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________________ धर्म है आश्चर्य की खोज फिर बुद्ध जितना जानें, उससे आधा कह पाते हैं; लेकिन जब हम सुनते हैं उसे, तो हम उतना भी नहीं सुन पाते, जितना बुद्ध कहते हैं। क्योंकि सुनने वाले के पास और भी छोटी बुद्धि है। और भी अंधेरे में डूबा हुआ मन है। और भी अविकसित चेतना है। तो बुद्ध जब हमसे बोलते हैं, तो जो हम समझ पाते हैं, वह उसका भी आधा हो, तो बड़े सौभाग्यशाली हैं हम, जितना वे कहते हैं। और अगर हम किसी और को कहें, तो प्रतिपल सत्य टूटता चला जाता है, और असत्य होता चला जाता है। कृष्ण के भीतर जो अर्जुन को दिखाई पड़ा, वह पूरा अनुभव है। संजय उसको आधा ही पकड़ पाएगा। और धृतराष्ट्र कितना पकड़ पाए होंगे, इस संबंध में कुछ भी कहा नहीं जा सकता। तो पहली तो बात यह खयाल रख लें कि अधूरा आदमी भी आंखें उठा सकता है उस दिशा में। दूसरी बात यह खयाल ले लें कि अधूरा आदमी किनारे पर खड़ा हुआ है - आधा इस तरफ, आधा उस तरफ। उसके दो मुंह हैं। एक तरफ वह अंधे धृतराष्ट्र की तरफ देख रहा है, दूसरी तरफ वहां महाप्रकाश की जो घटना घटी है, अर्जुन की आंखों का खुल जाना जो हुआ है, उस तरफ। संजय की क्या जरूरत थी बीच में? अर्जुन भी यह खबर बाद में दे सकता था। गीता हमें अर्जुन से भी मिल सकती थी । अर्जुन से मिलनी बहुत कठिन थी। जिसको पूरा अनुभव होता है, जरूरी नहीं है कि वह अभिव्यक्ति में भी कुशल हो । अनुभूति एक बात है, अभिव्यक्ति बिलकुल दूसरी बात है। अर्जुन के पास अभिव्यक्ति नहीं थी। अर्जुन को अनुभव तो हुआ, लेकिन वह कह नहीं सकता था। यह हो सकता हैं कि आप सुबह का सूरज उगते हुए देखें, लेकिन आप चित्र न बना पाएं। क्योंकि चित्र बनाना और बात है। और यह भी हो सकता है कि उस चित्रकार ने जिसने सुबह का सूरज उगते न देखा हो, उसको आप जाकर सिर्फ बताएं कि क्या देखा है, वह चित्र आपसे बेहतर बना सके। अर्जुन कहने में असमर्थ था, इसलिए गीता में संजय को लाना अनिवार्य हो गया। बिना संजय के गीता बिना कही रह जाती। कृष्ण उसे अर्जुन से कह दिया था, लेकिन अर्जुन उसे हम तक नहीं पहुंचा सकता था। अर्जुन के पास अभिव्यक्ति की कोई क्षमता नहीं है। इसलिए बहुत बार ऐसा हुआ है कि जिन्होंने जाना है, वे जानकर चुप ही रह गए हैं, क्योंकि कहने की उनके पास कोई व्यवस्था न और कई बार ऐसा भी हुआ है कि जिन्होंने नहीं जाना है, उन्होंने भी बहुत बातें हमें समझा दी हैं, उनसे सुनकर जिन्होंने जाना था या उनके पास रहकर जिन्होंने जाना था। अभी इस सदी में ऐसी घटना घटी है। काकेशस में एक बहुत अदभुत आदमी इस सदी में पैदा हुआ, जार्ज गुरजिएफ | उसने गहनतम अनुभव उपलब्ध किया, जो इस सदी में दो-चार लोगों को ही मिला है। लेकिन उसकी कहने की कोई भी योग्यता नहीं थी। न तो वह बोल सकता था, न लिख सकता था, न ही किसी भाषा पर उसका कोई अधिकार था । गुरजिएफ की बात ऐसे ही खो जाती, पर उसे एक बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति पी. डी. आस्पेंस्की मिल गया । आस्पेंस्की को कोई अनुभव नहीं था। लेकिन आस्पेंस्की एक | कुशल लेखक था । भाषा पर उसका अधिकार था । गणित पर उसकी पकड़ थी। रूस के बड़े से बड़े गणितज्ञों में एक था। इसलिए किसी भी चीज को तर्क से, जांचकर, परखकर, ठीक-ठीक माप में प्रकट करने की उसकी प्रतिभा थी। आस्पेंस्की कह सका, जो गुरजिएफ नहीं कह सका । और गुरजिएफ जानता था और आस्पेंस्की नहीं जानता था । आस्पेंस्की गुरजिएफ के पास रहकर पकड़ सका, वह जो अधूरा -अधूरा, | टूटा-फूटा प्रकट करता था, बिना व्याकरण के, बिना भाषा के। वह जो टटोल - टटोलकर कुछ बातें कहता था, आस्पेंस्की उसे निखार-निखारकर प्रकट कर सका। आस्पेंस्की न हो, तो गुरजिएफ 'की शिक्षा खो जाएगी। 281 यह संजय के कारण कृष्ण ने जो अर्जुन को कहा था, वह बच सका है। संजय अधूरा है, लेकिन बड़ा योग्य है। ऐसा कभी-कभी घटता है कि एक ही व्यक्ति में दोनों बातें होती हैं। कभी-कभी घटता है। बहुत अनूठा संयोग है। महावीर को अनुभव हुआ, महावीर नहीं बोले। बोलने वाले दूसरे लोग उन्होंने | इकट्ठे किए। महावीर उनसे मौन में बोले, और उन्होंने फिर वाणी से प्रकट किया। बुद्ध को जो अनुभव हुआ, बुद्ध स्वयं बोले । यह | बहुत कठिन है। कभी-कभी ऐसा होता है कि अनुभव को उपलब्ध | व्यक्ति अभिव्यक्ति भी कर पाता है । अन्यथा सहारे खोजने पड़ते हैं। कोई और सहारा खोजना पड़ता संजय इस पूरी व्यवस्था में सहारा है। और संजय ने जो कहा है, वह रूपक नहीं है। उसने जो देखा है, वही कहा है। लेकिन जिसके लिए कहा है, वह अंधा आदमी है। वह बिना रूपक के नहीं समझ पाएगा। इसलिए रूपक का भी उपयोग किया है।
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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