जुड़ी हुई है। इसलिए जितने प्रेमी हैं, लड़ते रहते हैं । और जब प्रेमी लड़ना बंद कर दें, समझ लेना कि प्रेम समाप्त हो गया। वह जुड़ा है। उसमें एक को बचाने का कोई भी उपाय नहीं है। या तो दोनों बचते हैं, या दोनों विदा हो जाते हैं। अर्जुन ने एक रूप देखा परमात्मा का। हम भी वह रूप देखना चाहेंगे। लेकिन दूसरे रूप से भी बचने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि अगर जन्म उससे होता है, तो मृत्यु भी उसी से होती है। और अगर अच्छाई उससे पैदा होती है, तो बुराई भी उसी से पैदा होती है। और अगर जगत में सौंदर्य का जन्म उससे होता है, तो कुरूपता भी उसका ही पहलू है। वह भी देखना ही पड़ेगा। वह दूसरी तरफ यात्रा शुरू हो गई। जो लोग भी परमात्मा के अनुभव में जाते हैं, उन्हें इसकी तैयारी रखनी चाहिए। दुनिया में दो तरह के धर्म हैं इन दो रूपों के कारण। एक तो वे धर्म हैं, जिन्होंने इस ऐश्वर्य, महिमा वाले रूप को प्रमुखता दी है। और एक वे धर्म हैं, जिन्होंने उस भयंकर रूप को प्रमुखता दी है। जैसे कि पुराना जरथुस्त्र या पुराना यहूदियों का धर्म ओल्ड टेस्टामेंट का, वहां ईश्वर विकराल है, भयंकर है। बहुत क्रूर और कठोर है; दुष्ट मालूम पड़ता है। हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इसीलिए जीसस की बात यहूदियों को स्वीकृत न हो सकी। उसका कारण जीसस नहीं थे। उसका कारण था ओल्ड टेस्टामेंट, पुराने यहूदी की जो ईश्वर की धारणा थी, उससे बिलकुल उलटी बात जीसस ने कही है। पुरानी धारणा यह थी कि ईश्वर, अगर तुमने उसके खिलाफ जरा-सा भी काम किया, तो तुम्हें जलाएगा, मारेगा, सड़ाएगा, अनंत काल तक भयंकर कष्ट देगा, दंड देगा। नर्क उसने बनाए हैं। पुराने टेस्टामेंट का जो नर्क है, वह इटरनल है, अनंत है। उसमें जरा से पाप के लिए भी फेंका जाएगा आदमी, तो फिर दुबारा वापसी का कोई उपाय नहीं है। और ईश्वर एक भयंकर विकराल व्यक्तित्व है, जिसकी आंखों से लपटें निकल रही हैं। और जिसको शांत करने का एक ही उपाय है, भय, स्तुति, प्रार्थना, उसके चरणों में सिर को रख देना। और वह जो कहता है उसको मान लेना, उसकी आज्ञा के अनुकूल। उसकी आज्ञा से जरा-सी प्रतिकूलता हुई कि वह भस्म कर देगा। यह था यहूदी रूप ईश्वर का । यह एक पहलू है। यह गलत नहीं है । यह भी ईश्वर का एक पहलू है। और ऐसा लगता है, मोजेज | को इसका अनुभव हुआ होगा। मोजेज भूल-चूक से ईश्वर के भयंकर पहलू को पहले देख लिए। और वह भयंकर पहलू मोजेज पर इस तरह आविष्ट हो गया कि उन्होंने जो बात कही, उसमें वह भयंकर पहलू केंद्र बन गया । जीसस उलटी बात कहते हैं। वे कहते हैं, गॉड इज़ लव । ईश्वर प्रेम है। इसलिए यहूदी मन जीसस को स्वीकार नहीं कर पाया। कहां | ईश्वर था भयंकर ! और यहूदियों की सारी साधना पद्धति यह थी कि उससे भयभीत होओ, उससे डरो। उससे डरोगे, यही धार्मिक होने का लक्षण है। और जीसस ने कहा कि ईश्वर है प्रेम । तो जिससे प्रेम है, उससे डरने की क्या जरूरत है। और जिससे हमारा प्रेम है, उससे डर समाप्त हो जाता है। और जब डर समाप्त हो जाता है, तो यहूदियों ने कहा, फिर ईश्वर का वह जो रूप – उसको उन्होंने कहा, ट्रिमेंडम, वह जो भयंकर रूप है, वह जो विकराल तांडव करता रूप है - तो सारा धर्म नष्ट हो जाएगा। इसलिए जीसस को यहूदी मन स्वीकार न कर पाया। ओल्ड टेस्टामेंट और न्यू टेस्टामेंट बड़ी विपरीत किताबें हैं, दो पहलू वाली । लेकिन एक अर्थ में बाइबिल पूरी किताब है। ओल्ड टेस्टामेंट, न्यू टेस्टामेंट दोनों मिलकर बाइबिल पूरी किताब है, | क्योंकि उसमें परमात्मा के दोनों पहलू हैं। मोजेज ने जो देखा अग्निरूप और जीसस ने जो देखा प्रेमरूप, वे दोनों समाहित हैं, दोनों इकट्ठे हैं। 304 अगर किसी तरह यहूदी और ईसाइयत दोनों का तालमेल हो जाए गहरा, तो वह ईश्वर की पूरी छवि हो गई। लेकिन बहुत मुश्किल है। क्योंकि जो उसके प्रेमपूर्ण रूप को प्रेम कर पाता है, वह सोच नहीं पाता कि वह भयंकर और विकराल भी हो सकता है। मैं पीछे जार्ज गुरजिएफ की बात कर रहा था । जार्ज गुरजिएफ अनूठा आदमी था। जैसा हम साधारणतः साधु को मानते हैं, ऐसा भी; और जैसा हम कभी सोच भी नहीं सकते साधु को, वैसा भी । अमेरिका के बहुत विचारशील साधक अलन वाट ने गुरजिएफ को रास्कल सेंट कहा है । रास्कल सेंट! बड़ा अजीब शब्द है। हिंदी में बनाएं तो और कठिनाई हो जाएगी। शैतान साधु, या कुछ ऐसा अर्थ करना पड़े। मगर ठीक कहा है उसने । गुरजिएफ ऐसा आदमी था । और
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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