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________________ 3 गीता दर्शन भाग-58 दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेयुगपदुत्थिता। सूर्य के सदृश ज्योतियुक्त, देखने में अति गहन और अप्रमेय यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः । । १२ ।। स्वरूप सब ओर से देखता हूं। तत्रकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकया। अपश्यदेवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ।। १३ ।। ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनंजयः। एक मित्र ने पूछा है कि अर्जुन और कृष्ण के बीच प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ।। १४ ।। घटी घटना अत्यंत वैयक्तिक थी। संजय आधा अर्जुन अर्जुन उवाच था, उसे दिव्य-चक्षु उपलब्ध नहीं थे। फिर, संजय पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान् । अधूरेपन से पूर्ण को कैसे निहार पाया? अंश से ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषीश्च सर्वानुरगांश्च विराट के दर्शन और वर्णन कैसे कर पाया? संजय दिव्यान् ।।१५।। का वर्णन क्यों न क्षेपक और कल्पना मानी जाए? अनेकबाहूदरवकत्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् । नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादि पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ।। १६ ।। ट स संबंध में कुछ बातें समझ लेनी अत्यंत उपयोगी हैं। किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम् । र पहली बात तो यह कि अंश से पूर्ण को पकड़ा नहीं जा पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्य सकता, लेकिन छुआ जा सकता है। अंश से पूर्ण को समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् ।। १७ ।। | पकड़ा नहीं जा सकता, स्पर्श किया जा सकता है। और हे राजन्, आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय | मेरा हाथ मेरे पूरे शरीर को नहीं पकड़ सकता, क्योंकि हाथ शरीर होने से उत्पन्न हुआ जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्वरूप | का एक अंश है, लेकिन मेरे शरीर को स्पर्श कर सकता है। पूरे को परमात्मा के प्रकाश के सदश कदाचित ही होवे।। | न भी स्पर्श करे, तो भी स्पर्श कर सकता है। हम इन छोटी-छोटी ऐसे आश्चर्यमय रूप को देखते हुए पांडुपुत्र अर्जुन ने उस आंखों से विराट को न पकड़ पाएं, लेकिन इन छोटी-छोटी आंखों काल में अनेक प्रकार से विभक्त हुए अर्थात पृथक-पृथक | से जिसे भी हम पकड़ते हैं, वह भी विराट का ही हिस्सा है। मेरे हुए संपूर्ण जगत को उस देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान के हाथ बहुत छोटे होंगे, पूरे आकाश को नहीं भर पाऊंगा अपनी बाहों शरीर में एक जगह स्थित देखा। | में, लेकिन जिसे भी भर पाऊंगा, वह भी आकाश ही है। और उसके अनंतर वह आश्चर्य से युक्त हुआ हर्षित रोमों संजय अधूरा है, इसलिए प्रश्न बिलकुल स्वाभाविक है कि वह वाला अर्जुन, विश्वरूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्ति सहित | अधूरी चेतना का व्यक्ति कृष्ण और अर्जुन के बीच घटी उस सिर से प्रणाम करके, हाथ जोड़े हुए बोला। महिमापूर्ण घटना को कैसे देख पाया? अधूरा कैसे पूरे को देख हे देव, आपके शरीर में संपूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के पाएगा? समुदायों को और कमल के आसन पर बैठे हुए ब्रह्मा को देख पाएगा, पूरा नहीं देख पाएगा। संजय भी पूरा नहीं देख पा तथा महादेव को और संपूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सपों सकता है। आध्यात्मिक अनुभव, जब भी घटित होते हैं, तो उनकी को देखता हूं। पूरी खबर हम तक नहीं आती और न ही आ सकती है। और हे संपूर्ण विश्व के स्वामिन्, आपको अनेक हाथ, पेट, इसे हम थोड़ा यूं समझें। मुख और नेत्रों से युक्त तथा सब ओर से अनंत रूपों वाला बुद्ध को अनुभव हुआ। बुद्ध स्वयं उस अनुभव को कहते हैं। देखता हूं। हे विश्वरूप, आपके न अंत को देखता हूं, तथा लेकिन साथ यह भी कहते भी कहते हैं कि जो मैं कह रहा है, वह उतना नहीं न मध्य को और न आदि को ही देखता हूं। | है, जितना मैंने जाना। जो मैंने जाना, वह कहते ही आधा हो गया और मैं आपका मुकुटयुक्त, गदायुक्त और चक्रयुक्त तथा | | है। क्योंकि शब्द सीमित हैं और जो जाना था, वह असीम था। उस सब ओर से प्रकाशमान तेज का पुंज, प्रज्वलित अग्नि और | असीम को शब्द में रखते ही वह आधा हो गया। 280/
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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