SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ धर्म है आश्चर्य की खोज उस दिन आपको पता चलता है कि सोना, मिट्टी, दो नहीं हैं। उसके कर रहा है, कि तुम गलत हो, मैं सही हूं। लेकिन अगर कोई गलत पहले पता नहीं चलता। यह कोई नैतिक सिद्धांत नहीं है कि सोना, | है और कोई सही है, तो कम से कम दो तो हो ही गए जगत में, कि मिट्टी एक! यह एक आध्यात्मिक अनुभव है। कोई गलत है, कोई सही है। ___ जगत एक है, इसका अनुभव तभी होगा, जब जगत की जो | एक का अनभव उस द्वैतवादी में भी उसी प्रकाश को देखेगा. मौलिक इकाई है, उसका हमें पता चल जाए। नहीं तो एक जगत और उस द्वैतवादी की वाणी में भी उसी प्रकाश को देखेगा, और उस नहीं है। कैसे एक है? कैसे मानिएगा एक? सब चीजें | द्वैतवादी के सिद्धांत में भी वही प्रकाश को देखेगा, जो वह अलग-अलग दिखाई पड़ रही हैं। पत्थर पत्थर है। सोना सोना है। अद्वैतवाद में, अद्वैतवादी की वाणी में, अद्वैतवादी के शब्दों में मिट्टी मिट्टी है। वृक्ष वृक्ष है। आदमी आदमी है। सब अलग दिखाई देखता है। सभी शब्द उसी प्रकाश का रूपांतरण हैं-सभी पड़ रहे हैं। लेकिन अगर सबका जो कांस्टिटयूएंट, सबको बनाने सिद्धांत, सभी शास्त्र, सभी वाद। जिस दिन ऐसे प्रकाश का वाला जो घटक है भीतर–चाहे आदमी के शरीर के कण हों, और अनुभव होता है, उस दिन वाद गिर जाता है। उस दिन अनुभव। चाहे सोने के कण हों. और चाहे मिट्टी के कण हों वे सभी कण | ___ संजय ने कहा, इस प्रकाश के अनुभव के बाद अर्जुन ने भगवान प्रकाश के कण हैं। | के शरीर में जो-जो चीजें पृथक-पृथक हो गई हैं, उनको एक जगह अगर यह दिखाई पड़ जाए कि सभी तरफ प्रकाश ही प्रकाश है, स्थित देखा, एक हुआ देखा। और उसके अनंतर वह आश्चर्य से तो भेद खो जाएगा। तब वह आदमी यह नहीं कहेगा कि मिट्टी भी युक्त हुआ, हर्षित रोमों वाला अर्जुन, विश्वरूप परमात्मा को सोना है, सोना भी मिट्टी है। वह पूछेगा, कहां है मिट्टी? कहां है श्रद्धा-भक्ति सहित सिर से प्रणाम करके, हाथ जोड़े हुए बोला। सोना? वह पूछेगा, प्रकाश ही है, वे सारे भेद कहां? वे सब खो गए। इसमें कई बातें खयाल में ले लेने की हैं। 'इसलिए प्रकाश के बाद अद्वैत का अनुभव होता है, प्रकाश के और उसके अनंतर वह आश्चर्य से युक्त हुआ...। पहले नहीं। जिसको परम प्रकाश का अनुभव हुआ, वही अद्वैत को आश्चर्य, हम सभी सोचते हैं, हम सबको होता है। सिर्फ धारणा अनुभव कर पाता है। है हमारी। आश्चर्य बड़ी कीमती घटना है। और तभी होता है संजय ने कहा, इस महाप्रकाश के अनुभव के बाद अर्जुन ने आश्चर्य का अनुभव, जब उसके हम सामने खड़े होते हैं, जिस पर समस्त विभक्त चीजों को, समस्त खंड-खंड, अलग-अलग बंटी हमारी समझ कोई भी काम नहीं करती। अगर आपकी समझ काम हुई चीजों को उन परमात्मा में एक ही जगह एक रूप स्थित देखा। कर सकती है, तो वह आश्चर्य नहीं है। जल्दी ही आप आश्चर्य को सब एक हो गया। सारे भेद गिर गए। सारी सीमाएं, जो भिन्न हल कर लेंगे। जल्दी ही आप कोई उत्तर खोज लेंगे। जल्दी ही आप करती हैं, वे तिरोहित हो गईं। और एक असीम सागर रह गया। कोई विचार निर्मित कर लेंगे और किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाएंगे; प्रकाश का ऐसा सागर अनुभव हो जाए, तो अद्वैत का अनुभव आश्चर्य समाप्त हो जाएगा। हुआ है। अद्वैत कोई सिद्धांत नहीं है। अद्वैत कोई फिलासफी नहीं है। आश्चर्य का अर्थ है, जिसके सामने आपकी बुद्धि गिर जाए। अद्वैत कोई वाद नहीं है कि आप तर्क से समझ लें कि सब एक है। जिसके साथ आप बुद्धिगत रूप से कुछ भी न कर सकें। जिसके बड़े मजे की बात है। लोग तर्क से समझते रहते हैं कि सब एक सामने आते ही आपको पता चले, मेरी बुद्धि तिरोहित हो गई। अब है। और तर्क से सिद्ध करते रहते हैं कि दो नहीं हैं, एक है। लेकिन | मेरे भीतर कोई बुद्धि नहीं है। अब मैं विचार नहीं कर सकता। अब उन्हें पता ही नहीं कि जहां भी तर्क है वहां दो रहेंगे, एक नहीं हो | विचार करने वाला बचा ही नहीं। जहां बुद्धि तिरोहित हो जाती है, सकता। तर्क चीजों को बांटता है, जोड़ नहीं सकता। वाद चीजों को | तब जो हृदय में अनुभव होता है, उसका नाम आश्चर्य है। बांटता है, एक नहीं कर सकता। विचार खंडित करता है, इकट्ठा और उस आश्चर्य में आपके सारे रोएं खड़े हो जाते हैं। आपने नहीं कर सकता। कभी-कभी रोओं को खड़ा देखा होगा, कभी किसी दुख में, कभी इसलिए अद्वैतवादी एक रोग है। अद्वैत का अनुभव तो एक | | किसी आकस्मिक घटना में, कभी किसी बहुत अचानक आ गए महाअनुभव है। लेकिन अद्वैतवाद, कोई अद्वैतवादी हो जाए, वह | | भय की अवस्था में। लेकिन आश्चर्य में आपके रोएं कभी खड़े नहीं एक तरह का रोग है। वह लड़ रहा है। वह द्वैतवादी को गलत सिद्ध हुए। आश्चर्य में! क्योंकि आश्चर्य तो आपने कभी किया ही नहीं। 287
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy