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________________ गीता दर्शन भाग-5 और आज की सदी में तो आश्चर्य बिलकुल मुश्किल हो गया है। सभी चीजों के उत्तर पता हो गए हैं। और सभी चीजों का विश्लेषण हमारे पास है । और ऐसी कोई भी चीज नहीं, जिसको हम न समझा सकें, इसलिए आश्चर्य का कोई सवाल नहीं है। इसलिए आज की सदी जितनी आश्चर्य - शून्य सदी है, मनुष्य जाति के इतिहास में कभी भी नहीं रही। छोटे-छोटे बच्चे थोड़ा-बहुत आश्चर्य करते हैं, थोड़ा-बहुत । क्योंकि अब तो बच्चे भी खोजना बहुत मुश्किल है। अब तो बच्चे होते से ही हम उनको बूढ़ा करने में लग जाते हैं। पुरानी सदियां थीं, वे कहते थे, बूढ़े फिर से बच्चे हो जाएं, तो परम अनुभव को उपलब्ध होते हैं। हमारी कोशिश यह है। कि बच्चे जितने जल्दी बूढ़े हो जाएं, तो संसार में ठीक से यात्रा करते हैं। तो सब मिलकर - शिक्षा, समाज, संस्कार - बच्चे को बूढ़ा करने में लगते हैं कि वह जल्दी बूढ़ा हो जाए। आपकी नाराजगी क्या है आपके बच्चे से ? इसीलिए कि तू जल्दी बूढ़ा क्यों नहीं हो रहा ! आप हिसाब-किताब लगा रहे हैं अपनी बही में और वह वहीं तुरही बजा रहा है। आप उसको डांट रहे हैं कि बंद कर। वह वहीं नाच रहा है । आप उसको रोक रहे हैं कि विघ्न-बाधा खड़ी मत कर। आप कर क्या रहे हैं? आप यह कोशिश कर रहे हैं कि तू भी मेरे जैसा बूढ़ा जल्दी हो जा । खाते-बही हाथ में ले हिसाब लगा। यह तुरही बजाना और नाचना! यह क्या कर रहा है ! हमारे लिए किसी को यह कह देना कि क्या बचकानी हरकत कर रहे हो, काफी निंदा का उपाय है। बच्चा निंदित है आज। लेकिन बच्चे में थोड़ा-बहुत आश्चर्य है। वह भी हम ज्यादा देर बचने नहीं देंगे। क्योंकि जैसे-जैसे हम समझदार होते जा रहे हैं, बच्चे की उम्र स्कूल भेजने की कम होती जा रही है। पहले हम उसको सात साल में भेजते थे, अब पांच साल भेजते हैं, अब ढाई साल में भेजने लगे। और अब रूस में वे कहते हैं कि यह भी समय बहुत ज्यादा है, इतनी देर रुका नहीं जा सकता। ढाई साल ! तब क्या करिएगा ! तो वे कहते हैं, अब बच्चे को, जब वह अपने झूले में झूल रहा है, तब भी बहुत-सी बातों में शिक्षित किया जा सकता है। और उनके विचारक तो और दूर तक गए हैं। वे कहते हैं कि मां के गर्भ भी बच्चे में बहुत तरह की कंडीशनिंग डाली जा सकती है। और जो संस्कार मां के गर्भ में डाल दिए जाएंगे, वे जीवन पर्यंत पीछा करेंगे, उनसे फिर बचा नहीं जा सकता। तो इसका मतलब यह हुआ कि हम आज नहीं कल, बच्चे को | गर्भ में भी स्कूल में डाल देंगे, सिखाना शुरू कर देंगे। हम उसको पैदा ही नहीं होने देंगे कि वह आश्चर्य करता हुआ पैदा हो। वह जानकारी लेकर ही पैदा होगा। अभी वे कहते हैं कि आज नहीं कल, जैसे आज हृदय को | ट्रांसप्लांट करने के उपाय हो गए कि एक आदमी का हृदय खराब | हो गया है, तो दूसरा आदमी का हृदय डाल दिया जाए; नवीनतम जो विचार है - अब वे काम में लग गए हैं, वह इस सदी के पूरे होते-होते पूरा हो जाएगा – वे कहते हैं, जब एक बूढ़ा आदमी | मरता है, तो उसकी स्मृति को क्यों मरने दिया जाए, वह ट्रांसप्लांट | कर दी जाए। एक बूढ़ा आदमी मर रहा है, अस्सी साल का अनुभव और स्मृति, वह सब निकाल ली जाए मरते वक्त, जैसे हम हृदय को निकालते हैं। उसके पूरे मस्तिष्क के यंत्र को निकाल लिया जाए, और एक छोटे बच्चे में डाल दिया जाए। तो उनका कहना यह है कि वह छोटा बच्चा बूढ़े की सारी स्मृतियों के साथ काम शुरू कर देगा। जो बूढ़े ने जाना था, वह इस बच्चे को मुफ्त उपलब्ध हो जाएगा; इसको सीखना नहीं पड़ेगा । और प्रयोग इस तरफ काफी सफल हैं। इसलिए बहुत ज्यादा देर की जरूरत नहीं है। काफी सफल हैं! | अगर हम किसी दिन स्मृति को, मेमोरी को ट्रांसप्लांट कर सके, | तो फिर तो बच्चे कभी पैदा ही नहीं होंगे। इस जरात में फिर कोई बच्चा ही नहीं होगा। सिर्फ कम उम्र के बूढ़े, बड़े उम्र के बूढ़े, बस | इस तरह के लोग होंगे। अभी-अभी पैदा हुए बूढ़े, नवजात बूढ़े, बहुत देर से टिके बूढ़े, इस तरह के लोग होंगे। आश्चर्य के खिलाफ हम लगे हैं। हम जगत से रहस्य को नष्ट करने में लगे हैं। हमारी चेष्टा यही है कि ऐसी कोई भी चीज न रह जाए, जिसके सामने मनुष्य को हतप्रभ होना पड़े। ऐसा कोई सवाल न रहे जिसका जवाब आदमी के पास न हो। लेकिन इसका सबसे घातक परिणाम हुआ है और वह यह कि एक अनूठा अनुभव, आश्चर्य, मनुष्य के जीवन से तिरोहित हो गया है। इसलिए धर्म है रहस्य | और धर्म है आश्चर्य की खोज । संजय ने कहा, आश्चर्य से युक्त हुआ... । यह अर्जुन कोई साधारण व्यक्ति नहीं था, पूर्ण सुशिक्षित। उस समय का ठीक-ठीक संस्कृत; उस समय जो भी संभावना हो सकती थी शिखर पर होने की, ऐसा व्यक्ति था । इसको आश्चर्य से भर देना आसान मामला नहीं है। वह तो आश्चर्य से तभी भरा | होगा, जब इस विराट के उदघाटन के समक्ष उसकी क्षुद्र बुद्धि के 288
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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