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गीता दर्शन भाग-5
है, और तुम जो कहते हो, वह गलत है, मान लो मेरे धर्म को; चाहे धन देकर, चाहे पद देकर और चाहे तर्कों से समझा-बुझाकर, किसी भी तरह आक्रमण करके किसी व्यक्ति को उसके धर्म को बदलने की कोशिश हमने इस मुल्क में नहीं की। कनवर्शन हमने कभी उचित नहीं माना।
और उसका कुल कारण इतना था कि कनवर्शन के लिए – हिंदू को ईसाई बनाने के लिए, ईसाई को हिंदू बनाने के लिए - मतांध आदमी चाहिए, आग्रहपूर्ण, जो कहें कि यही ठीक है । जो इतने पागलपन से कह सकें कि यही ठीक है; और दूसरे की सुनने को बिलकुल राजी ही न हों।
महावीर कैसे किसी को कनवर्ट करें ! अगर उनके विपरीत भी आप जाकर कहें, तो महावीर कहेंगे कि आप भी ठीक हैं। इसमें भी सचाई है। आप जो कह रहे हैं, बड़ा कीमत का है। महावीर के विपरीत कहें, तो भी! तो कनवर्शन असंभव है। इसलिए महावीर जैसे बहुत विचार का आदमी भी हिंदुस्तान में बहुत जैन पैदा नहीं करवा पाया। उसका कारण था। क्योंकि कनवर्ट करने का कोई उपाय ही नहीं था।
मतांध आदमी दूसरे पर जबर्दस्ती छा जाते हैं। लेकिन जो मतांध है, वह राजनैतिक हो सकता है, धार्मिक नहीं। दूसरे को बदलने की चेष्टा ही असल में राजनीति है। स्वयं को बदलने की चेष्टा धर्म है। दूसरे पर छा जाना, अहंकार की यात्रा है। अपने को सब भांति पोंछकर मिटा देना, धर्म की।
अर्जुन कहता है, यह मेरा मत है। और अभी अनुभव हो रहा है उसे। अभी प्रत्यक्ष है, अभी क्षण भी नहीं बीता है। अभी वह अनुभव के बीच में खड़ा है। चारों तरफ घटनाएं घट रही हैं उसके । द्वार खुल गया है अनंत का। और ऐसे क्षण में भी अर्जुन कहता है, यह मेरा मत है, यह बहुत कीमती है।
आप ही जानने योग्य परम अक्षर हैं।
जानने योग्य! जानने योग्य क्या है? किस चीज को कहें जानने योग्य ? आमतौर से जिसका कोई उपयोग हो, उसे हम जानने योग्य कहते हैं। विज्ञान जानने योग्य है, क्योंकि उसके बिना न मशीनें चलेंगी, न रेलगाड़ियां दौड़ेंगी, न रास्ते बनेंगे, न कारें होगी; न यंत्र होंगे, न टेक्नालाजी होगी। विज्ञान जानने योग्य है, क्योंकि उसके बिना जीवन की सुख-सुविधा असंभव हो जाएगी। चिकित्साशास्त्र जानने योग्य है, क्योंकि उसके बिना बीमारियों से कैसे लड़ेंगे? उपयोगिता ! हमारे जानने योग्य का अर्थ होता है, जिसकी यूटिलिटी
है, जिसकी उपयोगिता है।
इसीलिए जिन चीजों की उपयोगिता है, उनकी तरफ हम ज्यादा दौड़ते हैं। अगर आज यूनिवर्सिटी में जाएं, तो इंजीनियरिंग की तरफ, मेडिकल साइंस की तरफ दौड़ते हुए युवक मिलेंगे। फिलासफी, दर्शनशास्त्र के कमरे खाली होते जाते हैं। वहां कोई | जाता नहीं । या जिनको कहीं जाने के लिए उपाय नहीं बचता, वे वहां चले जाते हैं । सब दरवाजे जिनके लिए बंद हो जाते हैं, वे सोचते हैं कि चलो, अब दर्शनशास्त्र ही पढ़ लें।
सारी दुनिया में दर्शनशास्त्र की तरफ लोगों का जाना कम होता जाता है। क्यों? क्योंकि उसकी कोई उपयोगिता नहीं है। क्या करिएगा? अगर दर्शन में कोई उपाधि भी ले ली, तो करिएगा क्या? उससे न रोटी पैदा हो सकती है, न यंत्र चलता है। किसी काम का | नहीं है, बेकाम हो गया; उपयोगिता गिर गई। हमारे लिए जानने योग्य वह मालूम पड़ता है, जो उपयोगी है।
लेकिन यहां अर्जुन कहता है, आप ही जानने योग्य परम अक्षर
हैं।
क्या अर्थ होगा इसका ? भगवान की क्या उपयोगिता होगी ? क्या करिएगा भगवान को जानकर ? रोटी पकाइएगा ? दवा बनाइएगा? यंत्र चलवाइएगा ? क्या करिएगा? अगर उपयोगिता की दृष्टि से देखें, तो भगवान बिलकुल जानने योग्य नहीं है । | जानकर करिएगा भी क्या ? अगर आज पश्चिम के मस्तिष्क को हम समझाना चाहें कि भगवान, तो वह पूछेगा कि किसलिए? क्या करेंगे जानकर ? क्या होगा जानने से ? उपयोगिता क्या है ?
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, ध्यान ! लेकिन ध्यान से होगा क्या ? मिलेगा क्या? उपयोगिता क्या है ? स्वभावतः, ध्यान बाबत भी वे वही सवाल पूछते हैं, जो रुपए के बाबत, धन के बाबत पूछेंगे, मकान के बाबत पूछेंगे। उपयोग ही मूल्य है। तो ध्यान का उपयोग क्या है ? प्रार्थना का उपयोग क्या है? कोई उपयोग तो मालूम नहीं पड़ता। और परमात्मा तो परम निरुपयोगी है। क्या उपयोग है? उपादेयता क्या है उसकी ? उससे क्या कर सकते हैं? कोई प्राफिट मोटिव, कोई लाभ का विचार लागू नहीं होता । क्या | करिएगा? और यह अर्जुन कह रहा है कि आप ही जानने योग्य परम अक्षर हैं!
जानने योग्य की हमारी परिभाषा और हैं। हम कहते हैं उसे जानने | योग्य, जिसे जानने के बाद कुछ जानने को शेष न रह जाए। हम कहते हैं उसे जानने योग्य, जिसको जान लिया, तो फिर जानने को
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