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________________ धर्म है आश्चर्य की खोज सब तंतु टूट गए होंगे। जब उसकी कुछ भी समझ में नहीं आया होगा । और जब उसको लगा होगा कि मैं समझ के पार गया। अब मेरा अनुभव, मेरा ज्ञान, मेरी बुद्धि, कोई भी काम नहीं करती। तब उसका रो-रोआं खड़ा हो गया होगा। तब वह आश्चर्य से चकित हुआ, आश्चर्य से युक्त हुआ, हर्षित रोमों वाला...। उसका रो-रो आनंद से नाचने लगा होगा। क्यों? क्योंकि बुद्धि दुख है। और जब तक बुद्धि का साथ है, तब तक दुख से कोई छुटकारा नहीं । बुद्धि दुख की खोज है। इसलिए बुद्धिमान आदमी वह है कि जहां दुख हो भी न, वहां भी दुख खोज ले। दुख खोजने की जितनी कुशलता आप में हो, उतने आप बुद्धिमान हैं। करते क्या हैं आप बुद्धि से ? थोड़ा समझें । कोई पशु मृत्यु से परेशान नहीं है। मृत्यु की कोई छाया पशुओं के ऊपर नहीं है। मृत्यु आती है, पशु मर जाता है। लेकिन मृत्यु के बाबत बैठकर सोचता- विचारता नहीं है। आदमी मरेगा, तब मरेगा; उसके पहले हजार दफे मरता है। जब भी सड़क पर कोई मरता है, फिर मरे । फिर किसी की अर्थी निकली, फिर अपनी अर्थी निकली। फिर किसी को मरघट की तरफ ले जाने लगे लोग राम-राम सत्य कहकर, फिर आप मरे — रोज, हर घड़ी । क्या, कारण क्या है? जीवन दिखाई नहीं पड़ता बुद्धि को, मृत्यु दिखाई पड़ती है । जीवन बिलकुल दिखाई नहीं पड़ता । मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि जीवन क्या है ? जी रहे हैं। अभी जिंदा हैं। सांस लेते हैं। इधर चलकर आ गए हैं। पूछ रहे हैं। और पूछते हैं, जीवन क्या है ? तो अगर जीते जी आपको पता नहीं चला जीवन का, तो फिर कब पता चलेगा, मरकर? और आप जी रहे हैं, आपको पता नहीं, और मुझसे पूछने चले आए हैं ! अगर जीकर पता नहीं चल रहा है, तो मेरे जवाब से पता चलेगा ? नहीं । बुद्धि जीवन को देख ही नहीं पाती, यह तकलीफ है। बुद्धि मौत को देखती है। जब आप स्वस्थ होते हैं, तब आप नाचते नहीं। लेकिन जब बीमार होते हैं, तब रोते जरूर हैं। यह बड़े मजे की बात है। जब बीमार होते हैं, तो रोते हैं। लेकिन जब स्वस्थ होते हैं, तो कभी आपको नाचते नहीं देखा । बुद्धि सुख को देखती ही नहीं, दुख को ही देखती है। बुद्धि ऐसी ही है, जैसे आपका एक दांत गिर जाए और जीभ उसी उसी जगह को खोजे, जहां दांत गिर गया; और जब तक था, तब तक दांत की कोई चिंता नहीं, इस जीभ ने उसकी कोई चिंता न की । तब तक मिलने के उपाय थे। अगर यही प्रेम इतना ज्यादा था इस दांत से, तो मिल लेना था। लेकिन अब जब गिर गया, तब गड्ढे में जीभ उसको खोजती है ! वह बुद्धि है। बुद्धि हमेशा अभाव को खोजती है। आपकी पत्नी है। जब मरेगी, तब आपको पता चलेगा, थी । फिर आप रोएंगे कि प्रेम कर लिए होते, तो अच्छा था। जो खो जाए, वह दिखाई पड़ता है, या जो न हो, वह दिखाई पड़ता है बुद्धि को । जो हो, जो है, वह बिलकुल नहीं दिखाई पड़ता। अस्तित्व से बुद्धि का संबंध ही नहीं होता, अभाव से संबंध होता है । जब नहीं होती कोई चीज, तब बुद्धि को पता चलता है । और इसकी वजह से जीवन में कई वर्तुल पैदा होते हैं। एक वर्तुल तो यह पैदा होता है कि जो हमारे पास नहीं है, वह हमें दिखाई पड़ता है। | जब पास आ जाता है, तब दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। तब फिर हमारे पास जो नहीं है, वह दिखाई पड़ता है। लोग कहते हैं, यह वासना की भूल है। यह वासना की भूल नहीं है, यह बुद्धि की भूल है। लोग कहते हैं, वासना के कारण ऐसा हो रहा है। वासना के कारण ऐसा नहीं हो रहा है, बुद्धि के कारण ऐसा हो रहा है। बुद्धि देखती ही खाली जगह को है, जहां नहीं है। तो अभी जो आपके पास नहीं है, जो मकान नहीं है, उसकी वजह से दुख पा रहे हैं। जो कार नहीं है, उसकी वजह से दुख पा रहे हैं। जो पत्नी, पति, बेटा नहीं है, उसकी वजह से दुख पा रहे हैं। जिनके पास है, उनको उससे कोई सुख नहीं मिल रहा। इसे थोड़ा समझ लें। जो मकान आपके पास नहीं है, उससे आप दुख पा रहे हैं। जो नहीं है, उससे ! और जिसके पास है, जरा उसके पास पूछें कि कितना आनंद पा रहा है उस मकान से ! वह कोई आनंद नहीं पा रहा है। वह भी दुख पा रहा है। वह किसी दूसरे मकान से दुख पा रहा है, जो | उसके पास नहीं है। यह उलटा दिखाई पड़ेगा। लेकिन हम उससे दुखी हैं, जो नहीं है। और हम उससे बिलकुल सुखी नहीं हैं, जो है । मैं एक घर में ठहरता था, किसी गांव में। तो जिस घर में ठहरता था, उस घर की गृहिणी - मैं तीन दिन या चार दिन उनके घर वर्ष में रहता - चार दिन सतत रोती रहती। मैंने उससे पूछा कि बात क्या है ? उसका मुझसे लगाव था। वह कहती कि जब आप आते हैं, तो बस मुझे यह फिक्र हो जाती है कि बस, अब आप चार दिन बाद जाएंगे! जब आप नहीं होते, तब मैं सालभर आपके लिए रोती हूं, राह देखती हूं। और जब आप होते हैं, तब इसलिए रोती हूं कि अब 289
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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